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बिहार में बाढ़ व सुखाड़ में भी उपजेगा धान, गहरे पानी और रेन आउट शेल्टर में शुरू हुआ ट्रायल

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आइसीएआर परिसर में ही देश और विदेश की एक हजार से अधिक धान की प्रजातियों में से चुनिंदा प्रजातियों पर तीन तरह से ट्रायल शुरू किया गया है. यहां ट्रायल हो जाने के बाद इसे चावल अनुसंधान केंद्र भेजा जायेगा. यहां भी इसका ट्रायल होगा और एक प्रोसेस के बाद इसे किसानों के बीच वितरित किया जायेगा.

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रिपोर्ट: मनोज कुमार, पटना.

बिहार में सुखाड़ व बाढ़ से धान की खेती को काफी नुकसान होता है. इस साल भी कम बारिश होने से धान की खेती प्रभावित हो रही है. बाढ़ व सुखाड़ के दौरान भी धान की खेती प्रभावित न हो, इसे लेकर आइसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर) पटना की ओर से शोध किया जा रहा है. आइसीएआर परिसर में ही देश और विदेश की एक हजार से अधिक धान की प्रजातियों में से चुनिंदा प्रजातियों पर तीन तरह से ट्रायल शुरू किया गया है. यहां ट्रायल हो जाने के बाद इसे चावल अनुसंधान केंद्र भेजा जायेगा. यहां भी इसका ट्रायल होगा और एक प्रोसेस के बाद इसे किसानों के बीच वितरित किया जायेगा. इससे बाढ़ व सुखाड़ होने पर भी धान की खेती को नुकसान कम होगा. सुखाड़ के दौरान भी औसतन उत्पादन ठीक रहेगा. सूखा क्षेत्र में केवल दो पानी देने की आवश्यकता पड़ सकती है. आइसीएआर, पटना के वैज्ञानिक डॉ संतोष कुमार इस पर शोध कर रहे हैं.

इस तरह से हो रहा है शोध

आइसीएआर परिसर, पटना में ही तीन तरीके से धान के बिचड़े डाले गये हैं. एक खुले में, जहां सामान्य रूप से अन्य खेतों की तरह ही धान के बिचड़े डाले गये हैं. दूसरा गहने पानी में धान के बिचड़े डाले गये हैं. तीसरा, रेन आउट शेल्टर बनाकर धान के बिचड़े डाले गये हैं. इसमें कहीं से भी पानी जाने की संभावना नहीं है. यह इलाका बिल्कुल सूखा हुआ है. तीनों तरीके से डाले गये बिचड़े की लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है. इसकी अंतिम आकलन रिपोर्ट के आधार पर तय किया जायेगा कि बाढ़ व सुखाड़ में कौन सा बिचड़ा टिका रहा. इसके बाद इसे प्रोसेस कर एक नामकरण किया जायेगा और फिर किसानों के बीच वितरित करने की प्रक्रिया शुरू होगी.

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किसानों की समस्याओं को देखते हुए पहल शुरू की गयी: निदेशक

आइसीएआर, पटना के निदेशक अनुप दास ने बताया कि बाढ़ व सुखाड़ दोनों ही स्थिति में धान की खेती प्रभावित होती है. इसे लेकर आइसीएआर, पटना की ओर से शोध शुरू किया गया है. बाढ़ व सुखाड़ में भी टिकी रहने वाली धान की प्रजातियों की खोज की जा रही है. संस्थान के वैज्ञानिक डॉ संतोष कुमार इस पर शोध कर रहे हैं. संस्थान की ओर से पूरा सहयोग किया जा रहा है.

सामान्य से 45 फीसदी कम बारिश

राज्य में बन रहे सूखे की हालात को लेकर आइसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर) पटना ने किसानों, पशुओं और मछली को लेकर एडवाइजरी जारी की. संस्थान की ओर से कहा गया है कि राज्य में मॉनसून वर्षा में 45 फीसदी कम बारिश देखी जा रही है. अगस्त में सामान्य बारिश होने की उम्मीद लगायी जा रही है. किसान उम्मीद जता रहे हैं कि अगर तीन-चार दिन ठीक तरीके से बारिश हो जाये तो धान समेत अन्य खरीफ की फसल अच्छी होगी. इस कारण किसान ऊपरी जमीन में धान के बदले उरद (पंत उरद-19, 31, डब्ल्यूबीयू 108 व 109), मूंग ( सम्राट आइपीएम 2-3, एचयूएम-16), तिल (कलिका, कृष्णा, प्रगति) और अरहर (आइपीए-203, पुसा-1, मालवीय-13, राजेंद्र अरहर-1 ) की खेती करें.

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90 से 100 दिनों में होने वाली धान की प्रजाति का करें चयन

बिहार में इस साल जुलाई के महीने तक सामान्य से कम बारिश हुई है. राजधानी पटना में धान की रोपनी 34.88 प्रतिशत तक हुई है. इसे लेकर डीएम डॉ चंद्रशेखर सिंह ने जिला कृषि टास्क फोर्स की बैठक की. इसनें सभी एसडीओ को धान की रोपनी की प्रतिदिन समीक्षा करने का निर्देश दिया गया. धान की खेती के इच्छुक किसानों को कम अवधि वाली धान की फसल की बुवाई करने की सलाह दी गई है. इसके लिए 90 से 100 दिनों में होने वाली धान की प्रजाति का चयन करने की बात कही है. खेतों की मेड़बंदी करने की सलाह दी है, ताकि पानी का रिसाव कम हो. जहां धान की रोपनी हो गयी है, वहां दोबारा पानी देने की बात कही गई है. इसमें कहा गया है कि ऐसा नहीं करने पर खरपतवार उगा सकते हैं. इससे फसल को नुकसान हो सकती है. सौ फीसदी बारिश आधारित क्षेत्रों में 2 फीसदी यूरिया का उपयोग करने की सलाह दी गयी है.

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