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नया भारत गढ़ रहे हैं नरेंद्र मोदी

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मोदी के इन प्रयासों के पीछे प्रेरक सिद्धांत देश को वास्तव में हिंदू राष्ट्र बनाना सुनिश्चित करना है, जहां सभी धर्मों के लोगों के समान अधिकार हों, पर किसी को अतिरिक्त विशेषाधिकार न मिले. ‘मोदी है तो मुमकिन है’ परिवर्तन का युद्ध घोष होगा.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में कहते हैं, ‘सरकार के तीसरे कार्यकाल में अगले हजार साल के भारत की नींव रखी जायेगी… 22 जनवरी 2024 कैलेंडर पर एक तारीख भर नहीं है, यह एक नये काल चक्र का प्रारंभ है… हमें अपनी चेतना का विस्तार देव से देश, राम से राष्ट्र तक करना है… यह भारत का समय है, और भारत आगे बढ़ रहा है.’ मोदी रहस्य एवं इतिहास में लिपटी हुई एक पहेली हैं. यूनानी रहस्यदर्शियों की तरह उनके बयानों की कई व्याख्याएं हो सकती हैं और कई उद्देश्यों को रेखांकित किया जा सकता है. चुनाव के समय अगले पांच साल की अपनी योजनाओं के बारे में बताना नेताओं की लत है. विशेषणों से भरे उन भाषणों में पूरा किये वादों और नये वादों का बखान होता है. लेकिन मोदी एक राजनीतिक अपवाद हैं. उनकी करिश्माई और महीन स्पष्टता एक दशक या एक सदी नहीं, बल्कि एक हजार साल के भारत के चमकती नियति की परिकल्पना करती है. संसद में अपने हालिया भाषण में उन्होंने दावा किया कि वे अपने तीसरे कार्यकाल की ओर अग्रसर हैं और ऐसी नीतिगत पहलें करने जा रहे हैं, जिन्हें युगों तक सराहा जायेगा. उन्होंने कहा कि भगवान राम केवल अपने घर नहीं आये हैं, बल्कि एक भव्य मंदिर में आये हैं, जो भारत गरिमामयी सांस्कृतिक परंपराओं को अगले हजार साल तक ऊर्जा देगा. सौ मिनट लंबे इस भाषण में अयोध्या में 22 जनवरी को व्यक्त अपनी दृष्टि के विश्लेषण को उन्होंने फिर सामने रखा. तीन दिन बाद सरकार ने एक दिन का विशेष सत्र रखा, जिसमें राम मंदिर निर्माण की गाथा को हमेशा के लिए दर्ज किया गया. राम और भारतीय संस्कृति का बार बार उल्लेख करने का उद्देश्य विकसित भारत की प्रतिज्ञा के साथ बहुमत को हिंदुत्व की विचारधारा के पीछे लामबंद करना है.

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पर हजार साल का उल्लेख क्यों? कई विशेषज्ञ मोदी की प्रबल दार्शनिक राजनीति को नहीं समझ पाते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री हमेशा अप्रत्याशित होते हैं. मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में दो दशकों के उनके कामकाज के विश्लेषण से स्पष्ट है कि वे एक विशेष आख्यान का अनुसरण करते हैं, जैसे स्टैच्यू ऑफ यूनिटी और राम मंदिर जैसी उपलब्धियां और ‘सबका साथ सबका विकास’, ‘वोकल फॉर लोकल’ आदि जैसे सम्मोहक नारे गढ़ना. वे हमेशा अस्तित्व में रहने वाला नया भारत गढ़ रहे हैं. अगले कार्यकाल में सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं आर्थिक पुनर्जागरण के लिए जो उपाय मोदी कर सकते हैं, वे व्यापक और नियत दोनों हैं. यदि मोदी संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत पा लेते हैं, तो वे संविधान से नेहरूवादी और कांग्रेस के प्रभाव को हटाने का प्रयास करेंगे. प्रस्तावना के फिर से लिखे जाने की संभावना है. ऐसे संशोधनों की अपेक्षा की जा सकती है, जिनके द्वारा केंद्र को राज्यों से अधिक शक्ति दी जायेगी. संसद की नयी इमारत के उद्घाटन के अवसर पर सांसदों में संविधान की मूल प्रति वितरित कर संकेत तो दे ही दिया है. इस प्रति की प्रस्तावना में ‘सेकुलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द नहीं होने पर विपक्ष ने विरोध जताया. इन शब्दों को आपातकाल के समय इंदिरा गांधी ने जोड़ा था. सेकुलरिज्म ने अपनी विश्वसनीयता और वांछनीयता खो दी है. मोदी इन्हें हटा सकते हैं तथा भारत की एक राष्ट्रवादी परिभाषा को शामिल कर सकते हैं. शायद इंडिया शब्द को भी हटा दिया जाए.

