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शीतकालीन सत्र के दौरान जारी होंगे आर्थिक व सामाजिक सर्वे के आंकड़े, कई दलों ने उपजाति को लेकर उठाये सवाल

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जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी जैसे नेताओं ने आंकड़ों पर संदेह प्रकट किया है. सरकार ने उनकी आपत्तियों पर विचार करने का आश्वासन दिया है. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को इस विषय को देख लेने की बात कही है, लेकिन उन आपत्तियों को दूर कैसे किया जायेगा, इस बात को लेकर स्थिति साफ नहीं की गयी है.

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पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में चल रही सर्वदलीय बैठक खत्म हो गयी है. बैठक में जातीय गणना के आंकड़ों को लेकर चर्चा हुई. इस दौरान बीजेपी के नेताओं ने कई सुझाव दिये. बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा कि जाति आधारित गणना की रिपोर्ट में सभी वर्गों की डिटेल जानकारी दी गयी है. अब जाति आधारित गणना की रिपोर्ट आने के बाद सभी दलों की राय से हमलोग राज्य के हित में इस पर काम करेंगे. बैठक में सभी दलों के नेताओं ने कराये गये जाति आधारित गणना कराये की रिपोर्ट पर अपनी-अपनी राय एवं सुझाव दिये. सभी दलों के नेताओं ने जाति आधारित गणना कराये जाने को लेकर मुख्यमंत्री की सराहना की.

मुख्यमंत्री ने सभी दलों से सुझाव मांगा

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस गणना में पूरे तौर पर ठीक ढंग से सर्वे किया गया है. हर जाति की जानकारी दी गयी है. हर परिवार की आर्थिक, शैक्षणिक स्थिति की जानकारी ली गयी है. राज्य के सभी लोगों के उत्थान के लिये इस पर आगे विचार विमर्श कार्य किया जायेगा. हमलोगों का मकसद लोगों को आगे बढ़ाने का है. हमलोगों की काेशिश है कि जो पीछे और उपेक्षित हैं, उसकी उपेक्षा नहीं हो, सब आगे बढ़ें. इन सब चीजों को ही ध्यान में रखकर काम किया जायेगा. हमलोगों का मकसद सभी का विकास करना और उन्हें आगे बढ़ाना है. राज्य के हित में सबकी सहमति से कार्य करेंगे. मुख्यमंत्री ने सभी दलों से आगे भी सुझाव मांगा.

गणना के लिए 2019 से हो रही थी कोशिश

बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2019 से हम जाति आधारित गणना कराने के लिये प्रयासरत थे. हम चाहते थे कि हर दस साल में होने वाली जनगणना जब 2021 में होगी तो यह जातीय आधार पर हो. 18 फरवरी 2019 को बिहार विधानसभा एवं बिहार विधान परिषद् द्वारा जनगणना जातीय आधार पर कराने के लिए केन्द्र से सिफारिश करने के संकल्प को सर्वसम्मति से पारित किया गया. 27 फरवरी 2020 को विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से केंद्र सरकार से जनगणना 2021 जातीय आधार पर कराने के अनुरोध का प्रस्ताव पारित किया गया. 23 अगस्त 2021 को सभी दलों के प्रतिनिधियों के साथ हमने प्रधानमंत्री से मिलकर जाति आधारित गणना कराने का अनुरोध किया था. केन्द्र सरकार द्वारा इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गयी. फिर हमने निर्णय लिया कि राज्य सरकार अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना करायेगी.

नौ दलों की हुई थी बैठक

मुख्यमंत्री ने कहा कि एक जून 2022 को विधानमंडल के सभी नौ दलों की बैठक बुलायी गयी. उसमें सभी दलों के नेताओं ने जाति आधारित गणना पर अपनी सहमति दी. दो जून 2021 को मंत्रिपरिषद द्वारा इसे पारित किया गया. जाति आधारित गणना दो चरणों में कराया गया. प्रथम चरण 7 जनवरी से 21 जनवरी 2023 के दौरान सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया गया. इसके बाद द्वितीय चरण का पूरा सर्वे 15 अप्रैल 2023 से 15 मई 2023 तक पूर्ण करना था. इसमें कई प्रकार की समस्यायें आयीं. अंततः सर्वेक्षण का कार्य पांच अगस्त 2023 को पूर्ण कर लिया गया. उसके बाद संपूर्ण आंकड़े संग्रहित किये गये. जाति आधारित गणना का काम पूर्ण होने के बाद बापू के जन्मदिन के शुभ अवसर दो अक्टूबर को आंकड़ों को जारी किया गया.

