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पति की दीर्घायु की कामना को लेकर सुहागिन आज मनायेगी वट सावित्री पूजा

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यह भारत भूमि परंपरागत संस्कृति व त्योहारों से सुसंपन्न है. यहां के लोग भी रुचि पूर्वक इस परंपरा को निभाने के लिए तत्पर रहते हैं

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सुपौल. यह भारत भूमि परंपरागत संस्कृति व त्योहारों से सुसंपन्न है. यहां के लोग भी रुचि पूर्वक इस परंपरा को निभाने के लिए तत्पर रहते हैं. इसी क्रम में पूरे भारतवर्ष में प्रचंड गर्मी के बीच पतिव्रता पर्व वट सावित्री (बरसायत) व्रत व पूजन भी आता है. हमारे पारिवारिक और पारंपरिक पर्व व त्योहार को मनाने के साथ यह भाव भी निहित होता है कि हमारे आने वाली नई पीढ़ी इस प्रकार के त्योहारों से जुड़े और अपनी धर्म व संस्कृति को पल्लवित, पुष्पित और संरक्षित करें. ऐसा कहना है सदर प्रखंड के सुखपुर निवासी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत विद्या धर्मविज्ञान संकाय के धर्मशास्त्र-मीमांसा विभाग में अध्ययनरत विष्णु झा का है. वट सावित्री व्रत व पूजन तत्व को उद्भावित करते हुए धर्मशास्त्री विष्णु झा ने कहा कि भारतीय संस्कारों से संस्कारित सावित्री रूपी पत्नी का पति के प्रति प्रेम, विश्वास व समर्पण का प्रतीक वट सावित्री व्रत और पूजन प्रतिपादित है. हमारी संस्कृति में यह व्रत आदर्श पतिव्रता नारीत्व व सतीत्व का प्रतीक बन कर आच्छादित है. विशेष कर मिथिलांचल में यह त्योहार बड़े ही भाव व निष्ठा से मनाया जाता है.

सुहागिन सावित्री रूपी महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि व आरोग्यता के लिए इस वट सावित्री त्योहार को पूरे विधि-विधान और नियम पूर्वक करती हैं. वृक्ष प्रधान इस व्रत व पूजन के तत्व पर प्रकाश डालते हुए श्री झा ने कहा कि प्रकृति के प्रार्थित होकर इसको संरक्षित करते हुए हम अपने जीवन में मनवांछित फल प्राप्ति कर सकते हैं. क्योंकि यह पूजा वट वृक्ष प्रधान पूजा है. वट वृक्ष को ज्ञान, निर्वाण व दीर्घायु का पूरक हमारे धर्मशास्त्र व आयुर्वेद में माना गया. इसी वृक्ष के नीचे कई साधकों ने अपनी साध्य को सिद्ध किए हैं. देवी सावित्री भी वट वृक्ष में प्रतिष्ठित रहती है. भक्तशिरोमणि तुलसीदास जी ने संगम स्थित इस अक्षय वटवृक्ष को तीर्थराज का छत्र कहा है. इस पूजन के दौरान सुहागिन महिलाएं वटवृक्ष में रक्षा-डोर बांधती है. यह डोर पत्नी प्रेम से सिंचित व पति रक्षित होती है. दांपत्य जीवन में बांधने वाले यह वही डोर है, जो डोर अटूट होकर जीवन को सुगति प्रदान करती हैं. ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को यह पतिव्रता पूजा हमारे शास्त्रों ने हमें दिया है. जो इस बार 06 जून को मनाया जाएगा. प्रातः काल सूर्योदय पश्चात दोपहर 3:15 तक विशेष शुभ मुहूर्त इस पूजन के लिए बन रहा है.

वट सावित्री पूजा विधि व सामग्री

वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए बांस का पंखा, खरबूज, लाल कलावा, कच्चा सूत, मिट्टी का दीपक, घी, धूप-अगरबत्ती, मौसमी फल जैसे आम व लीची इत्यादि की प्रमुखता होनी चाहिए. फूल, रोली, 14 गेहूं के आटे से बनी हुई पूड़ियां, 14 गेहूं के आटे से बने हुए गुलगुले, सोलह शृंगार की चीजें, पान, सुपारी, नारियल, भींगे हुए चने, जल का लोटा, बरगद की कोपल, फल, कपड़ा सवा मीटर, पूजा थाली, मिठाई, चावल और हल्दी, हल्दी का पानी मिलाकर थापा के लिए और गाय का गोबर, इसके बाद बांस के पंखे से हवा करें और फिर वट वृक्ष की परिक्रमा करें.

नई दुल्हन के लिए रहता है विशेष आयोजन

विष्णु झा ने कहा कि नई दुल्हन सोलह शृंगार कर पूजा की सभी सामग्रियों को किसी थाली में सजाकर वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ के पास पहुंचे. पहली बार वट सावित्री व्रत रखने वाली महिलाएं कपड़े से बना दुल्हा-दुल्हन का जोड़ रखकर पूजा करें. कपड़े का जोड़ा उपलब्ध न हो तो मिट्टी से बने दुल्हा दुल्हन का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके लिए कच्चा धागा लेकर वृक्ष के 05 से 07 बार परिक्रमा करें. फिर वट वृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री सत्यवान की कथा सुनें. अपने पति की लंबी आयु के लिए कामना करें. इसके बाद चने का प्रसाद बाटें.

इस वट सावित्री त्योहार की वैज्ञानिक आधार

वटसावित्री पूजन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करते हुए विष्णु झा ने कहा कि वेदों को सृष्टि विज्ञान का मुख्य आधार माना गया है. हमारे धार्मिक ग्रंथों में पर्यावरण सुरक्षा सूत्र प्रतिपादित किए गए हैं. जो कि विभिन्न धार्मिक आचरणों से झलकते हैं. यज्ञ एवं हवन से वायुमंडल को शुद्ध करना भी सनातन धर्म का विषय रहा है. व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, दीर्घायु रहें, नीति पर चले और पशु, वनस्पति व जगत के साथ सहचर्य रखें, यही वैदिक साहित्य की विशेषता है. इसी प्रकार के व्यवहार में से वट सावित्री पूजन भी आते हैं. जो यह बताते हैं कि हमारे प्रकृति पूजन से अखंड सौभाग्य का वरदान हमें प्राप्त हो.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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