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एशियाई खेलों में भारत शतक के पार

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भारत ने एथलेटिक्स में डंका बजाने का काम नीरज चोपड़ा की अगुआई में किया. वह जेवेलिन थ्रो में 88.88 मीटर भाला फेंक कर स्वर्ण की रक्षा करने में सफल रहे. नीरज भारत की इस समय इकलौती शख्सियत हैं, जिनके पास एशियाई खेलों के अलावा ओलिंपिक, विश्व चैंपियनशिप के भी खिताब हैं. ऐसा एथलीट देश ने पहले कभी नहीं देखा.

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लक्ष्य को हासिल करना हमेशा ही सुख की अनुभूति देने वाला होता है. हांगझोऊ एशियाई खेलों के लिए भारत की इस बार टैग लाइन थी- इस बार 100 पार. भारतीय दल पदकों का सैकड़ा लगाने में कामयाब हो गया. भारत ने 28 स्वर्ण, 38 रजत पदक सहित 107 पदक जीत कर नया इतिहास रच दिया है. पांच साल पहले जकार्ता एशियाई खेलों के मुकाबले यह बहुत बेहतर प्रदर्शन है. जकार्ता में भारत ने 16 स्वर्ण सहित 70 पदक जीते थे, जो उस समय तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था, जिसे भारत इस बार कोसों दूर छोड़ने में कामयाब हो गया है. यह सही है कि भारत के ज्यादातर पदक सिर्फ तीन खेलों एथलेटिक्स (29), निशानेबाजी (22) और तीरंदाजी (09) में आये हैं. भारत ने भले ही तीन खेलों में सर्वाधिक पदक हासिल किये हैं, पर कुछ ऐसी सफलताएं हैं, जिन्हें सालों-साल याद किया जायेगा. इसमें पहली सफलता सात्विक साईराज रैंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की बैडमिंटन में पुरुष युगल के स्वर्ण के रूप में है. यह एशियाई खेलों में बैडमिंटन में भारत का पहला स्वर्ण है. इससे पहले सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन पीवी सिंधु का रजत पदक के तौर पर था. इस खेल में चीन और इंडोनेशिया को एक ताकत के रूप में जाना जाता है. इसके अलावा जापान और मलयेशिया भी कोई बहुत पीछे नहीं हैं, पर यह भारतीय जोड़ी पिछले काफी समय से शानदार प्रदर्शन करती आ रही है और उसने इस सफलता के साथ विश्व में पहली रैंकिंग भी हासिल करना पक्का कर लिया है.

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भारत ने एथलेटिक्स में डंका बजाने का काम नीरज चोपड़ा की अगुआई में किया. वह भाला फेंक में 88.88 मीटर भाला फेंक कर अपने स्वर्ण की रक्षा करने में सफल रहे. नीरज भारत की इस समय इकलौती शख्सियत हैं, जिनके पास एशियाई खेलों के अलावा ओलिंपिक, विश्व चैंपियनशिप के भी खिताब हैं. इस तरह का एथलीट देश ने पहले कभी नहीं देखा. यह कहा जाता है कि चैंपियन को देख कर युवाओं को उस जैसा बनने की प्रेरणा मिलती है. यही वजह है कि एक साल पहले तक 78.05 मीटर का प्रदर्शन करने वाले किशोर जेना ने 87.54 मीटर भाला फेंक कर न सिर्फ रजत पदक जीता, बल्कि ओलिंपिक खेलों में नीरज के साथ पदक जीतने की दावेदारी भी पेश की है. असल में नीरज ने टोक्यो ओलिंपिक में जिस प्रदर्शन से स्वर्ण पदक जीता था, उससे वह मात्र 0.04 मीटर ही पीछे रहे. तीरंदाजी ऐसा खेल है, जिसमें भारत लंबे समय से अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहा है, पर एशियाई खेल हों या ओलिंपिक, भारतीय तीरंदाज झंडा गाड़ने में सफल नहीं हो पा रहे थे. इस बार शानदार प्रदर्शन से वे भी झंडा गाड़ने में सफल रहे. भारतीय दल ने कंपाउंड तीरंदाजी में दांव पर लगे पांचों स्वर्ण पदकों पर कब्जा जमा कर भारतीय परचम को लहरा दिया. ज्योति सुरेखा वेन्नम और ओजस प्रवीन ने तो तीन-तीन स्वर्ण पदकों पर कब्जा जमाया. दोनों ने पुरुष और महिला वर्ग के व्यक्तिगत और टीम स्पर्धा के स्वर्ण जीतने के साथ मिश्रित वर्ग के स्वर्ण पर कब्जा जमाया. भारत तीरंदाजी में पांच स्वर्ण के अलावा दो रजत और दो कांस्य पदक भी जीतने में शामिल रहा, पर यह सफलता भी ओलिंपिक के लिए बहुत उम्मीद नहीं बंधाती है. वजह यह है कि भारतीय तीरंदाजों का यहां कंपाउंड वर्ग में प्रदर्शन शानदार रहा है और यह ओलिंपिक में शामिल ही नहीं है. रिकर्व शामिल है, जिसमें प्रदर्शन दो पदक जीतने के बाद भी साधारण रहा है.