कई नेताओं से हुई मुलाकात

मुख्यमंत्री ने कहा कि जाति आधारित गणना के पीछे मेरी धारणा बहुत पहले से रही है. वर्ष 1990 में पूर्व राष्ट्रपति महामहिम ज्ञानी जैल सिंह ने मुझे जातीय आधारित जनगणना की आवश्यकता को समझाया था. मैं श्रद्धेय मधुलिमये और तत्कालीन वित्त मंत्री मधु दंडवते से मिला था. उसके बाद मैं तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह से मिला था और इस पर चर्चा की थी. उस समय जनगणना पहले ही शुरू हो चुकी थी. इस कारण उसमें कोई बदलाव नहीं हो सका.

जल्दीबाजी में हो जाती हैं कई गड़बड़ियां

बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए विरोधी दल के नेता विजय सिन्हा ने कहा कि आंकड़े जल्दीबाजी में जारी हुए हैं. जल्दीबाजी में गड़बड़ियां हो जाती है. जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी जैसे नेताओं ने आंकड़ों पर संदेह प्रकट किया है. सरकार ने उनकी आपत्तियों पर विचार करने का आश्वासन दिया है. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को इस विषय को देख लेने की बात कही है, लेकिन उन आपत्तियों को दूर कैसे किया जायेगा, इस बात को लेकर स्थिति साफ नहीं की गयी है.

आर्थिक और सामाजिक सर्वे को भी जारी करने की मांग की

विजय सिन्हा ने कहा कि बैठक में भाजपा की ओर से जाति गणना के दौरान हुए आर्थिक और सामाजिक सर्वे को भी जारी करने की मांग की गयी. सरकार की ओर से कहा गया है कि शीतकालीन सत्र के दौरान इन आंकड़ों को जारी किया जायेगा. अभी इन आंकड़ों को एकत्र किया जा रहा है. विजय सिन्हा ने कहा कि भाजपा हमेशा पिछड़ों और दलितों के विकास के प्रति गंभीर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन तबकों के लिए कई योजनाएं चला रहे हैं. आर्थिक और सामाजिक सर्वे के आंकड़े आने के बाद योजनाओं का लाभ इन तबकों तक कितना पहुंच रहा है, इस बात का भी पता चलेगा.

जाति को गिनने में कई तरह की गड़बड़ी

हरि सहनी ने कहा कि सरकार ने जाति को गिनने में कई तरह की गड़बड़ी की है. कई जाति की संख्या बढ़ाने के लिए उनकी उपजातियों को एक ही जाति में शामिल कर दिया है. वहीं कई जातियों को उप जातियों में बांटकर उनकी संख्या कम कर दी गयी है. भाजपा ने नीतीश कुमार से पूछा कि जातीय जनगणना का मकसद विभिन्न जातियो की आर्थिक सामाजिक स्थिति जानना था, लेकिन सरकार ने ये जानकारी ही नहीं दी है कि किस जाति के लोगों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति क्या है.

सीएम नीतीश की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक

बिहार सरकार ने जो जातीय गणना करायी थी उसकी रिपोर्ट सोमवार 2 अक्टूबर को जारी कर दी गयी. रिपोर्ट जारी करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि 3 अक्टूबर को वे सीएम सचिवालय में नौ दलों के साथ सर्वदलीय बैठक की. इस बैठक में जातीय गणना के जारी आंकड़ों पर चर्चा हुई. निर्धारित समय के अनुसार सर्वदलीय बैठक में शामिल होने के लिए सभी नौ दलों के नेता सीएम सचिवालय पहुंचे जिसमें बीजेपी के नेता भी शामिल थे. सीएम नीतीश की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें 9 दलों के नेता शामिल हुए. बैठक में जातीय गणना की रिपोर्ट पर चर्चा की गयी सभी दलों से राय ली गयी. जातीय गणना को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से बुलाई गई बैठक 2 घंटे चली. इस बैठक में बिहार की 9 पार्टियों के नेता शामिल हुए. नीतीश कुमार ने बैठक में कहा की डेढ़ महीने बाद पूरी रिपोर्ट जारी की जाएगी, जिसमे आर्थिक सर्वेक्षण का आंकड़ा भी होगा.

