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कृषि के क्षेत्र में जिले के छात्र कैसे भरेंगे उड़ान, इंटर में मात्र 40 सीटें निर्धारित

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धान का कटोरा कहे जाने वाले जिले के छात्र जाे कृषि में अपना कैरियर बनाना चाह रहे हैं, उन छात्रों का कृषि विषय में स्नातक की पढ़ाई व कृषि विश्वविद्यालय नहीं रहने के चलते सपना टूट रहा है.

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भभुआ नगर. धान का कटोरा कहे जाने वाले जिले के छात्र जाे कृषि में अपना कैरियर बनाना चाह रहे हैं, उन छात्रों का कृषि विषय में स्नातक की पढ़ाई व कृषि विश्वविद्यालय नहीं रहने के चलते सपना टूट रहा है. वहीं, कृषि विषय में कैरियर की अपार संभावनाएं होने के बाद भी छात्रों में कृषि की पढ़ाई के प्रति रुचि नहीं है. जिले के छात्र को कृषि में पढ़ाई करने के लिए आज भी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व राज्य में उतरी बिहार की ओर जाना पड़ता है. यानी जो छात्र इंटर के बाद भी स्नातक में कृषि से पढ़ाई करना चाहे तो उन्हें भागलपुर के सबौर या समस्तीपुर के पूसा कृषि विश्वविद्यालय जाना पड़ेगा, जहां जिले के छात्र नहीं जा पाने के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर पाते हैं. यहां कृषि क्षेत्र में पढ़ाई करने की इच्छा रखने के बाद भी पढ़ाई के लिए नजदीक में कॉलेज व विद्यालय नहीं मिलने के कारण मैट्रिक पास छात्र साइंस, कॉमर्स सहित अन्य विषयों की पढ़ाई करने के बाद डॉक्टर एमबीए एमसीए आदि क्षेत्र में छात्र अपने कैरियर की तलाश कर रहे हैं. इसका नतीजा है कि बिहार सरकार द्वारा कृषि विभाग में विभिन्न पदों पर नियुक्ति ली जा रही है, लेकिन, राज्य के छात्र नहीं अधिकतर यूपी व अन्य प्रदेश के अभ्यर्थी नियुक्त हो रहे हैं. यहां कृषि क्षेत्र में अपने राज्य व जिले में ही नौकरी का स्कोप होने के बाद भी छात्र इस क्षेत्र में पढ़ाई नहीं कर पाने के कारण पिछड़ जा रहे हैं. कृषि विभाग में समन्वयक से लेकर कृषि वैज्ञानिक, किसान सलाहकार सहित जिले में आज भी तमाम पद रिक्त पड़े हैं, जिसका असर धान का कटोरा कहे जाने वाले कृषि क्षेत्र पर भी पढ़ रहा है. जिले में कृषि के क्षेत्र में उन्नत तकनीक अपनाने का लेकर कई चुनौतियां सामने है. अगर जिले के छात्र कृषि संबंधी पढ़ाई किये होते तो पुश्तैनी जमीन पर भी उत्तम खेती करने का उनको बेहतर मौका मिलता, जिससे बेरोजगारी के बाद भी उन्नत खेती अपनाकर जिले के किसान बेहतर अनाज पैदा कर सकते थे. जिले के एकमात्र कृषि की पढ़ाई के लिए चांद प्रखंड में जगदीप सिंह इंटर कॉलेज है, जहां 40 सीट ही निर्धारित है, लेकिन छात्र नामांकन लेने में भी दिलचस्पी नहीं दिख रहे है या नामांकन के लिए ओएफएसएस पर आवेदन में गड़बड़ी होने के कारण नामांकन नहीं हो पा रहा है. यहां जिले में केवल 20 छात्र ही कृषि की पढ़ाई कर रहे हैं. बगैर शिक्षक के इंटर तक की होती है पढ़ाई कृषि को बेहतर बनाने के लिए व मैट्रिक पास छात्र जो कृषि में कैरियर बनाना चाह रहे हैं, उनके लिए जिले में चांद प्रखंड के जगदीप सिंह बहुआरा हाईइस्कूल में इंटर तक एग्रीकल्चर की पढ़ाई के लिए चयन किया गया है. इस विद्यालय में 40 छात्रों का नामांकन एग्रीकल्चर की पढ़ाई के लिए किया जाता है. लेकिन, विद्यालय में नामांकित बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई कृषि के शिक्षक उपलब्ध नहीं है, बल्कि प्रखंड कृषि समन्वयक को छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गयी है. खास बात यह है कि इंटर तक की पढ़ाई एग्रीकल्चर से करने के बाद आगे के पढ़ाई यानी स्नातक में एग्रीकल्चर की पढ़ाई करने के लिए छात्रों को जिले से बाहर या दूसरे प्रदेश जाना पड़ेगा. = 2018 से ही एग्रीकल्चर में इंटर तक की पढ़ाई हुई शुरू कैमूर जिले के अधिकतर भागों पर कृषि योग्य भूमि है, जहां धान, गेहूं, अरहर, सरसों, मसूर सहित अन्य खेती किसानों द्वारा की जाती है. लेकिन, कृषि के क्षेत्र में पढ़ने वाले छात्रों की पढ़ाई के लिए जिले में कोई विद्यालय नहीं होने के कारण इनका सपना अधूरा रह जा रहा है. विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा जिले में कृषि संबंधित पढ़ाई प्रारंभ करने के लिए 2018 में ही चांद प्रखंड के जगदीप सिंह बहुआरा हाई स्कूल का चयन किया गया था, जहां 2018 से छात्र कृषि की पढ़ाई कर रहे हैं. बोले प्रधानाध्यापक — इस संबंध में जानकारी देते हुए विद्यालय के प्रधानाध्यापक अरविंद पांडे ने कहा कि जिले का कृषि के क्षेत्र में एकमात्र जगदीप सिंह उच्च विद्यालय बहुआरा है, जहां इंटर में एग्रीकल्चर की पढ़ाई होती है. लेकिन एग्रीकल्चर विषय को पढ़ने के लिए शिक्षक की नियुक्ति नहीं है. इस वर्ष केवल 20 छात्र ही एग्रीकल्चर में नामांकन लिये हैं, जबकि 40 सीट निर्धारित है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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