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खराब मौसम देख किसान परेशान

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कहीं खेतों से खलिहान पहुंच रही फसलों की चिंता तो कहीं सूखा दाना भींगने का डर

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कहीं खेतों से खलिहान पहुंच रही फसलों की चिंता तो कहीं सूखा दाना भींगने का डरजिले में अभी कहीं मक्का की हो रही कटाई तो कहीं बेचने को किया जा रहा तैयार

पूर्णिया. पिछले तीन चार दिनों से खराब मौसम और बारिश की आशंका से पूर्णिया के मक्का किसान परेशान हैं. यदि अभी बे मौसम बारिश हो गई तो किसानों को बड़ा नुकसान हो सकता है. मक्का किसानों का मुख्य कैश क्रॉप है और उसकी यहां बड़े पैमाने पर खेती भी की जाती है. इस समय मक्का की फसलों को खेतों से बाजार तक ले जाने की तैयारी में किसान दिन रात एक किए हुए हैं. पूरा परिवार इसमें जुटा हुआ है. मगर, मौसम के इस तेवर ने किसानों को निराश कर दिया है. हालांकि वह मक्का को मौसम की इस मार से बचाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं पर वे खुद भी जानते हैं कि यह बहुत हद तक संभव नहीं.

खलिहान पर सूखने के लिए छोड़ा गया है मक्का :

गौरतलब है कि खेतों में मक्का की फसल तैयार है. गांवों में कहीं कटाई की जा रही है तो कहीं उसे खुले आसमान में खलिहान में सूखने के लिए छोड़ा गया है. मक्का से दाना छुड़ाने का काम भी अभी अधूरा पड़ा है. किसान पहले से इस कोशिश में थे कि बारिश का मौसम आने से पहले मक्का को तैयार कर उसके पैकेट बना दिए जाएं. बीच के दिनों की कड़क धूप देख वह उम्मीद भी कर रहे थे कि जल्द ही मक्का को तैयार कर बाजार तक पहुंचा सकेंगे. मगर, इधर अचानक मौसम ने करवट बदल लिया और तीन दिनों से बारिश के आसार भी बने हुए हैं आलम यह है कि किसी भी समय बारिश हो सकती है. किसानों का मक्का कहीं खेत किनारे कट कर रखा है तो कहीं खुले आसमान के नीचे पड़ा हुआ है. किसानों की परेशानी यह है कि पूरा मक्का सुरक्षित स्थानों तक नहीं पहुंच सका है. कहीं जगह तो कहीं व्यवस्था के अभाव के कारण उनका मक्का खुले आसमान के नीचे रखा हुआ है. वैसे किसान इसे ताबड़-तोड़ समेट भी रहे हैं पर यदि इस दौरान बारिश हो गई तो उनकी मुश्किलें बढ़ जायेंगी. पिछले तीन दिन से लगातार मौसम खराब रहने से किसान की चिंताएं बढ़ गयी हैं. बादल छाने से किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें नजर आ रही हैं.

गुणवत्ता खराब होने से बाजार में कम मिलेंगे दाम :

किसानों का कहना है कि अगर अभी खलिहानों में पड़ा मक्का बारिश से भींग गया तो न केवल उसकी गुणवत्ता खराब होगी बल्कि मात्रा में भी गिरावट हो सकती है. केनगर के किसान राघव साह ने बताया कि गुणवत्ता खराब होने से बाजार में दाम कम मिलेंगे जबकि मात्रा में गिरावट होने से वजन कम हो जायेगा. किसानों ने बताया कि मक्का भींग गया तो उसमें फफुंद पड़ सकता है और अंकुरन भी हो सकता है. बरसौनी के किसान जनार्दन त्रिवेदी ने बताया कि इससे कम से कम नुकसान 30 फीसदी तक हो जाएगा जबकि मेहनत पर भी पानी फिर जाएगा. सतकोदरिया के गोपाल साव बताते हैं कि बारिश ही नहीं मौसम में आए बदलाव से जो बाहरी नमी आयी है उससे भी मक्का को नुकसान हो रहा है. किसानों ने बताया कि तमाम प्रयासों के बावजूद रखरखाव का वह प्रबंधन नहीं हो पाता जिसकी इस मौसम में जरुरत होती है.

प्रति एकड़ 50 क्विंटल तक मक्का उपजाते हैं किसान :

बदलते दौर में मक्का बड़े कैश क्रॉप के रुप में उभरा है और यही वजह है कि किसान धान और गेहूं की खेती को छोड़ कर मक्का की खेती बड़े पैमाने पर कर रहे हैं. चूंकि हालिया सालों में विदेशों में मक्का की मांग बढ़ गई है इसलिए भी किसान मक्का के दीवाना हो गये हैं. हालिया सालों का आंकड़ा देखा जाए तो 2005-06 में मक्का की उत्पादकता 27 क्विंटल प्रति एकड़ थी जो बढ़कर 2018 तक 40.25 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो गई और आज यहां किसान प्रति एकड़ 50 क्विंटल तक मक्का का उत्पादन कर रहे हैं. बिहार में सर्वाधिक मक्का का उत्पादन पूर्णिया जिला में 9188 किग्रा. प्रति हैक्टेयर हो रहा है. इधर, मखाना की खेती पूर्णिया और आसपास के जिलों में बिल्कुल नहीं होती थी पर आज देश के 70 फीसदी मखाना का उत्पादन इसी इलाके में हो रहा है. आलम यह है कि मखाना की खेती का रकबा हर साल बढ़ते जा रहा है. इस साल भी बड़े पैमाने पर मक्का की खेती हुई है पर मौसम देख किसान सहमे हुए हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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