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बिहार को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाला नालंदा जिले के सिलाव का खाजा अपने लाजवाब स्वाद के कारण काफी लोकप्रिय है. 52 परतो में बनी इस मिठाई का इस्तेमाल मांगलिक कार्यों में भी खूब होता है. सिलाव में खाजा बनाने का काम सबसे पहले करीब 200 साल पहले हुआ थी.
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बिहार में सिलाव के खाजा का एक समृद्ध इतिहास रहा है. कुरकुरा स्वादिष्ट खाजा, गेहूं के आटे में मावा मिलाकर इसे बनाया जाता है. खाजा को तेल या घी में तलने के बाद चासनी में डुबाया जाता है. इसको बनाने में इलायची का प्रयोग भी किया जाता है. यह खाने में टेस्टी के साथ काफी हेल्दी भी होता है.
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सिलाव में बनने वाला यह खाजा दुनियाभर में फेमस हो चुका है. खाजा मिठाई में कई खासियत होती हैं. एक खाजा 52 परतों की होती है. खाजा मिठाई बिल्कुल किसी पैटीज की तरह दिखती है. खाने में यह कुरकुरा है. इसे मीठा और नमकीन दोनों तरीकों से बनाया जाता है.
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नालंदा जिले के राजगीर और बिहारशरीफ के बीच सिलाव बाजार पड़ता है. यहां के खाजा मिठाई का इतिहास काफी पुराना है. सिलाव के करीब नालंदा का ऐतिहासिक खंडहर भी है. जहां देश-विदेश के पर्यटक आते रहते हैं. इसी कारण खाजा की लोकप्रियता विदेशों तक पहुंच चुकी है.
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सीएम नीतीश कुमार ने 2015 में खाजा निर्माण को उद्योग का दर्जा दिया था. भारत सरकार ने सिलाव के खाजा को जीआई टैग (ज्योग्राफिकल इंडेक्शन टैग) भी दिया है. इससे खाजा उद्योग से जुड़े कारोबारियों को मदद मिल रही है.
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सिलाव के खाजा की डिमांड सिर्फ बिहार तक ही सीमित नहीं है. बल्कि रांची, दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ, कानपुर, मुंबई, बनारस समेत देश के दूसरों शहरों में खाजा मिठाई लोकप्रिय हो चुकी है.
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सिलाव का खाजा कुरकुरा और कम मीठा होता है. इस कारण से हमेशा इसकी डिमांड बनी रहती है. यहां तक कि शादी या दूसरे मांगलिक कार्यों में खाजा जरूर बनता है. अब तो खाजा की ऑनलाइन डिलीवरी देश के साथ ही विदेशों में भी होने लगी है. इसलिए जब भी नालंदा घूमने जाएं तो इस मशहूर मिठाई का स्वाद लेना न भूलें.
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