भाजपा हमेशा से प्राचीन हिंदू स्मारकों और प्रतीकों की दुर्दशा को लेकर क्षुब्ध रही है. मुगल भारत से पहले के काल के बारे में स्कूली छात्र बहुत थोड़ी जानकारी हासिल कर पाते हैं क्योंकि उसके बारे में केवल कॉलेजों में पढ़ाया जाता है. एक हजार से अधिक मंदिर और तीर्थस्थल या तो खराब स्थिति में हैं या उन्हें ठीक से जोड़ा नहीं गया है. प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार मोदी दक्षिण भारत के राम मंदिरों का भ्रमण कर रहे हैं. दक्षिण में सक्रिय राजनीतिक हिंदू अनुपस्थित है, जबकि वहां उत्तर से बहुत अधिक संख्या में देवता और मंदिर है. संस्कृति मंत्रालय ने हिंदू मंदिरों के मरम्मत के लिए धन आवंटित किया है. संभव है कि मोदी कानूनी रूप से मंदिरों का प्रशासन स्थानीय सरकारों से लेकर केंद्र सरकार द्वारा स्थापित ट्रस्टों को दे दें, जैसा अयोध्या में हुआ है. भाजपा नेतृत्व विदेशों से धन पाने वाले वैसे स्वैच्छिक संस्थाओं से खफा है, जो हिंदू स्मारकों के बजाय इस्लामिक स्मारकों के जीर्णोद्धार पर बेहद खर्च करते हैं. भाजपा शासित राज्यों को उन शहरों के नाम बदलने को कहा जायेगा, जिनके अंग्रेजी या इस्लामिक नाम हैं. इस मुद्दे को पार्टी नेता अदालतों में भी ले जा रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी एक याचिका को खारिज कर दिया है, पर नाम बदलने का सिलसिला जारी है. संविधान ने केंद्र को कानून बनाने की बहुत अधिक शक्ति दी है. बांग्लादेश और पाकिस्तान से आये घुसपैठियों को नागरिक अधिकार देने का भाजपा विरोध करती रही है. पार्टी पूरे देश के लिए समान नागरिक संहिता की मांग करती आयी है. भाजपा शासित उत्तराखंड में ऐसा कानून लाया गया है. अगले पांच साल में सभी भाजपा शासित राज्य ऐसे कानून अपनायेंगे, जिसमें विवाह के नियम समान होंगे. इस मामले में मुस्लिम समुदाय को विशेष अधिकार मिले हुए हैं. सरकार नागरिकता संशोधन कानून लागू करने का प्रयास करेगी और नेशनल रजिस्टर बनेगा, जिससे मतदाता सूची से विदेशियों को निकाला जा सकेगा.

लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के अपने पसंदीदा विचार को मोदी लागू करेंगे. भाजपा को लगता है कि राज्यों में वह केवल मोदी के नाम पर चुनाव जीत सकती है. संविधान के अनुसार केंद्र किसी भी विधानसभा को भंग कर सकता है. राज्यपालों को अधिक अधिकार दिये जायेंगे ताकि वे वैध रूप से राज्य सरकारों के निर्णयों को प्रभावित कर सकें. मोदी के इन प्रयासों के पीछे प्रेरक सिद्धांत देश को वास्तव में हिंदू राष्ट्र बनाना सुनिश्चित करना है, जहां सभी धर्मों के लोगों के समान अधिकार हों, पर किसी को अतिरिक्त विशेषाधिकार न मिले. मोदी की इच्छा है कि इतिहास भारत को उनके द्वारा गढ़े गये राष्ट्र और मोदी काल को भारत के नये स्वर्ण काल के रूप में देखे, जहां सदियों के इस्लामिक और ब्रिटिश शासन के चिह्न एवं प्रतीक समय के कोहरे में लुप्त हो जायेंगे. ‘मोदी है तो मुमकिन है’ परिवर्तन का युद्ध घोष होगा. मोदी भारत के मन को औपनिवेशिक साये से मुक्त कराने के लिए अतीत के उत्कर्ष का पुन: नवोन्मेष कर रहे हैं- हजार साल के शोषण से राम राज्य की दस सदियों की ओर यह यात्रा है, जहां उच्च तकनीक और बड़ी अर्थव्यवस्था भारत के भविष्य के वेद हैं.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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