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सुर विरासत में ध्रुपद, ख्याल और लोकगीत गायन ने बांधा समां

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भारतीय नृत्य कला मंदिर में शनिवार को कला संस्कृति एवं युवा बिहार की ओर से ‘स्पीक मैके’ के सहयोग से ‘जश्न-ए-बिहार’ के तहत ‘सुर-विरासत’ का आयोजन किया गया. इसकी शुरुआत कला संस्कृति एवं युवा विभाग की अपर मुख्य सचिव हरजोत कौर, निदेशक संस्कृति रूबी, पद्मश्री पंडित राम कुमार मल्लिक ने किया.

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– भारतीय नृत्य कला मंदिर में ‘जश्न-ए-बिहार’ के तहत ‘सुर-विरासत’ का हुआ आगाज लाइफ रिपोर्टर@पटना भारतीय नृत्य कला मंदिर में शनिवार को कला संस्कृति एवं युवा बिहार की ओर से ‘स्पीक मैके’ के सहयोग से ‘जश्न-ए-बिहार’ के तहत ‘सुर-विरासत’ का आयोजन किया गया. इसकी शुरुआत कला संस्कृति एवं युवा विभाग की अपर मुख्य सचिव हरजोत कौर, निदेशक संस्कृति रूबी, पद्मश्री पंडित राम कुमार मल्लिक ने किया. हरजोत कौर ने कहा कि गायन, वादन और नृत्य, तीनों में बिहार की विरासत काफी समृद्ध रही है. आधुनिकता की दौड़ में हमलोग अपनी सांस्कृतिक विरासत से दूर होते जा रहे हैं. अगर आप देखियेगा, तो सबसे ज्यादा वैज्ञानिक, शास्त्रीय संगीत ही है, जो हर मौसम, हर समय के अनुसार रागों पर आधारित है. आज की हमारी पहल इसी को आगे बढ़ाने की एक छोटी सी कोशिश है. स्पीक मैके के मनीष कुमार ठाकुर ने कहा कि स्पीक मैके का प्रयास है, देश की युवा पीढ़ी के सामने उनके हेरिटेज को पहुंचाना. ताकि उनके मन में जो पूर्वाग्रह है हमारी सांस्कृतिक विधाओं को लेकर वह दूर हो सके. जैसे शास्त्रीय संगीत को अगर लें, तो युवा पीढ़ी उसे दूर भागते हैं. बिना सुने ही यह मान कर चलते हैं कि यह बहुत स्लो होता है, तो हमारा प्रयास है कि वो उसे जाने और समझें. …………………………. पद्मश्री पं राम कुमार मल्लिक ने श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध कार्यक्रम की शुरुआत दरभंगा घराने के पद्मश्री पं राम कुमार मल्लिक और डॉ समित मल्लिक के ध्रुपद गायन से हुई. आलाप से शुरुआत करते हुए उन्होंने राग मुल्तानी में प्रस्तुति दी. जिनके बोल थे ‘धन-धन तेरो रूप’… , ‘धमार की एक रचना बयन मद शोभे रे’… उसके बाद शूल ताल में ‘रे मन तू धीर न रहत’… की मनमोहक प्रस्तुति दी. संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित, सिवान के रहने वाले डॉ प्रभाकर कश्यप और डॉ दिवाकर कश्यप बंधु ने ख्याल गायन की प्रस्तुति दी. उनके साथ तबले पर डॉ राज कुमार नाहर ने संगत किया. राग शुद्ध कल्याण में विलंबित एक ताल में बंदिश ‘सकल गुण निधान’, ‘दान दो विद्या हरो अज्ञान’ , से अपने गायन की शुरुआत की और बिधना की है बात अनूठी, दादरा- जिया में लागे आन बान की प्रस्तुति दी. लोकगायक उमेश कुमार सिंह और उनके दल ने चैता गायन की प्रस्तृति दी. उन्होंने गायन की शुरुआत राम जी के भैयेले जनाम्वा हो रमा चैत महिनवा से की. इसके बाद उन्होंने देवी गीत लाले लाले चुनरी में गोटवा लागैबे हो, चैती छिटकल बा चौथी के चांद हो रमा गोरी के अगनवा और अंत में चैता घाटो पिया परदेसिया देवर घर लरिका हो रामा जैसे लोकगीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.

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