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कोमा में ‘इंडिया’, बदलेगा समीकरण: बंगाल और पंजाब के बाद इंडिया गठबंधन को बिहार में भी लगा झटका

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कांग्रेस के हठ और उसकी मनमानी से त्रस्त होकर जहां बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अलग हो कर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है, वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी ने भी अपने दमपर चुनाव लड़ने का संकेत दिया है.

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आठ महीने पूर्व जिस जोर-शोर से पटना में गैर भाजपा दलों की बैठक हुई और अगले कुछ दिनों में भाजपा के विकल्प के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर ‘इंडिया’ गठबंधन उभर कर सामने आया, वह अब कोमा में जा चुका है. खासकर बिहार में इंडिया के घटक दलों के बीच बड़ी फूट दिख रही है. गैर भाजपा दलों को एकजुट करने के अगुआ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे.

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उन्हीं की कोशिशों के बाद 23 जून, 2023 को पटना में गैर भाजपा दलों की पहली बैठक हुई और-धीरे धीरे 28 दलों के गठबंधन ने आकार लिया. हालांकि, कांग्रेस के हठ और उसकी मनमानी से त्रस्त होकर जहां बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अलग हो कर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है, वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी ने भी अपने दमपर चुनाव लड़ने का संकेत दिया है. इधर, बिहार में जहां ‘इंडिया’ के दो बड़े घटक दलों का आधार है, यहां जदयू की राह जुदा होती दिख रही है. जदयू के अलग हो जाने से बिहार में इंडिया का वजूद खत्म हो जायेगा और वह पिछले लोकसभा चुनाव की तरह महागठबंधन के रूप में ही बरकरार रहेगा.

पांच राज्यों के विस चुनाव के दौरान पड़ी बिखराव की नींव

दरअसल ‘इंडिया’ की इस बदहाली की कहानी पिछले दिनों हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से आरंभ हुई. जदयू ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कुछ सीट पर चुनाव लड़ने की इच्छा जतायी थी, लेकिन कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं हुई. उसी समय में जदयू की इच्छा भोपाल में ‘इंडिया’ की एक बैठक कराने की भी थी, लेकिन कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री और मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के दावेदार रहे कमलनाथ ने इसे टलवा दिया. इसके बाद जदयू ने मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे. इस बीच ‘इंडिया’ की कुछ बैठकें भी हुईं. मुंबई और बेंगलुरु में हुई बैठकों में यह भी तय हुआ कि सामूहिक चुनाव प्रचार हो, भाजपा के खिलाफ वन टू वन उम्मीदवार दिये जाएं. लेकिन, कांग्रेस अलग रास्ते पर चलती रही. लिहाजा घटक दल इससे दूर होते चले गये.

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बार-बार जदयू के अनुरोधों को टालती रही कांग्रेस

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि कांग्रेस की परेशानी अपने संख्या बल और लीडरशिप को लेकर रही़. कर्नाटक, केरल, तेलंगाना समेत जिन राज्यों में कांग्रेस मजबूत रही है, वहां सहयोगी दलों को सीट देने से कतराती रही. वहीं, बिहार समेत जिन राज्यों में घटक दल मजबूत हैं, वहां उसे सम्मानजनक सीट की दरकार है. इधर, जदयू लगातार सीटों के तालमेल के लिए जल्द से जल्द निर्णय लेने की बात करता रहा, लेकिन कांग्रेस की लीडरशिप इसे टालती रही. जदयू की इच्छा को दरकिनार कर बीच में ही राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकल पड़े.

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जदयू को उम्मीद थी कि जल्द से जल्द सीट का बंटवारा हो जाने से भाजपा के खिलाफ माहौल बनाया जा सकेगा. लेकिन, जदयू की यह चाहत पूरी नहीं हो पायी और अंतत: जदयू को लगा कि कांग्रेस और उसके मित्र दल न तो सीट शेयरिंग पर जल्दबाजी चाहते हैं और ही उनमें महत्वपूर्ण पदों को किसी दूसरे घटक दलों को देने की इच्छा है. जानकार बताते हैं कि कांग्रेस को उम्मीद थी कि सभी विपक्षी दल उसकी छतरी के नीचे आ जायेंगे. घटक दलों के सहयोग से हिन्दी पट्टी में भी उसे फैलने का अवसर मिलेगा. वहीं, दक्षिण के राज्यों में वह भाजपा की संख्या बढ़ने नहीं देगी. बहरहाल, दक्षिण के राज्यों में राजनीति किस करवट बैठेगी, यह तो चुनाव के दौरान दिखेगा, लेकिन बिहार में यह दावं उल्टा पड़ता दिख रहा है.

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