पटना. लोकनायक जयप्रकाश नारायण अर्थात जेपी जीवन के अंतिम दिनों में राजपाट के लिए अपनों की मारामारी देखकर बहुत क्षुब्ध थे. वे एक और क्रांति की इच्छा रखते थे, लेकिन उनके पास अब वक्त नहीं था. उनके साथी तो नहीं ही उनकी सेहत भी उनका साथ नहीं दे रहा था. संपूर्ण क्रांति, उसके बहुपक्षीय आयाम सब सत्ता तक पहुंचे लोगों के लिए बेमतलब हो चुके थे. जेपी बेहद निराश थे. उन्हें अपने सपने शायद ही किसी स्तर पर पूरे होते दिख रहे थे. डॉ. सीपी ठाकुर ने एक बार मीडिया से बात करते हुए कहा था कि जेपी जब बेहद बीमार थे, उस वक्त त्रिपुरारि शरण से बात करते हुए पूछा था कि क्या हम अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक और आंदोलन नहीं कर सकते हैं.
जेपी जब एक और आंदोलन की योजना पर बात कर रहे थे, उस वक्त उनकी सेहत बेहद खराब थी. उनके लिए चार कदम चलना भी बेहद मुश्किल था. डायलिसिस में चार, साढ़े चार घंटे लगते थे. जेपी, तीन घंटे में ही मशीन को हटाने की जिद करने लगते थे. असल में बहुत तकलीफ होती थी. आगे स्थिति और बिगड़ी, तो एक दिन बीच करके डायलिसिस होने लगी. उस वक्त जेपी रामनाथ गोयनका के पेंट हाउस में रहते थे. वहां से जसलोक हॉस्पिटल (मुंबई) पास था. कुछ दिन बाद जेपी ने मुझसे कहा-पटना ले चलिए. अपने जगह पर ज्यादा ठीक रहेगा. डॉ सीपी ठाकुर कहते है कि जेपी की जिद पर उन्होंने डॉ. इंदुभूषण सिन्हा से बात की और उन्होंने जेपी को पटना जाने की इजाजत दे दी.
डॉ सीपी ठाकुर कहते हैं कि उनको मारने की साजिश की बात पूरी तरह गलत है. उनका इलाज, अल्टीमेट था. जेपी के कुछ करीबी लोगों को संदेह था कि उनको मारने की साजिश हुई, इसका तरीका ऐसा रखा गया कि बिल्कुल शक न हो, सबकुछ स्वाभाविक लगे. लेकिन मैंने यह बात कभी नहीं मानी. एकाध मौके पर जब ऐसी बात आयी भी, तो मैंने जेपी से यही कहा कि कोई डॉक्टर अपने मरीज और वह भी आपके साथ ऐसा कर ही नहीं सकता. अंततः ये लाइनें खारिज हुईं.
डॉ सीपी ठाकुर कहते हैं कि मुंबई से लेकर पटना तक हमने डॉक्टर और मरीज के आदर्श संबंधों से बहुत आगे की स्थितियों को जिया. सीपी ठाकुर कहते हैं कि उनसे बहुत बातें होती थीं. हर मसले पर, लेकिन सब सिद्धांत, आदर्श, मुद्दा पर आधारित. उनसे किसी की पर्सनल आलोचना कभी नहीं सुनी. इंदिरा गांधी से उनका पुरजोर राजनीतिक विरोध था, मगर वह उनको अपनी बेटी मानते थे. मेरा सौभाग्य था कि मुझे जेपी जैसी थाती को संभालने, उनको स्वस्थ-दुरुस्त रखने का मौका मिला था. मैंने इसे पूर्व जन्म के पुण्य का परिणाम माना. बहुत ही सामान्य स्वभाव. निर्लिप्त। कोई ईगो नहीं. किसी के प्रति आग्रह-पूर्वाग्रह, राग-द्वेष नहीं.