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कंजर बस्ती में बह रही शिक्षा की बयार, बच्चे लगा रहे अंग्रेजी के फर्राटेदार रीडिंग

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रहिका प्रखंड के सप्ता गांव के कंजर बस्ती का माहौल बदला-बदला है. बस्ती में शिक्षा की नयी बयार बहने लगी है. इस बस्ती में अब बच्चे शिकारमाही, गोली - कौड़ी खेल, भीख मांगने की बातें भी नहीं करते. यहां के बच्चे तो अब आम बच्चों की तरह ही टू वन जा टू, टू- टू जा फोर और ए फॉर एप्पल, बी फॉर बॉल पढ़ने लगे हैं.

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मधुबनी. माहताब कंजर और खुशबू कंजर की बेटी करिश्मा डॉक्टर बनना चाहती है. इस साल वह स्टैंडर्ड 1 में गयी है. यूकेजी में 96 फीसदी अंक लायी है. इसी प्रकार राजू कंजर का बेटा सन्नी पुलिस बनना चाहता है. तो विवेक, शाहिद, मुकेश, लक्ष्मी के भी अपने अपने सपने हैं. इन सपनों की चमक इन बच्चों की आंखों में साफ तौर पर दिख रहा है. सलीके से बातें करने का ढंग, बात बात पर अंग्रेजी के यस, नो, ओके ही नहीं, फर्राटे से अंग्रेजी की किताबों पढ रहे हैं. यह कंजर बस्ती के किसी एक बच्चे का सपना नहीं है, ऐसे करीब दो दर्जन से अधिक बच्चे हैं, जिनके आखों में सुनहरे भविष्य के सपने पल रहे हैं. कोई कक्षा दो में, कोइ तीन तो कुछ बच्चे स्टैंडर्ड चार में पढ़ रहे हैं. कोइ सिपाही, कोई अधिकारी तो कोई डॉक्टर बनने का लक्ष्य निर्धारित कर चुके हैं.

स्कूल यूनिफार्म में चलते हैं तो देखते रह जाते हैं लोग

रहिका प्रखंड के सप्ता गांव के कंजर बस्ती का माहौल बदला-बदला है. बस्ती में शिक्षा की नयी बयार बहने लगी है. इस बस्ती में अब बच्चे शिकारमाही, गोली – कौड़ी खेल, भीख मांगने की बातें भी नहीं करते. यहां के बच्चे तो अब आम बच्चों की तरह ही टू वन जा टू, टू- टू जा फोर और ए फॉर एप्पल, बी फॉर बॉल पढ़ने लगे हैं. इनके शरीर पर अब गंदे, मैले, दुर्गंध वाले वस्त्र भी नही हैं. बल्कि वेल मेंटेंड स्कूल यूनिफार्म है. इस बस्ती के बच्चे जब स्कूल यूनिफार्म में टाइ बेल्ट, जूता और कंधे पर किताबो से भरा बैग लेकर चलते हैं तो देखने वालों को सहज ही विश्वास नहीं होता. दरअसल सप्ता कंजर बस्ती के बच्चे अब पढ़ने लगे हैं. कोई निजी विद्यालय में तो कोई सरकारी विद्यालय में.

भीख मांग कर बच्चों को दिलाते हैं तालीम

इनके इस बदलाव में इनके माता पिता भी पूरी तरह साथ निभा रहे हैं. खुद भीख मांगते हैं पर अपने बच्चों को बेहतर तालीम दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. शहर के प्रमुख निजी विद्यालयों में इनके बच्चों का दाखिला हो रहा है. खुशबू कंजर बताती हैं कि उनके दो बच्चे शहर के प्रमुख निजी स्कूल में पढ़ते हैं. समय से स्कूल का फीस, ड्रेस, किताब खरीदते हैं. कई बार दो तीन दिनों तक भूखे रह जाते हैं, पर बच्चे की पढ़ाई की हर मांग को पूरा करते हैं. इसी प्रकार इलाइची देवी, गज्जो देवी बताती है कि बाप दादा और पुरखा को भीख मांगने, गंदगी साफ सफाइ करते देखा. गाली गलौज करते, गाली सुनते देखा है. पर उनका बच्चा कभी भी भीख नहीं मांगेगा. चाहते हैं कि बच्चा बड़ा होकर हाकिम बने, गाड़ी पर चढ़े.

ऐसे आया बदलाव

बस्ती के कई बच्चे रिजनल सेकेंडरी स्कूल में पढ़ते हैं. विद्यालय के निदेशक डा. आर एस पांडेय बताते हैं कि कंजर बस्ती की एक महिला लुटकी देवी उनके यहां काम करती थी. धीरे धीरे विद्यालय में शिक्षा का माहौल देख उसे भी अपने बच्चों को पढ़ाने के लिये प्रेरित किया. आज कई बच्चे उनके विद्यालय में पढ़ते हैं. देखा देखी अन्य बच्चे शहर के अन्य निजी स्कूलों में भी दाखिला ले रहे हैं. डा. पांडेय बताते हैं कि वर्ग में अन्य बच्चों की तरह ही ये बच्चे भी आते हैं. इन बच्चों के शिक्षा के लिये हर प्रकार से सहयोग किया जायेगा.

खान पान में भी आया बदलाव

विद्यालय में नामांकन के बाद इन बच्चों के खान – पान में भी बदलाव आ गया है. करिश्मा, मुकेश, लक्ष्मी सहित अन्य बच्चे बताते हैँ कि वे लोग अब मांसाहारी खाना नहीं खाते. मांसाहारी खाना छोड़ अब शाकाहारी खाना पसंद करते हैं. इनके लिये इनकी मां रोज सुबह उठकर नास्ता बनाती है. लंच पैक करती है. फिर ड्रेस पहन कर कंधे पर बैग लेकर टेंपों या साईकिल से स्कूल के लिये निकल जाते हैं. दोपहर में स्कूल से वापस आने के बाद होम वर्क करने में जुट जाते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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