हम जातीय गणना रिपोर्ट का स्वागत करते हैं

जातीय गणना की रिपोर्ट के सामने आने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीएम सचिवालय में सर्वदलीय दल की बैठक बुलाई थी. बैठक में शामिल होने से पूर्व कांग्रेस नेता शकील अहमद ने मीडिया से बातचीत की कहा कि इन आंकड़ों से देश और समाज उन्नति करेगा. कांग्रेस इसको स्वागत करती है. शकील अहमद ने कहा कि हम भी जातीय गणना रिपोर्ट का स्वागत करते हैं. सभी चीजों पर सबकी सहमति जरूरी है. वही इस सर्वदलीय बैठक में बीजेपी के नेता भी पहुंचे थे.

Also Read: बिहार जाति गणना: हिंदुओं में सबसे अधिक यादव, राजपूत से अधिक है ब्राह्मणों की आबादी

जमीन संबंधी मामले को देखा जाए

बीजेपी नेता और बिहार विधानपरिषद के नेता प्रतिपक्ष हरि सहनी ने कहा कि बैठक में सीएम नीतीश ने प्रजेन्टेशन दिया. उन्होंने कहा कि टूकड़े-टूकड़े में ये रिपोर्ट क्यों जारी कर रहे है. मैं तो चाहता हूं कि एक बार आर्थिक रिपोर्ट भी जारी हो. उनका पूरा रिपोर्ट देखने के बाद ही हम कोई भी बयान देंगे. वही माले विधायक महबूब आलम ने कहा कि बैठक में रिपोर्ट कार्ड जारी हुआ. विकास योजनाओं का लाभ सबको मिले. जमीन संबंधी मामले को देखा जाए. बीजेपी ने जातीय गणना को रोकने की तमाम कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली.

उपजातियों को लेकर जताया एतराज

बैठक में मौजूद हम पार्टी के नेता और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने भुइयां जाति और उसकी उप जातियों को अलग किए जाने पर ऐतराज जताया. उन्होंने कहा कि मुसहर जाति के लोगों को अलग अलग उपजाति में बांट कर उनकी संख्या को कम कर दिया गया है. उधर, राजद औऱ कांग्रेस के साथ साथ महागठबंधन में शामिल पार्टियों ने जातीय जनगणना की रिपोर्ट को ऐतिहासिक करार दिया. राजद की ओर से तेजस्वी यादव औऱ कांग्रेस की ओर से शकील अहमद खान ने सरकार के कदम को ऐतिहासिक करार दिया.

अल्पसंख्यकों को बांटने की कोशिश

ओवैसी की पार्टी AIMIM के विधायक अख्तरुल ईमान ने भी रिपोर्ट पर सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट के जरिए अल्पसंख्यकों को बांटने की कोशिश की गयी है. मुसलमानों को रिपोर्ट में पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग में बांटा गया है. अख्तरूल ईमान ने मुसलमानों के लिए आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मांग की है. अख्तरूल ईमान ने मुसलमानों के लिए आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मांग की है. कहा है कि पैथलॉजी की रिपोर्ट आ गयी है अब दवा की जरूरत है. यदि समय पर मरीज को दवा नहीं दिया गया तो यह उसके साथ धोखा होगा.

केरल और तमिलनाडू के तौर पर यहां काम हो

अख्तरूल ईमान ने कहा कि ये सिर्फ रिपोर्ट है अभी बहुत कुछ काम करना बाकी है. सर्वदलीय बैठक में हमने कहा है कि पिछड़ों,एसटी-एससी की आबादी बढ़ी है ऐसे में अब रिजर्वेशन का भी आकार भी बढ़ना चाहिए। जो पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियां है उसमें बहुत सारे लोग पिछड़े रह जाते है. 18 प्रतिशत अल्पसंख्यक 13 प्रतिशत लोग ओबीसी में आते हैं लेकिन उनकों पांच प्रतिशत भी भागीदारी नहीं मिल पाती है. इसलिए केरल और तमिलनाडू के तौर पर यहा काम हो.

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