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जलवायु परिवर्तन से भारत में बढ़ते तूफान के हमले

Climate change : इस साल हमारे देश में चक्रवात की शुरुआत गर्मी में ही हो गयी थी. मई में आये चक्रवात रेमल साल का सबसे भयावह बवंडर था, जिसकी गति 110 किलोमीटर प्रति घंटा थी. फिर अगस्त-सितंबर में बंगाल की खाड़ी में आसना ने कोहराम मचाया था.

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Climate Change : विगत 25 नवंबर से पुडुचेरी, तमिलनाडु में फेंगल की ऐसी मार पड़ी कि स्कूल, कॉलेज, बाजार, हवाई अड्डा- सब बंद करने पड़े. दिसंबर के पहले हफ्ते तक गोवा से कर्नाटक तक में धुआंधार बरसात हुई. शहर पानी में डूब गये और लोग मारे गये. चक्रवात एक प्राकृतिक आपदा नहीं है. तेजी से बदल रही दुनिया के प्राकृतिक मिजाज ने इस तरह के तूफानों की संख्या में इजाफा किया है. इंसान ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ को नियंत्रित नहीं किया, तो तूफान या बवंडर के चलते अपने यहां समुद्र किनारे वाले शहरों में आम लोगों का जीना दूभर हो जायेगा.


इस साल हमारे देश में चक्रवात की शुरुआत गर्मी में ही हो गयी थी. मई में आये चक्रवात रेमल साल का सबसे भयावह बवंडर था, जिसकी गति 110 किलोमीटर प्रति घंटा थी. फिर अगस्त-सितंबर में बंगाल की खाड़ी में आसना ने कोहराम मचाया था. अक्तूबर में दाना ने तबाही मचायी. इस साल 11 बार डिप्रेशन और सात बार डीप डिप्रेशन के हालात भी बने. जब हवा की गति 31-50 किमी प्रति घंटा के आसपास होती है, तो भारतीय मौसम विभाग इसे डिप्रेशन और जब हवा की गति 51-62 किमी प्रति घंटा के बीच होती है, तो इसे डीप डिप्रेशन कहता है.

इस साल बवंडरों से 278 लोग मारे गये और लगभग 5,334 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ. इस तरह के बवंडर संपत्ति और मनुष्य को तात्कालिक नुकसान ही नहीं पहुंचाते, इनका दीर्घकालिक प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है. भीषण बरसात के कारण बन गये दलदली क्षेत्र, तेज आंधी से उजड़ गये प्राकृतिक वन और हरियाली, जानवरों का नैसर्गिक पर्यावास समूची प्रकृति के संतुलन को उजाड़ देता है. तेज हवा के कारण तटीय क्षेत्रों में मीठे पानी में खारे पानी और खेती वाली जमीन पर मिट्टी व दलदल बनने से हुई क्षति को पूरा करना कठिन होता है.


जलवायु परिवर्तन पर 2019 में जारी इंटर गवर्नमेंटल समूह (आइपीसीसी) की विशेष रिपोर्ट के अनुसार, सारी दुनिया के महासागर 1970 से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से उत्पन्न 90 फीसदी अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित कर चुके हैं. इस कारण महासागर गर्म हो रहे हैं और इसी से चक्रवात का जल्दी-जल्दी और खतरनाक चेहरा सामने आ रहा है. समुद्र का तापमान 0.1 डिग्री बढ़ने का अर्थ है चक्रवात को अतिरिक्त ऊर्जा मिलना. हवा की विशाल मात्रा के तेजी से गोल-गोल घूमने पर उत्पन्न तूफान उष्णकटिबंधीय चक्रीय बवंडर कहलाता है. पृथ्वी भौगोलिक रूप से दो गोलार्धों में विभाजित है.

ठंडे या बर्फ वाले उत्तरी गोलार्द्ध में उत्पन्न इस तरह के तूफानों को हरिकेन या टाइफून कहते हैं. इनमें हवा का घूर्णन घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में एक वृत्ताकार रूप में होता है. जब बहुत तेज हवाओं वाले उग्र आंधी-तूफान अपने साथ मूसलाधार वर्षा लाते हैं, तो उन्हें हरिकेन कहते हैं. जबकि भारत के हिस्से यानी दक्षिणी अर्द्धगोलार्ध में इन्हें चक्रवात या साइक्लोन कहा जाता है. इस तरफ हवा का घुमाव घड़ी की सुइयों की दिशा में वृत्ताकार होता है. किसी भी उष्णकटिबंधीय अंधड़ को चक्रवाती तूफान की श्रेणी में तब गिना जाने लगता है, जब उसकी गति कम से कम 74 मील प्रति घंटे हो जाती है. ये बवंडर कई परमाणु बमों के बराबर ऊर्जा पैदा करने की क्षमता वाले होते हैं.

चक्रवाती तूफानों का उठना धरती के अपने अक्ष पर घूमने से सीधा जुड़ा है. भूमध्य रेखा के नजदीकी जिन समुद्रों में पानी का तापमान 26 डिग्री सेल्सियस या अधिक होता है, वहां इस तरह के चक्रवातों के उभरने की आशंका रहती है. तेज धूप में जब समुद्र के ऊपर की हवा गर्म होती है, तो वह तेजी से ऊपर की ओर उठती है. इस तरह हवा की गति तेज होने पर नीचे से ऊपर बहुत तेज गति में हवा भी घूमती हुई एक बड़ा घेरा बना लेती है. यह घेरा कई बार 2,000 किलोमीटर के दायरे तक विस्तार पा जाता है.


सनद रहे कि भूमध्य रेखा पर पृथ्वी की घूर्णन गति लगभग 1,038 मील प्रति घंटा है, जबकि ध्रुवों पर यह शून्य रहती है. भारतीय उपमहाद्वीप में बार-बार और हर बार पहले से घातक तूफान आने का असल कारण मनुष्य द्वारा किये जा रहे प्रकृति के अंधाधुंध शोषण से उपजी पर्यावरणीय त्रासदी ‘जलवायु परिवर्तन’ भी है. इस साल के प्रारंभ में ही अमेरिका की अंतरिक्ष शोध संस्था नासा ने चेता दिया था कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रकोप से चक्रवाती तूफान और खूंखार होते जायेंगे. जलवायु परिवर्तन के कारण उष्णकटिबंधीय महासागरों का तापमान बढ़ने से सदी के अंत में भयंकर बारिश और तूफान आने की दर बढ़ सकती है.

यह बात नासा के एक अध्ययन में सामने आयी है. अध्ययन में पाया गया कि समुद्र की सतह का तापमान लगभग 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने पर गंभीर तूफान आते हैं. ‘जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स’(फरवरी, 2019) में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि के कारण हर एक डिग्री सेल्सियस पर 21 प्रतिशत अधिक तूफान आते हैं. भारी बारिश के साथ तूफान आमतौर पर साल के सबसे गर्म मौसम में ही आते हैं. परंतु जिस तरह इस वर्ष बरसात और जाड़े के दिनों में भारत में ऐसे तूफान के हमले बढ़े, यह हमारे लिए गंभीर चेतावनी है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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