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मां है तो जीवन है, मां में वह शक्ति है जो अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजर सकती है

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मदर्स डे पर महिलाओं ने रखे अपने विचार

सहरसा.देश में मातृशक्ति की आराधना सदियों से होती रही है. नारी को भगवान का दर्जा यहां प्राप्त है. जन्म से लेकर मृत्यु तक यहां मातृशक्ति की विभिन्न रूपों में पूजा होती रही है. इसमें सबसे बडा दर्जा जन्म देने वाली मां का है. मां में वह शक्ति है, जो अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजर सकती है. इसमें मई महिने के दूसरे रविवार को मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है. हमारी भारतीय संस्कृति में परमात्मा को मातृसत्ता के रूप में स्वीकार किया गया है. दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिला मां होती है. मदर्स डे को लेकर युवाओं में अब काफी जागरूकता बढी है. मां के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में आज के युवा व बच्चे पीछे नहीं हैं. इस दिन के इंतजार में बच्चे रहने लगे हैं कि कब यह दिन एक बार फिर आये. जिससे वे अपने भावनाओं से मां के प्रति अपनी श्रद्धा दिखा सके. मां जीवन दायिनी है. एक चलते फिरते, सोचने समझने वाले बच्चों को मां ही संसार की रीत सिखाती है. मां व उनकी ममता के बिना सबकुछ अधुरा है. मां बच्चों के हंसने पर हंसती है एवं उसके रोने पर रो देती है. मांं त्याग व तपस्या की प्रतिमूर्ति है. संतान जब कभी भी संकट में पड़ता है तो अनायास मुंह से जब कोई शब्द निकल पड़ता है तो वह शब्द और कुछ नहीं केवल मां होती है. वैसे जीवन दायिनी मां की उपेक्षा भी अब देखी जा रही है. लोग मदर्स डे पर सिर्फ खानापूर्ति करने लगे हैं. लेकिन आज भी श्रवण कुमार हैं जो अपने मां एवं पिता की सेवा में खुद को झोंक रखा है.

ईस्ट एन वेस्ट टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज की निदेशिका मनीषा रंजन ने कहा कि मदर्स डे सिर्फ खानापूर्ति ना रहे इसके महत्व व मां के किये गये त्याग को भी समझने की जरूरत है. नव भौतिकवादी युग में बच्चे मां व पिता के प्रति उनके दायित्वों को भूल रहे हैं. जिसे बच्चों को समझने की जरूरत है. सिर्फ मदर्स डे पर ही मां को याद करें ये ना हो. जिस मां ने संतान के लिए दिन रात अपने ममता की छांव प्रदान करने का काम किया उसके लिए केवल एक दिन ही नहीं पूरा जीवन समर्पित होना चाहिए. बच्चों को इसकी पूरी समझ होनी ही चाहिए. बच्चे जब बडे हो जाते हैं तो वे अपनी मां व पिता की जिम्मेदारी को भूल जा रहे हैं. इसका निदान सरकारी नियम से नहीं हो सकता. जबतक बच्चे इसे अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे, मां-बाप को बच्चों से कष्ट होता रहेगा. बच्चों को अपनी निजी जीवन की व्यस्तताओं से समय निकाल कर जन्म देने वाली मां व पिता की देखभाल करने जरूरत है.

माध्यमिक विद्यालय शिक्षिका सीमा झा ने कहा कि बच्चों के लिए मां से बढ़कर इस संसार में दूसरा कोई नहीं है. मां अपने सीने से लगाकर अपने बच्चों का परवरिश शुरू करती है एवं उसके जीवन की खुशहाली के लिए अंत तक संघर्ष करती है. लेकिन आज बच्चे माता-पिता के इस संघर्ष को भूलते जा रहे हैं. जिसे समझने की जरूरत है. मां अपने अंतिम सांस तक बच्चों की सलामती के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती है. अपने बच्चों को कष्ट में मां नहीं देख सकती. आज युवा होते ही बच्चे माता पिता के इस त्याग को भूल रहे हैं. जिससे घर घर यह शिकायत सुनने को मिल जाती है कि बच्चों से माता पिता प्रताड़ित हो रहे हैं. युवा होते बच्चों को यह सोचना होगा कि भारतीय संस्कार में मां व पिता ईश्वर के साक्षात रूप हैं. इनके लिए एक दिन नहीं उनके जीवन तक सेवा की जरूरत है.

