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एमयू में प्रमोशन मामलों के बीच दबकर रह गये विश्वविद्यालय विकास के कई मामले

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अपने ही मांगों को लेकर बंट गये विश्वविद्यालय के शिक्षक और कर्मचारी संघ

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अपने ही मांगों को लेकर बंट गये विश्वविद्यालय के शिक्षक और कर्मचारी संघ, प्रतिनिधि, मुंगेर. मुंगेर विश्वविद्यालय को शायद अपने पूर्व कुलपति प्रो. श्यामा राय की एक बात काफी ज्यादा याद आ रही होगी. जिसमें पूर्व कुलपति ने साल 2021 में अपने योगदान के समय कहा था कि विश्वविद्यालय का विकास अधिकारियों, शिक्षकों और कर्मियों के एकजुट टीम से ही संभव हो सकता है, लेकिन कुलपति के आखिरी कार्यकाल के समय ही विश्वविद्यालय में अपनी ही मांग को लेकर जहां शिक्षक और कर्मचारी संघ आपस में बंट गये. वहीं प्रमोशन मामले के बीच कई कार्य विश्वविद्यालय में दब कर रह गये. जिसमें अनुकंपा पर नियुक्ति, सीनेट एवं छात्र संघ चुनाव सबसे महत्वपूर्ण मामले हैं. एमयू में पिछले 6 सालों से वैसे तो शिक्षक और कर्मचारी संघ द्वारा कई मांग किए गये, लेकिन केवल प्रमोशन मामले में ही विश्वविद्यालय के शिक्षक और कर्मचारी संघ आपस में बंट चुके हैं. एक ओर जहां साल 2023 में कर्मचारियों को स्थाई प्रमोशन देने के बाद दोबारा उन्हीं कर्मचारियों को अस्थाई प्रमोशन देने और इस प्रक्रिया में कई अन्य कर्मियों को नजरअंदाज किए जाने को लेकर विश्वविद्यालय के कर्मचारी भी आपस में बंट चुके हैं. वहीं राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के शिक्षकों को प्रमोशन नहीं मिलने के कारण बीते दिनों ही विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ में भी दरार सामने आयी. हद तो यह रही कि इस दौरान कर्मचारी संघ और शिक्षक संघ दोनों के ही सदस्य एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते नजर आये. जिसका असर बीते दिनों विश्वविद्यालय में शिक्षक और कर्मचारी संघ के अलग-अलग आंदोलन के दौरान भी देखने को मिला था.

दबकर रह गये कई बड़े मामले

विश्वविद्यालय में अपनी-अपनी मांगों को लेकर शिक्षक और कर्मचारी संघ दोनों द्वारा ही अलग-अलग आंदोलन किया गया था. हालांकि शिक्षकों का आंदोलन केवल एक सूत्रीय अपने प्रमोशन की अधिसूचना जारी करने को लेकर ही था, लेकिन कर्मचारी संघ द्वारा सीनेट चुनाव, अस्थाई प्रमोशन के लिए सूचना जारी करने और अनुकंपा पर नियुक्ति की मांग को लेकर आंदोलन किया गया था. जो अंत में केवल अस्थाई प्रमोशन की अधिसूचना जारी करने के बाद ही ठंडा पड़ गया और अंत में सीनेट चुनाव की आस लिए बैठे कर्मचारी और संबद्ध कॉलेज भी खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगे. इतना ही नहीं कर्मचारी संघ के आंदोलन समाप्त होने के बाद अंत तक अनुकंपा पर नियुक्ति की आस में बैठे आश्रितों को भी निराशा ही हाथ लगी.

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