क्रिकेट और कबड्डी दो ऐसे खेल हैं, जिनमें भारत ने पुरुष और महिला, दोनों वर्ग के स्वर्ण पदक जीते. जहां तक क्रिकेट की बात है, तो भारतीय महिला टीम ने फाइनल में श्रीलंका को हरा कर पीले तमगे पर कब्जा जमाया, लेकिन पुरुष टीम को स्वर्ण पदक मिलने में नियमों का सहयोग मिला. असल में अफगानिस्तान ने पहले खेल कर 18. 5 ओवरों में पांच विकेट पर 112 रन बनाये थे, तभी बारिश ने खेल रोक दिया. भारतीय टीम की रैंकिंग बेहतर होने की वजह से उसे चैंपियन घोषित कर दिया गया. इसमें कोई दो राय नहीं है कि यदि पूरा मैच होता, तो भी परिणाम यही रहता. हां, इतना जरूर है कि भारत यदि पूरा मैच खेल कर सोने का तमगा जीतता, तो उसका मजा ही कुछ और होता. भारत इन खेलों में कबड्डी और हॉकी में अपनी खोयी प्रतिष्ठा को हासिल करने में सफल रहा है. इन दोनों खेलों में पांच साल पहले जकार्ता में भारत स्वर्ण पदक नहीं जीत सका था. कबड्डी को 1990 में एशियाई खेलों में शामिल किये जाने के बाद से 2014 के इंचियोन खेलों तक भारतीय बादशाहत बनी रही, लेकिन 2018 के खेलों में भारत को ईरान के हाथों यह स्वर्ण खोना पड़ा. अलबत्ता, इस बार भारत ने फिर से स्वर्ण जीत कर इस खेल में अपनी बादशाहत स्थापित कर दी है. जहां तक हॉकी की बात है, तो इस खेल में सफलता भारतीयों को सबसे ज्यादा सुकून पहुंचाती है. इसकी वजह इस खेल से 1928 के ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने और फिर लंबे समय तक दबदबा बने रहने से देशवासियों का इस खेल के साथ भावनात्मक लगाव बन जाना है. इस खेल में हमारी टीम पिछले कोच ग्राहम रीड के समय से ही अच्छा प्रदर्शन कर रही है और क्रेग फुलटोन के कोच बनने के बाद यह सिलसिला और आगे बढ़ा है. भारत पुरुष हॉकी में स्वर्ण पदक जीतने से पेरिस ओलिंपिक का टिकट कटाने में सफल रहा है. भारत को सीधा प्रवेश मिलने से उसे टोक्यो ओलिंपिक में जीते कांस्य पदक का रंग पेरिस में बदलने के लिए पर्याप्त समय मिल गया है.

हांगझोऊ एशियाई खेलों में पदकों की संख्या 100 पार जाने से भारतीयों का गर्व महसूस करना स्वाभाविक है, लेकिन यह सफलता इतराने वाली तो कतई नहीं है. यह सही है कि चीन का विश्व खेलों में जिस तरह का दबदबा है, उस तक पहुंचना अभी हाल-फिलहाल मुश्किल है, पर हमसे कहीं छोटे जापान और दक्षिण कोरिया हमसे इतने आगे क्यों हैं, यह सोचने वाली बात है. जापान ने इन खेलों में 51 स्वर्ण सहित 186 पदक और दक्षिण कोरिया ने 42 स्वर्ण सहित 190 पदक जीत कर क्रमश: दूसरा और तीसरा स्थान प्राप्त किया है. यह सही है कि भारत ने पिछले खेलों के आठवें स्थान को इस बार चौथे स्थान पर पहुंचाया है, पर यदि मुक्केबाजी, कुश्ती और वेटलिफ्टिंग जैसे खेलों की तैयारी पर और ध्यान दिया जाए, तो जापान और दक्षिण कोरिया को भी पीछे छोड़ा जा सकता है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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