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नाव के सहारे नदी पार कर स्कूल जाते हैं सिरसिया के बच्चे

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यह स्थिति है हसनपुर प्रखंड क्षेत्र के सिरसिया गांव की. सिरसिया गांव के बच्चों को स्कूल जाने के लिए नाव के सहारे नदी पार करनी पड़ती है.

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हसनपुर : आंखों में सपने, कंधे पर बस्ता और जान हथेली पर. यह स्थिति है हसनपुर प्रखंड क्षेत्र के सिरसिया गांव की. सिरसिया गांव के बच्चों को स्कूल जाने के लिए नाव के सहारे नदी पार करनी पड़ती है. बच्चे रोज यह खतरा मोल लेते हैं ताकि पढ़ाई न छूटे. पिछले कई वर्षों से स्थिति ऐसी ही बनी हुई है. एक ही पंचायत के दो हिस्से नदी की वजह से बंटे हुए हैं. लोगों को पंचायत के दूसरे हिस्से में जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है. छात्राओं ने बताया कि यह स्थिति पिछले कई वर्षों से बनी हुई है. हर बार प्रशासन से कहा जाता है कि इस नदी पर एक पुल बनवा दीजिए या सरकारी नाव की व्यवस्था कर दीजिये. लेकिन, अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. एक छात्रा ने कहा कि स्कूल जाना हो तो कई बार सोचना पड़ता है. उन्होंने बताया कि अभी कुछ दिनों पहले ही दो छात्रा नाव का संतुलन बिगड़ने की वजह से बीच नदी में गिर गयी थी. बड़ी मुश्किल से उनको बचाया गया. प्रखंड के आजाद इदरीसी व ग्रामीण मो. मुन्ना, अनवर इक़बाल का कहना है कि नदी पार करने के लिए नाव एकमात्र सहारा है. वह भी इतना छोटा है कि कुछ लोग के बैठने से तो नाव का संतुलन बिगड़ जाता है. उन्होंने छात्राओं की सहूलियत के लिए प्रशासन से दो नाव देने की मांग की है.

जान जोखिम में डालकर रोज नदी पार करते हैं लोग

मोहनपुर : प्रखंड का एक गांव ऐसा गांव है, जिसमें निवास करने वाले बीस हजार से ऊपर की आबादी के लिए कोई सड़क नहीं है. गंगा नदी के दक्षिणवर्ती तट के बाद बसे यह गांव धरनीपट्टी पश्चिमी पंचायत के अंतर्गत आता है. गंगा नदी से होने वाले कटावों ने बरुआ, हरदासपुर और सरसावा जैसे गांव को मुख्यधारा से काटकर रख दिया. इधर, ये लोग हर रोज नदी मार्ग से पत्थरघाट स्थित बाजार आते हैं. यह बाजार प्रखंड मुख्यालय के निकट है. नदी के दक्षिणवर्ती क्षेत्र में बसे इन गांवों के विकास के लिए चार-चार विद्यालय स्थापित किये गये हैं. लेकिन इन विद्यालयों तक पहुंचने वाले करीब तीन दर्जन शिक्षक भी उतरवर्ती क्षेत्र से आते हैं. सामान्य आदमी से लेकर शिक्षकों तक के नदी पार करने के लिए सरकार की ओर से एक भी नाव नहीं है. रसलपुर घाट से निजी नाव चलाई जाती है. जिनका एक तरफ का भाड़ा ₹30 है. अनेक बार लोगों ने पीपा पुल की मांग उठाई. लेकिन उनकी मांग दब कर रह गयी. यह आबादी धरनीपट्टी पश्चिम पंचायत से जुड़ी हुई है. वर्ष 1999 और 2021 के कटावों ने लोगों की कृषि भूमि एवं गृह भूमि छीन ली. खेती के सिवा जीविका का दूसरा कोई साधन नहीं था. इस कारण यह बीस हजार की आबादी पटना जिले के बख्तियारपुर प्रखंड के सीमा पर जाकर बस गये. इस आबादी के लिए अस्पताल और दूसरी सुविधाओं के भी उचित व्यवस्था नहीं है. बाढ़ के समय में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. नाव डूबने की अब तक अनेक घटनाएं हुई है. इन घटनाओं में दर्जनों लोग मारे जा चुके हैं. सरकार मुआवजा देकर अपना कर्तव्य पूरा होना मान लेती है. खेती और पशुपालन से जुड़ी हुई यह आबादी दो नदियों के बीच में निवास करती है. लगातार मेहनत और लग्न ही इस आबादी के मुंह में निवाला डाल पाती है. महज एक पुलिया और यातायात के दूसरे साधनों के अभाव में यहां के बच्चे उच्च शिक्षा भी प्राप्त नहीं कर पाते हैं. कुछ वर्षों से एक प्राथमिक विद्यालय को उत्क्रमित कर इंटरमीडिएट का दर्जा दिया गया. वर्षों से इस विद्यालय में दो प्रतिनियोजित शिक्षकों के हवाले शिक्षा व्यवस्था थी. इस बार की बहाली में कुछ शिक्षक आये हैं. लेकिन इंटरमीडिएट के बाद अब भी छात्रों का कोई भविष्य नहीं दिखाई दे रहा. साग सब्जी से लेकर जरूरत के दूसरे सामानों के लिए सैकडों स्त्री-पुरुष जान जोखिम में डालकर रोज नदी पार करते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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