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बिहार के बनगांव की घुमौर होली ब्रज की तरह खास, तीन दिनों तक संगीत की बहती रसधारा में झूमते हैं लोग

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सहरसा के बनगांव की होली ब्रज की होली जैसी ही खास है. यहां की घुमौर होली का पुराना महत्व है और तीन दिनों तक यहां लोग संगीत की रसधारा में डूबकर झूमते हैं. जानिये क्यों है खास...

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बिहार के सहरसा जिले के बनगांव की होली वैसे ही खास होती है जैसे ब्रज की होली. ब्रज की लठमार होली की तरह ही बनगांव की घुमौर होली बेहद अलग अंदाज में मनाई जाती है. जिसमें इंसानों को ही नहीं बल्कि आसपास के घरों की दीवारों को भी रंगों से नहला दिया जाता है. मान्यता है कि ये परंपरा भगवान कृष्ण के ही काल से चली आ रही है और बनगांव के प्रसिद्ध संत लक्ष्मी नाथ गोसाईं ने इसे यहां शुरू कराया था.

संत लक्ष्मीनाथ गोसाईं से जुड़ी मान्यता

सहरसा के बनगांव की होली राजकीय पर्व के रूप में तब्दील हो गयी है, संत लक्ष्मीनाथ गोसाईं द्वारा 18वीं सदी में सनातन धर्म के समरसता के प्रतीक के रुप में इसे बेहद ही अलग अंदाज में खेला जाता था. उनके द्वारा शुरू की गयी इस परंपरा को आज भी यहां के स्थानीय निभा रहे हैं और बिना किसी बैर के सभी जाति-धर्म के लोग एकसाथ मिलकर इस होली का आनंद लेते हैं.

तीन दिनों तक चलता है महोत्सव

बनगांव में हर साल की तरह इस बार भी होली महोत्सव का आयोजन किया गया है. तीन दिनों तक चलने वाले होली महोत्सव के इस आयोजन को लेकर मशहूर संगीत सम्राट अनूप जलोटा भी आए. उन्होंने अपने भजनों से समां बांधा तो लोग झूम उठे.कलावती उच्च विद्यालय के खेल मैदान में हुए कार्यक्रम में शामिल हुए अधिकारियों ने संत लक्ष्मीनाथ के बारे में कहा कि वो एक संत ही नहीं, एक संस्कृति थे. जिसके कारण ही बनगांव की होली का विशेष महत्व है.

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कंधे पर चढ़कर झूमते हैं लोग

बनगांव के होली का खास होने के कारण ही इसे राजकीय पर्व का दर्जा मिला है. होली के दौरान यहां का माहौल कुछ अलग ही होता है. लोग एक दूसरे के कंधे पर चढ़कर रंगों के इस त्योहार में झूमते हैं. कपड़ा फाड़ होली का भी दृश्य इस दौरान देखने को मिलता है. बनगांव की होली आधुनिकता के इस दौर में भी आज नहीं बदली है और त्योहार में प्रेम का रंग सबसे अधिक देखने को यहां मिलता है.

Posted By: Thakur Shaktilochan

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