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क्या मिट्टी में ही दबा रह जायेगा श्रीनगर का 3000 वर्ष पुराना व ऐतिहासिक महत्व

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क्या मिट्टी में ही दबा रह जायेगा श्रीनगर का 3000 वर्ष पुराना व ऐतिहासिक महत्व

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श्रीनगर से लौटकर कुमार आशीष. जिले के घैलाढ़ प्रखंड और इस प्रखंड के श्रीनगर गांव का पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व मिट्टी में ही दबा रह गया है. यहां एक ऊंचे टीले पर आज भी नौंवीं शताब्दी के पाषाण बिखरे पड़े हैं. विशेषज्ञ इसे बैसाल्ट पत्थर से बनी प्रतिमा व अन्य आकृति बताते हैं. लगभग 3000 साल पुराने इतिहास को वर्तमान व भविष्य की पीढ़ी को बताकर क्षेत्र की महात्मयता बताने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है. हालांकि कुछ वर्ष पूर्व तत्कालीन डीएम मो सोहेल व अंचलाधिकारी सतीश कुमार की पहल पर स्थलीय जांच कर इसके पौराणिकता को उदघाटित तो किया गया था, लेकिन उन दोनों अधिकारियों के स्थानांतरण के बाद क्षेत्र को विकसित करने की योजना धरी की धरी रह गयी. यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं ऐतिहासिक पत्थर- समय के साथ घैलाढ़ प्रखंड व श्रीनगर गांव का अपेक्षित विकास हुआ है. इस छोटे से गांव में आकर्षक बहुमंजिला मध्य व उच्च विद्यालयों का निर्माण हुआ है. गांव की गली-गली में पक्की सड़कें भी बनी हुई है. उसी आकर्षक मध्य विद्यालय के ठीक पीछे लगभग 15 फीट ऊंचे टीला है और उस टीले पर दर्जनों पौराणिक व ऐतिहासिक पाषाण यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं. कुछ मिट्टी के ऊपर हैं, तो कुछ मिट्टी में दबे पड़े हैं. उनमें से कई पत्थरों को बच्चे खेत में ले जाकर क्रिकेट खेलने के लिए विकेट के रूप में उपयोग कर रहे हैं. कुछ पत्थर बगल के स्कूल परिसर में पड़े हुए हैं, तो कुछ बगल के मंदिर में. ग्रामीण बताते हैं कि कुछ पत्थर लोग अपने घर भी ले गये हैं. सभी मूर्तियां, शिवलिंग और चौखट-किवाड़ बैसाल्ट पत्थर के हैं, जो तीन हजार साल बाद आज भी आकर्षक रूप से आज भी चमकीले बने हुए हैं. पुरातत्व विभाग को भेजी गयी थी रिपोर्ट- तत्कालीन सीओ सतीश कुमार की नजर जब इस टीले और इधर-उधर फेंके पत्थरों पर पड़ी, तो आश्चर्यचकित हुए और टीले के बगल के तालाब की खुदाई शुरू करायी. खुदाई के क्रम में उस तालाब की गहरायी से देवी-देवताओं की कई प्रतिमाएं मिली. शिवलिंग और शिवलिंग का चबूतरा भी मिला. चौखट और किवाड़ के नक्काशी किये दर्जनों पत्थर मिले. कई पायानुमा बड़े शिला भी मिले. तालाब की खुदाई के क्रम में ही एक पौराणिक घड़ा भी मिला था. सीओ ने डीएम के माध्यम से पुरातत्व व पर्यटन विभाग को सारी रिपोर्ट भेजवायी. पुरातत्व विभाग ने स्थलीय जांच व पत्थरों के अवलोकन के बाद इसे नौंवीं शताब्दी का बताया था. विभाग ने बताया था कि निश्चित रूप से ये सारे पत्थर शिव मंदिर के अवशेष हैं. आकर्षक है उमामहेश्वर की प्रतिमा- श्रीनगर में स्थापित नौंवी सदी की काले बैसाल्ट पत्थर पर बनी उमामहेश्वर की प्रतिमा अद्वितीय है. 15 फीट ऊंचे टीले के इर्द-गिर्द मौजूद उत्तर गुप्तकालीन नक्कासी व शिला उत्कीर्ण के कई नमूने, बैसाल्ट चट्टान पर ही बने मंदिर के चौखट, चबुतरा, लाल व काले रंग से बैसाल्ट पत्थर से बने घड़ियाल के दो जबड़ों समेत बिखरे व जमींदोज कई पुरातत्व अवशेष मौजूद हैं, तो कुछ पत्थरों को सहेज कर रखा गया है. हालांकि यहां यह भी किंवदंति है कि सिंहेश्वर स्थान की तरह यह स्थल भी श्रृंगी ऋषि की तपस्थली थी. पुरातत्व विभाग का सर्वेक्षण हो तो, इस स्थान से जुड़ी और भी कई कहानियां सामने आयेंगी. यह स्थान भी मधेपुरा जिले का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता है.

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