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वर्ग कक्ष की कमी गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा में आज भी बड़ी बाधा

प्रकाश कुमार,समस्तीपुर : जिले के मोहिउद्दीननगर प्रखंड स्थित उच्च माध्यमिक विद्यालय करीमनगर की बात करें या पटोरी प्रखंड अंतर्गत उच्च माध्यमिक विद्यालय बहादुरपुर की पर्याप्त वर्ग कक्ष नहीं होने के कारण पठन-पाठन में समस्या उत्पन्न हो रही है. प्लस टू उत्क्रमित उच्च विद्यालय दरबा, उच्च माध्यमिक विद्यालय शिउरा, राजकीयकृत इंटर विद्यालय धमौन, उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय सोमनाहा, उच्च माध्यमिक विद्यालय चकपहाड़, उच्च माध्यमिक विद्यालय मोरवा उत्तरी, उच्च माध्यमिक विद्यालय निकसपुर सहित जिले के सभी प्रखंड में अधिकांश विद्यालयों में वर्ग कक्ष के कमी के कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करना बेमानी होगा. बिहार लोक प्रशासन एवं ग्रामीण विकास संस्थान को दिए फीडबैक को देखे तो संबंधित विद्यालय के प्रधानाध्यापक अपनी व्यवस्था से परेशान हैं. सरकारी विद्यालयों में संसाधन व शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों का पठन-पाठन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. जबकि स्कूलों की व्यवस्था सुधारने को लेकर एक ओर जहां केंद्र और राज्य सरकारें पैसा पानी की तरह बहा रही हैं. मिड डे मील, पोशाक, छात्रवृत्ति देने से लेकर शिक्षकों की बहाली और चकाचक भवन बनाये जा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही है. शिक्षकों की लापरवाही और आम लोगों की निष्क्रियता भी इसकी वजह है. इन सब के बावजूद भी शिक्षा व्यवस्था में कोई गुणात्मक सुधार नहीं दिख रहा है. सरकारी स्कूलों में ड्रेस, भोजन, किताबें और छात्रवृति, डायरी के मुफ्त दिये जाने के बावजूद सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या में कमी आ रही है. वहीं छोटे से छोटे स्तर पर गली-मोहल्लों में खोले गये निजी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ रही है. संसाधन और पढ़ाई की गुणवत्ता की वजह से यह बड़ा अंतर देखा जा रहा है. शिक्षा में सुधार को लेकर शिक्षा विभाग संकल्पित है एवं इसके लिए पिछले कुछ वर्षों से लगातार प्रयास किये जा रहे हैं. अपर मुख्य सचिव केके पाठक के योगदान के बाद से शिक्षा विभाग में सुधार का अभियान छिड़ा है. इसको लेकर लगातार प्रयास जारी है. विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति, शिक्षकों की उपस्थिति को सुदृढ़ करने का कार्य लगातार जारी है. शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए बड़े स्तर पर शिक्षकों को नियुक्ति तक की गयी है. साथ ही बड़े पैमाने पर नये शिक्षकों को ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में पदस्थापित किया गया है. लेकिन बच्चों के अनुपात के अनुसार अब भी शिक्षकों की कमी है. इन सब के बावजूद आज भी जिले के सैकड़ों विद्यालय ऐसे हैं, जहां इंफ्रास्ट्रक्चर की घोर कमी है. भवनहीन विद्यालय की संख्या भी जिले में कम नहीं है. इन विद्यालयों में बच्चों के बैठने के लिए बेंच-डेक्स तक की कमी है. वहीं शिक्षकों के बैठने तक के लिए कुर्सियों का अभाव है.

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