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कृष्ण कुमार भट्टा की मगही कविताएं – हम्मर गांव में और सउंसे जग परिवार हे

कृष्ण कुमार भट्टा की दो मगही कविताएं ‘हम्मर गांव में’ और ‘सउंसे जग परिवार हे’ इस साल प्रभात खबर के दीपावली विशेषांक में प्रकाशित हुईं हैं. दोनों कविताएं आप यहां पढ़ें...

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हम्मर गांव में

नदिया के ठंढ़ा पानी पीपरा के छांव में,

अइहें रे जोगिया तों हम्मर गांव में।

गामा के उत्तरा में फूला के बगिया,

इहां रंग-बिरंग खिलल फूल ।

गलबांही देवइत तोरा घुमइबउ ,

चंदन सन शीतल हियां धूल।

खुब्बे घुमइबउ तोरा नदिया-नाव में,

अइहें रे जोगिया तों हम्मर गांव में।

पुआ फुलौड़ी घर के खिलइबउ,

अउरे खिलइबउ मगही पान।

मोरा मोरिनिया के नाच देखइबउ,

अउरे सुनइबउ बंसुरी तान ।

पेन्ह के नाचबे दून्हू घुंघरुआ पांव में,

अइहें रे जोगिया तों हम्मर गांव में।

प्रेम के बतिया मिल बतिअइबइ,

कर कान्हा -राधा के याद ।

हीर-रांझा आउ लैला -मजनूं सन,

बन के करबइ फरियाद।

तों रहिहें आगू -आगू, हम रहबउ ठांव में,

अइहें रे जोगिया तों हम्मर गांव में।

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सउंसे जग परिवार हे

हमरा ले नय कोय पराया

सउंसे घर संसार हे,

हम नय जानी हिंदू -मुस्लिम

सउंसे जग परिवार हे।

हम नय बंधल ही देश-काल के

जंग लगल जंजीरन में,

हम नय खाड़ ही जाति-पाति

आउ ऊंच-नीच के भीड़न में।

हमर धरम में सब कोय अदमी

देवालय हर दुआर है ,

हम नय जानी हिंदू -मुस्लिम

सउंसे जग परिवार हे।

कहंय रही हमरा ले पेयारा

सब्भे कोय इंसान है ,

हमरा अप्पन मानवता पर

सच्चोक में अभिमान हे ।

हम्मर धरती सरग से सुन्नर

बगिया के सिंगार है ,

हम नय जानी हिंदू -मुस्लिम

सउंसे जग परिवार हे।

हमरा कहना हे जीया तों

जीए दऽ संसार के,

जेतना जादे बांट सको हऽ

बांटा अप्पन पेयार के।

दीन -दुखियन के गला लगाहो

इसे सभ्भे से बड़गो उपकार हे,

हम नय जानी हिंदू -मुस्लिम

सउंसे जग परिवार हे।

पता : कृष्ण कुमार भट्टा, ग्राम+पोस्ट – भट्टा, काशीचक, नवादा, मो. – 9304926360

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