गृहिणी चांदनी कुमारी ने कहा कि सिर्फ फेसबुक, व्हाट्सएप के माध्यम से मां के प्रति श्रद्धा अर्पित करना अब फैशन बन गया है. जबकि हकीकत इससे काफी भिन्न है. आज भी बड़े होकर बच्चे अपने मां एवं पिता को प्रताड़ित करते हैं. जबकि जन्म दात्री मां उसके हर खुशी के लिए अपने अंतिम सांस तक ईश्वर से प्रार्थना ही नहीं करती बल्कि यथासंभव उसे खुशी प्रदान करने की कोशिश भी करती है. लेकिन आज के युवा मां व पिता के द्वारा किए गए समर्पण को भूल उन्हें कष्ट पहुंचाने का कार्य करते हैं. जबकि मां से बड़ा संसार में कुछ भी नहीं है. मां नहीं तो जग सूना है.

सरकारी विद्यालय में कार्यरत अंगिरा सिंह ने कहा कि बच्चों के लिए दोहरी जिंदगी जीने का आनंद एक मां ही समझ सकती है. विद्यालय के दायित्व से मुक्त होने के बाद अपने बच्चों के पास पहुंचने की हड़बड़ाहट एक मां ही समझ सकती है. उन्होंने कहा कि विद्यालय से घर बच्चों के पास पहुंचने की हड़बड़ाहट इतनी होती है कि रास्ते में सवारी के लिए ऑटो रोकता है तो मन झल्ला उठता है. उसे अनायास ही जल्द चलने के लिए मुंह खुल जाते हैं. घर पहुंचते ही पहले बच्चे के पास पहुंचकर बिना थके उसके फरमाइश पूरे करने में इस कदर खो जाती हैं कि समय का ध्यान तक नहीं रहता. बच्चे स्वस्थ्य रहे यह सभी मां की पहली इच्छा होती है. फिर उसके पढाई व उसके कैरियर की चिंता रहती है. बच्चों के साथ मां का जीवन कल्पनातीत है. बच्चे हैं तो मां का जीवन उर्जावान है.

गृहिणी रूबी कुमारी ने कहा कि मां श्रद्धा है पिता विश्वास. संबंध का जहां तक सवाल है इसमें मां तथा संतान से बड़ा कोई रिश्ता नहीं है. मां सृष्टि का ही दूसरा नाम है. मां जो अपना उदर में गढ़कर सुंदर संसार प्रदान करती है. मदर्स डे ने हमें मां को स्मरण कर सौभाग्यशाली बनने का मौका दिया है. उन्होंने कहा कि वह संतान बडे भाग्यवान हैं जो अपने मां व पिता के वचन पर चलते हैं. उन्होंने कहा कि बच्चा जितना भी बड़ा हो जाये, मां के लिए वह हमेशा शिशु के रूप में ही रहता है. मां की ममता की छांव में बच्चों का जीवन सकून से गुजरता है.

गृहिणी किरण झा ने कहा कि उम्र के साथ हर व्यस्क अपनी मां से इतर अपनी अलग सोच एवं अपना अलग जीवन गढता है. जो शाश्वत एवं सामान्य बात है. लेकिन इस दौड में भी मां की ममता कम नहीं होती. बच्चों को उदास देखकर मां उसके उदासी को जानने एवं उसे पूरा करने का हर संभव प्रयास करती है. बच्चों के खुशी के लिए मां अपनी जान तक गंवा देती है. लेकिन आज परिस्थिति विपरीत दिख रही है. बच्चे बड़े होकर मां बाप के समर्पण को भूल जा रहे हैं एवं प्रताड़ित करने की भी बातें सामने आ रही है. जो एक मां के प्रति संगीन अपराध की श्रेणी में आता है. सिर्फ इंटरनेट के माध्यम से नहीं बल्कि इसे हकीकत में जीने की जरूरत है.

