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तापमान सहनशील व कम अवधि वाले प्रभेद इजाद करने पर जोर

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तीसरे दिन देश के 25 से अधिक राज्यों से पहुंचे कृषि एवं मौसम वैज्ञानिकों ने अपने-अपने संस्थानों से जुड़े वार्षिक रिपोर्ट को आईसीएआर के विशेषज्ञों के समक्ष प्रस्तुत किया.

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पूसा : डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा में मौसम विज्ञान विषय पर चल रहे राष्ट्रीय स्तर के कार्यशाला के तीसरे दिन देश के 25 से अधिक राज्यों से पहुंचे कृषि एवं मौसम वैज्ञानिकों ने अपने-अपने संस्थानों से जुड़े वार्षिक रिपोर्ट को आईसीएआर के विशेषज्ञों के समक्ष प्रस्तुत किया. कार्यशाला का नेतृत्व कर रहे मौसम विभाग पूसा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अब्दुस सत्तार ने बताया कि कार्यशाला के दौरान विशेषज्ञों ने निकरा परियोजना की समीक्षा की है. इस परियोजना के अधीन देश में कुल 20 केंद्र कार्यरत हैं. इन केंद्रों के जरिए ही किसानों को ग्रामीण स्तर पर मौसम आधारित कृषि मौसम परामर्श मुहैया कराया जाता है. उन्होंने बताया कि इस परियोजना के तहत अनुसंधान भी किये जा रहे हैं जिसमें जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के अच्छे प्रभावों का भी आकलन किया जाता है. इसके आधार पर ही आईसीएआर को रणनीति बनाने में मदद मिलती है. बताया कि ठीक इसी तरह अखिल भारतीय कृषि मौसम परियोजना के अधीन भी देश में लगभग 30 केंद्र कार्यरत हैं. बिहार में एक ही केंद्र हैं, जो पूसा विवि में अवस्थित हैं. इस तीन दिवसीय कार्यशाला का नतीजा व अनुशंसा कार्यक्रम के समाप्ति बाद ही निकलकर सामने आयेगा. मौसम वैज्ञानिक शांतनु कुमार बल ने बताया कि धरती का तापमान बढ़ रहा है. मौसम आधारित फसलों को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने के लिए ही कार्यशाला में चिंतन मंथन जारी है. पूर्व कुलपति डा एसएन पशुपालक ने कहा कि किसानों के खेत में फसलों की बुआई से लेकर कटाई तक जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रही है. जाड़े के मौसम में भी तापमान बढ़ रहा है. बिहार में खासकर आलू की फसल तापमान बढ़ने से प्रभावित हो रही है. जलवायु परिवर्तन की दौर में चना की खेती ज्यादा लाभकारी है. मौसमीय परिवर्तन के अनेक कारण है जिसमें प्रदूषण, जंगल, जल की कमी आदि शामिल हैं. तापमान सहनशील एवं कम अवधि वाले प्रभेदों काे ईजाद करने की जरूरत है.

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