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दुकान व मकान में काम करते हैं बाल मजदूर

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ढ़कर कैरियर बनाने की उम्र में करते हैं मजदूरी

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पढ़कर कैरियर बनाने की उम्र में करते हैं मजदूरी जिम्मेदार करते हैं कागजी खानापूर्ति सौरबाजार बाजारों, चौक चौराहे के दुकानों एवं मकानों में धडल्ले से बाल मजदूर काम करते हैं. लेकिन जिम्मेदार लोग इनकी अनदेखी कर पल्ला झाड़ लेते हैं. सौरबाजार, बैजनाथपुर, समदा बाजार सहित अन्य चौक चौराहे एवं बाजारों में चाय, नाश्ता दुकान, होटल सहित अन्य प्रतिष्ठानों में बाल मजदूर से प्रतिष्ठान संचालकों द्वारा काम कराया जाता है. जो उम्र बच्चों को पढ़ लिखकर अपना केरियर बनाने का होता है. उस उम्र में बच्चे एवं उसके अभिभावक मामूली पैसे के लालच में अपना कैरियर खराब कर मजदूरी करते हैं. इनमें अधिकांश अभिभावकों एवं बच्चों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम के बारे में जानकारी नहीं रहती है. जबकि सरकार द्वारा छह से 14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम लागू किया गया है. जिसमें बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने के साथ उनके किताब, कांपी, पोशाक एवं छात्रवृत्ति का भी प्रावधान है. यहां तक की आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के अभिभावक के बच्चों को नीजी विधालय में पढ़ने के लिए भी आरटीई के तहत नि:शुल्क व्यवस्था की गयी है बावजूद अभिभावक इन सारी सुविधाओं का लाभ लेकर अपने बच्चों को शिक्षित करने के बजाय मजदूरी कराते हैं. बाल मजदूरी अधिनियम 1986 के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के किसी बच्चे को किसी प्रतिष्ठान में काम में नहीं लगाया जाना चाहिए या अन्य किसी जोखिमपूर्ण रोजगार में नियोक्त नहीं किया जाना चाहिए. ऐसा करने पर बाल मजदूरी कराने वाले को छह महीने की न्यायिक हिरासत या 50 हजार अर्थदंड के सजा का प्रावधान है. विभाग के जिम्मेदार लोग बाजारों में घूमकर ऐसे लोगों को चिन्हित कर उनपर करवाई करने के बजाय कागजी खानापूर्ति करने में जुटे रहते हैं. जरूरत है ऐसे बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराकर उन्हें समाज के मुख्य धारा से जोड़कर उन्हें व उनके अभिभावकों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने की.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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