आर्ट क्लासेज की निदेशिका चांदनी ने कहा कि सिर्फ एक दिन मां के लिए नहीं वर्ष का पूरा दिन मां का अपने बच्चों के लिए होता है. बच्चों की खुशी में मां खुश होती है एवं उसके दुख में हुआ दुखी रहती है. मां से श्रेष्ठ संसार में कुछ भी नहीं है. मां अपने बच्चों की सिर्फ परवरिश ही नहीं करती. बल्कि आजीवन उसके सुरक्षित एवं खुशहाल रहने की कामना करती है. लेकिन आज की युवा पीढ़ी मां के इस दर्द को कम समझ पा रहे हैं. जब तक वे यह पूरी समझ पाते हैं तब तक मां उनके पास नहीं होती. जरूरत यह है कि बच्चे अपनी मां को समय से समझें व उन्हें आदर देते रहें.

गृहिणी सोनी कुमारी ने कहा कि एक मां दोहरी नहीं तिहरी भूमिका में होती है. बच्चों के परवरिश से लेकर घर एवं परिवार के नाते रिश्ते को भी उन्हें संभालना होता है. आज के भागदौड़ भरी जिंदगी में इन सभी भूमिकाओं को मां-बाप बखूबी निभा रहे हैंं. लेकिन युवा होते बच्चे मां की इन भूमिका को भूल रहे हैं. जिससे मां को जो सम्मान मिलना चाहिए उसमें कमी आने लगी है. युवाओं को सिर्फ इंटरनेट माध्यम से ही नहीं हकीकत में भी अपने मां व पिता को इतना आदर सम्मान देना चाहिए जिसकी अपेक्षा संतानों से रहती है.

गृहिणी बबिता मिश्रा ने अपने उदगार व्यक्त करते कहा कि मां श्रद्धा है पिता विश्वास. संबंध का जहां तक सवाल है इसमें मां एवं संतान से बड़ा कोई रिश्ता नहीं है. मां सृष्टि का ही दूसरा नाम है. मां जो अपना उदर में गढ़ कर सुंदर संसार प्रदान करती है. उन प्रत्यक्ष देवता को समर्पित यह मदर्स डे हमें मां को स्मरण कर सौभाग्यशाली बनने का मौका दिया है. उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी मानस में लिखे हैं सुनु जननी सोइ सुत बढ भागी जे पितु मातु वचन अनुरागी. वह संतान बडे भाग्यवान हैं जो अपने मां एवं पिता के वचन पर चलते हैं.

राजनीति में पहचान रखने वाली नमिता पाठक ने कहा कि बच्चों के लिए दोहरी जिंदगी जीने का आनंद एक मां ही समझ सकती है. विभिन्न दायित्व से मुक्त होने के बाद अपने बच्चों के पास पहुंचने की हडबडाहट एक मां ही समझ सकती है. उन्होंने कहा कि बच्चों के पास पहुंचने की हडबडाहट को सिर्फ एक मां ही समझ सकती है. मां के बिना संसार अधुरा है. यह आज के बच्चे तब तक ही समझ रहे हैं जबतक वे चलना नहीं सीखते. जबकि मां अपने अंतिम सांस तक अपने औलाद की सलामती के लिए व्रत से लेकर ईश्वर से हमेशा प्रार्थना करती है. मां के लिए एक दिन नहीं बल्कि मां व पिता के जीवन के आखिरी सांस तक बच्चों को समर्पित रहना चाहिए. बच्चों के साथ मां का जीवन कल्पनातीत है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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