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देश के डिजिटल भविष्य का नया स्वरूप, पढ़ें केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव का खास आलेख

Digital Future Of India : यह सशक्तीकरण का एक नया युग है. भारतीय नागरिक डीपीडीपी नियम, 2025 के केंद्र में हैं. डाटा के बढ़ते वर्चस्व वाली दुनिया में हमारा यह स्पष्ट रूप से मानना है कि व्यक्तियों को शासन की रूपरेखा के केंद्र में रखना अनिवार्य है.

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Digital Future Of India : हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘जब हम वैश्विक भविष्य के बारे में बात करते हैं, तो मानव केंद्रित दृष्टिकोण सबसे महत्वपूर्ण होना चाहिए.’ उनके ये शब्द लोगों को पहले रखने के भारत के दृष्टिकोण को प्रमुखता से दर्शाते हैं. इस दर्शन ने डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण (डीपीडीपी) नियम, 2025 के मसौदे को आकार देने में हमारे प्रयासों का मार्गदर्शन किया है. इसे अंतिम रूप दिए जाने के बाद डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम, 2023 लागू हो जायेगा, जो नागरिकों के व्यक्तिगत डाटा सुरक्षा के अधिकार की रक्षा के लिए वस्तुत: हमारी प्रतिबद्धता को ही रेखांकित करेगा.


यह सशक्तीकरण का एक नया युग है. भारतीय नागरिक डीपीडीपी नियम, 2025 के केंद्र में हैं. डाटा के बढ़ते वर्चस्व वाली दुनिया में हमारा यह स्पष्ट रूप से मानना है कि व्यक्तियों को शासन की रूपरेखा के केंद्र में रखना अनिवार्य है. ये नियम दरअसल इस देश के नागरिकों को कई अधिकारों से सशक्त करते हैं. उदाहरण के लिए, सूचना आधारित सहमति, डाटा मिटाने की सुविधा और डिजिटल रूप से नामांकित व्यक्ति को नियुक्त करने की क्षमता आदि. यह स्पष्ट है कि इस देश के नागरिक अब उल्लंघनों या अनधिकृत डाटा उपयोग के सामने खुद को असहाय महसूस नहीं करेंगे. इसकी वजह यह है कि अब उनके पास अपनी डिजिटल पहचान को प्रभावी ढंग से सुरक्षित और प्रबंधित करने के लिए आवश्यक उपकरण होंगे. इन नियमों को सरलता और स्पष्टता के साथ तैयार किया गया है, साथ ही, इसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि प्रत्येक भारतीय, चाहे उनके पास तकनीकी ज्ञान कुछ भी हो, अपने अधिकारों को बखूबी समझ सकता है और उनका प्रयोग कर सकता है. इसमें सहमति स्पष्ट शब्दों में मांगी जाती है, तथा नागरिकों को अंग्रेजी या संविधान में सूचीबद्ध 22 भारतीय भाषाओं में से किसी में भी जानकारी प्रदान करना अनिवार्य किया गया है.

यह रूपरेखा दरअसल समावेशिता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता के बारे में बताती है. डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम में बच्चों की सुरक्षा पर खास ध्यान दिया गया है. दरअसल डिजिटल युग में बच्चों को विशेष देखभाल की आवश्यकता है. इसे मान्यता देते हुए इसके नियम नाबालिगों के व्यक्तिगत डाटा को संसाधित करने के लिए माता-पिता या अभिभावक की सत्यापन योग्य सहमति को अनिवार्य बनाते हैं. ऐसे ही अतिरिक्त सुरक्षा उपाय बच्चों को शोषण, अनधिकृत प्रोफाइल बनाने और अन्य डिजिटल नुकसान से बचाव सुनिश्चित करते हैं. इस अधिनियम के ये प्रावधान भविष्य की पीढ़ी के लिए एक सुरक्षित डिजिटल परिदृश्य बनाने के प्रति हमारे समर्पण को संपूर्णता में दर्शाते हैं.


