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संरक्षण के अभाव में सिकुड़ रही पुनपुन नदी, घट रहा जलस्तर

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स्थानीय थाना क्षेत्र से गुजरने वाली पुनपुन नदी के घाट पर जल का उपयोग अलग-अलग पेशे के लोग करते हैं. किसान खेती के लिए पानी उपयोग करते हैं तो कपड़े धोने के लिए पेशे से जुड़े लोग अलग घाट का उपयोग करते हैं. मछुआरा घाट, सरिया घाट जैसे नाम आज भी है लेकिन नदी का घाट पशु-पक्षियों का प्यास नहीं बुझा पाती.

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कुर्था. स्थानीय थाना क्षेत्र से गुजरने वाली पुनपुन नदी के घाट पर जल का उपयोग अलग-अलग पेशे के लोग करते हैं. किसान खेती के लिए पानी उपयोग करते हैं तो कपड़े धोने के लिए पेशे से जुड़े लोग अलग घाट का उपयोग करते हैं. मछुआरा घाट, सरिया घाट जैसे नाम आज भी है लेकिन नदी का घाट पशु-पक्षियों का प्यास नहीं बुझा पाती. पुनपुन नदी का महत्व और घाटों का इतिहास तो है लेकिन उपयोग नहीं रहा. धोबिया घाट पर नदी के बजाए खेत, मछुआरा घाट पर पानी की जगह बालू उड़ाही का धंधा तो सरिया घाट अब गांव तक जाने की सड़क के रूप में तब्दील हो गया है. दरअसल इन घाटों के बदले स्वरूप नदी की बदहाली की व्यथा का बखान कर रहा है. जिले के करपी, कुर्था एवं वंशी प्रखंड के बीचों-बीच बहने वाली त्रेतायुगीन नदी पुनपुन संरक्षण के अभाव में अपनी क्षमता और सौंदर्य को खोती जा रही है. पहले लोग जल संसाधन का भरपूर उपयोग करते थे. सुबह-शाम जानवरों को धोना, बर्तन, कपड़े की सफाई, स्नान आदि सभी काम नदी के पानी में करते थे. कपड़ा धोने, मछली पकड़ने से लेकर कच्चे मकान के निर्माण के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने को लेकर अलग-अलग घट बने थे लेकिन वक्त के साथ धीरे-धीरे यह नदी सिकुड़ती चली गई. वर्तमान समय में सिंचाई का कार्य भी मुश्किल हो पा रहा है. गरमा फसल को संचित करने में पुनपुन नदी अक्षम साबित हो रही है. गर्मी के दिनों में पुनपुन नदी का घटना जलस्तर पशु और पक्षी भी अपनी प्यास नहीं बुझा पा रहे हैं. पुनपुन नदी को निर्बल बनाने में लोगों की बढ़ती महत्वाकांक्षा अहम भूमिका निभाई है. सिंचाई के घटते परंपरागत स्रोतों के कारण जगह-जगह से पुनपुन नदी से नहर निकल गई. कुछ स्थानों पर बांध का निर्माण कराया गया, परिणामस्वरूप अनवरत बहने वाली नदी का पानी विभिन्न धाराओं में विभक्त हो गया जिससे उसकी प्रवाह लगातार कमजोर होता चला गया, बाकी कसर अंधाधुंध बालू का उत्खनन ने पूरा कर दिया. यदि इस दिशा में सजकता नहीं दिखाई गई तो निकट भविष्य में यह नदी नाले में तब्दील हो जाएगा. एक दशक पहले तक पुनपुन नदी से सालों भर खेती की सिंचाई होती थी लेकिन अब गर्मी के मौसम में भी यह बरसाती नदी की तरह सूख जा रही है.

मुक्तिधाम पर सुविधाओं का घोर अभाव

मुक्तिधाम के रूप में कई युगों से इस नदी के तट पर शव दाह किया जा रहा है, पर इस मुक्तिधाम पर मूलभूत सुविधाओं की घोर कमी है. इस पुनपुन नदी के तट पर पंचतीर्थ धाम में जागृत श्मशान घाट है जहां कभी ऐसा दिन नहीं हुआ कि यहां शव न जला हो. दूर-दराज के लोग यहां शव दाह के लिए आते हैं परंतु उन्हें उक्त स्थल पर पेयजल के रूप में एक चापाकल भी नसीब नहीं हो पाती है.

क्या कहते हैं किसान

मेरोगंज गांव निवासी किसान गजेंद्र यादव, अरविंद सिंह, राजेंद्र यादव बताते हैं कि पहले यह नदी के इर्द-गिर्द के खेतों का अच्छी तरह से पटवन हो जाता था लेकिन धीरे-धीरे यह नदी सिकुड़ती जा रही है जिसकी वजह से किसानों को खेतों में पटवन में काफी कठिनाइयां उत्पन्न हो रही हैं.

क्या कहते हैं पदाधिकारी

पंचतीर्थ धाम स्थित पुनपुन नदी की समस्या को लेकर जिलाधिकारी क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से समस्या जानी है. बहुत जल्द समस्याओं का निराकरण करने का उन्होंने आश्वासन दिया है, ताकि क्षेत्र के लोगों को नदी की पानी से फायदे पहुंचे. चूंकि विगत दिनों वह खुद क्षेत्र का निरीक्षण भी किये थे. इस मामले को लेकर बैठक के दौरान या वीसी के दौरान जिलाधिकारी के समक्ष फिर से बात रखूंगा, चूंकि लगातार जलस्तर घट रहा है-डॉ जियाउल हक, बीडीओ, कुर्था

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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