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लालबालू में ढाक की धुन पर मां जगदंबे की आरती का विशेष महात्म्य

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लालबालू में ढाक की धुन

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शशिधर झा, डगरूआ. पिछले चार दशक से लालबालू में मां दुर्गे की पूजा की जाती है.साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक इस भव्य मन्दिर में क्षेत्र के सभी समुदाय के लोग मिलकर आस्था प्रकट करते हैं.इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पिछले वर्षों में पूजा कमिटी के अध्यक्ष मुस्लिम समुदाय के लोग भी रहे हैं. वहीं पूजा में आपसी सहयोग कर एकता की मिसाल भी व्यक्त करते हैं.लालबालू पूजा कमिटी के पतित पावन सरकार व संत बढ़ई ने बताया कि दुर्गा पूजा में हर वर्ष बंगाल के कालाकार द्वारा पंडाल को भव्य स्वरूप प्रदान किया जाता है.जबकि विधि-विधान पूर्वक दुर्गापूजा करवाने के लिए इस वर्ष बनारस के पुरोहितों को आमंत्रित किया गया है.वहीं आदि शक्ति मां जगदम्बा को जगाने के लिए गढ़बनैली से आयी भक्त मंडली माता प्रांगण में ढाक बजाकर शक्ति की अधिष्ठात्री मां अम्बे की भक्ति करते हैं. इस मंदिर सच्चे हृदय से जिन्होंने भी मन्नते मांगी है, उन श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण हुई है. इसी कारण यहां चढ़ावे के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है.मंदिर में चढ़ावे के लिए भक्तजनों की भीड़ अष्टमी से दशमी तक देखने को मिलती है. यहां की आरती इतनी प्रसिद्ध है कि मार्ग से गुजरने वाले तमाम लोग आरती की एक झलक पाने को रुक जाते हैं.स्त्री व पुरुष मिलकर ढाक की धुन पर एक साथ आरती उतारते हैं.आरती के समय अद्भुत कला का प्रदर्शन भी किया जाता है.नवमी के दिन खिचड़ी महाभोग प्रसाद का वितरण किया जाता है तो षष्ठी को बेल को निमंत्रण देकर जोड़े बेल में लाल धागा बांधा जाता है.फिर उस बेल को तोड़कर निशा पूजा की जाती है.निशा पूजा सप्तमी रात्रि 11 बजे आरंभ होकर देर रात्रि सम्पन्न होती है. मेले का आयोजन शांतिपूर्ण तरीके से वोलेंटियर्स की मदद से की जाती है. फोटो. 8 पूर्णिया 6- लाल बालू स्थित दुर्गा मन्दिर परिसर में पूजा के लिए सजा पंडाल

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