इसमें विनियमन के साथ विकास के संतुलन को साधने की कोशिश की गयी है. भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था वस्तुत: एक वैश्विक सफलता की गाथा रही है, और हम इस गति को बनाये रखने के प्रति दृढ़ संकल्पित हैं. हमारी रूपरेखा डिजिटल अर्थव्यवस्था में नवाचार को सक्षम करते हुए नागरिकों के लिए व्यक्तिगत डाटा सुरक्षा सुनिश्चित करती है. विनियमन पर बहुत अधिक जोर देने वाले कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रारूपों के विपरीत हमारा दृष्टिकोण व्यवहारिक और भविष्योन्मुखी है. यह संतुलन सुनिश्चित करता है कि नागरिकों की सुरक्षा की जाये और नवाचार की उस भावना को किसी भी तरह से दबाया न जाये, जो हमारे स्टार्ट-अप और व्यवसायों को प्रेरित करती है. इससे छोटे व्यवसायों और स्टार्ट-अप के लिए अनुपालन बोझ कम हो जायेगा. हितधारकों की अलग-अलग क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए नियमों को वर्गीकृत जिम्मेदारियों के साथ डिजाइन किया गया है. ऐसे में, डाटा विश्वास के मूल्यांकन के आधार पर बड़ी कंपनियों के पास उच्च दायित्व होंगे, जो विकास को बाधित किए बिना जवाबदेही सुनिश्चित करेंगे. इन नियमों के मूल में ‘डिजिटल से दर्शन’ है.


डाटा सुरक्षा बोर्ड मुख्य रूप से एक डिजिटल कार्यालय के रूप में काम करेगा, जिसे शिकायतों का समाधान करने और अनुपालन लागू करने का काम सौंपा गया है. प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर हम दक्षता, पारदर्शिता और गति सुनिश्चित करते हैं. नागरिक शारीरिक उपस्थिति के बिना भी हम शिकायत दर्ज कर सकते हैं, प्रगति की निगरानी कर सकते हैं, और उचित समाधान प्राप्त कर सकते हैं. यह डिजिटल प्रथम दृष्टिकोण सहमति व्यवस्था और डाटा प्रबंधन कार्य तक फैला हुआ है. प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करके हम बड़ी कंपनियों के लिए अनुपालन करना और नागरिकों के लिए जुड़ना आसान बनाते हैं, जिससे प्रणाली में विश्वास बढ़ता है. इन नियमों की यात्रा उनके अभिप्राय जितनी ही समावेशी रही है.

डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के सिद्धांतों पर आधारित मसौदा विभिन्न हितधारकों से एकत्र किए गये व्यापक इनपुट और वैश्विक सर्वोत्तम तौर-तरीकों के अध्ययन का परिणाम है. नागरिकों, व्यवसायों और नागरिक सुझाव से प्रतिक्रिया और सुझाव आमंत्रित करते हुए हमने सार्वजनिक परामर्श के लिए 45 दिनों की अवधि निर्धारित की है. यह जुड़ाव सामूहिक ज्ञान और भागीदारीपूर्ण नीति निर्माण के महत्व में हमारे विश्वास का प्रमाण है. जबकि यह सुनिश्चित करना है कि यह व्यवस्था न केवल मजबूत हो, बल्कि हमारे सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य की अनूठी चुनौतियों के अनुकूल भी हो. यह सुनिश्चित करने के लिए, कि नागरिक अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक हैं, नागरिकों को उनके व्यक्तिगत डाटा से जुड़े अधिकारों के बारे में शिक्षित करने के लिए व्यापक जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा.


इन नियमों की शुरुआत के साथ हम न केवल वर्तमान चुनौतियों का समाधान कर रहे हैं, बल्कि एक सुरक्षित और अभिनव डिजिटल भविष्य की आधारशिला भी रख रहे हैं. डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण नियम, 2025 का मसौदा वैश्विक डाटा शासन मानदंडों को आकार देने में भारत के नेतृत्व को प्रतिबिंबित करता है. देश के नागरिकों को केंद्र में रखते हुए, नवाचार के लिए अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देकर, हम एक मिसाल कायम कर रहे हैं, जिसका दुनिया अनुसरण कर सकती है.


इस डिजिटल युग में प्रत्येक भारतीय को सुरक्षित, सशक्त और सक्षम बनाना. मैं प्रत्येक नागरिक, व्यवसाय व नागरिक समाज समूह को परामर्श अवधि के दौरान टिप्पणियां और सुझाव साझा करके इस संवाद में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता हूं. आइए, हम इन नियमों को परिष्कृत करें, ताकि एक ऐसी व्यवस्था तैयार हो सके, जो वास्तव में एक सुरक्षित, समावेशी और संपन्न डिजिटल भारत की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती हो.

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