कटिहार. जूट की नगरी के नाम से मशहूर कटिहार में जूट किसानों का दायरा और बढने वाला है. जूट की पत्तियों से किसान चाय बनाने के साथ हैंडीक्रॉप्ट सामान बनाने के लिए हुनर सिखेंगे. पहली बार जूट की पत्तियों से चाय बनाने की विधि सीखने के बाद इसका प्रचलन अन्य जगहों में भी किया जायेगा. इससे शहरवासी के अलावा अन्य राज्यों में भी जूट की पत्तियों के चाय का स्वाद ले सकेंगे. इससे बनने वाली कई तरह की सामग्रियों का उपयोग आसानी से कर सकते हैं. इसको लेकर विभाग ने फाइबर रिसर्च सेंटर कोलकता से पत्राचार किया गया है. वहां पर जूट की पत्तियों से चाय का प्रोसिंग कर चाय बनाने का किसानों को प्रशिक्षण दिया जाना है. हरी सिग्नल मिलने के बाद संभवत: जून के अंतिम सप्ताह में तीस किसानों को सात दिवसीय प्रशिक्षण के लिए ले जाया जायेगा. अभी से ही जूट बाहुल्य क्षेत्र से किसानों का सर्वे कार्य करने की विभाग प्लानिंग कर रही है. मालूम हो कि पूरे जिले में पच्चीस हजार हेक्टेयर में जूट की खेती होती है. सबसे अधिक आजमनगर में 4854 हेक्टेयर और सबसे कम कुरसेला में 00:33 हेक्टेयर में जूट की खेती होती है. विभागीय कमियों की माने तो प्रशिक्षण के लिए चयनित तीस किसानों द्वारा हूनर सीखने के बाद शहर के अन्य जूट की किसानों को जूट के रेशे की सामग्रियों को बनाने की विधि से अवगत कराया जायेगा. इससे जलवायु पर पड़ने वाले प्लास्टिक का दुष्प्रभाव से राहत दिलायेगा. सरकार द्वारा प्लास्टिक पर पूरी तरह से बैन कर दिये जाने के कारण् जूट से निर्मित सामग्रियों का भविष्य में मांग अधिक होगी इससे नकारा नहीं जा सकता है.
कई तरह का जूट से बनाये जा रहे सामग्री
विभागीय पदाधिकारियों का कहना है कि जूट की रेशे से बनने वाले सामानों का भविष्य में उपयोग बढेगा. आने वाले समय में जूट की थैली की भी मांग बढने वाली है. इसे यूज करने के बाद आसानी से सड़ाया गलाया जा सकता है. इस तरह से प्रदूषण को रोकथाम में इसकी भूमिका अहम होगी. पहले केवल जूट की बोरी बनती थी. आजकल रेशे से कई तरह के उत्पादों में बोरी के अलावा, बच्चों के खिलौने, महिलाओं के श्रृंगार के सामान, जूट का कुता, पैजामा, जैकेट, महिलाओं के लिए साड़ी, ज्वेलरी, दिवालों पर सजाने के सामान के साथ जूट का फोल्डर तक बनाये जा रहे हैं.
बारसोई दूसरे स्थान पर जूट की खेती करने वाला है प्रखंड
विभागीय कमियों की माने तो आजमनगर में सबसे अधिक 4854 हेक्टेयर, बारसोई में 4500, अमदाबाद में 4112, कदवा में 3967, कोढा में 327, बलरामपुर में 1800, डंडाखेरा में 663, फलका में 881, हसनगंज में 770, कटिहार में 606, मनसाही में 360, प्राणपुर में 957, मनिहारी में 806, समेली में 47:56 एवं कुरसेला में सबसे कम 00:33 हेक्टेयर में जूट की खेती किसान करते हैं.
कहते हैं उपरियोजना निदेशक आत्मा
जूट की खेती जिले में करीब पच्चीस हजार हेक्टेयर में की जाती है. जूट की पत्ती से चाय बनाने के लिए जून अंतिम सप्ताह में तीस किसान फाइबर रिसर्च सेंटर कलकता जाना है. इसके लिए विभाग की ओर से पत्राचार किया गया है. हरी सिंग्नल मिलने के बाद किसान सात दिवसीय प्रशिक्षण के लिए जा सकेंगे. जूट बाहूल्य क्षेत्र से किसानों की सर्वे कार्य शुरू करने की प्लानिंग की जा रही है.
शशिकांत झा, उपरियोजना निदेशक आत्माडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है