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जनकपुर की वैदेही वाटिका में श्रीराम व जानकी की आंखें हुईं चार

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नई बाजार स्थित विशाल पंडाल में साकेतवासी संत खाकी बाबा सरकार के निर्वाण तिथि पर सिय-पिय मिलन महोत्सव के छठे दिन बुधवार को पुष्प वाटिका लीला जीवंत हुआ.

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बक्सर.

नई बाजार स्थित विशाल पंडाल में साकेतवासी संत खाकी बाबा सरकार के निर्वाण तिथि पर सिय-पिय मिलन महोत्सव के छठे दिन बुधवार को पुष्प वाटिका लीला जीवंत हुआ. जिसमें प्रभु श्रीराम व जनक नंदिनी जानकी का पहली बार एक-दूसरे से आमना-सामना हुआ. यह लीला अध्योध्या धाम के कौशलेश सदन के पीठाधीश्वर जगदगुरु रामानुजाचार्य श्री वासुदेवाचार्य विद्या भास्कर जी महाराज व बसांव पीठाधीश्वर श्री अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज समेत अन्य धर्माचार्य के सान्निध्य में मंचित किया गया.

गुरु आज्ञा से अनुज लक्ष्मण संग प्रभु श्रीराम पहुंचे वाटिका :

भव्य पंडाल के बीचों-बीच स्थित मंच पर बने वैदेही वाटिका प्राकृतिक छटा बिखेर रही है. विभिन्न तरह के रंग-बिरंगे फूलों से सजी पुष्प वाटिका मन को लुभा रही है. इधर स्नान व संध्या वंदन के बाद गुरु विश्वामित्र के समक्ष सिर नवाकर उनकी आज्ञा से पूजन हेतु दोनों भाई फूल लेने के लिए रवाना होते हैं और वैदेही वाटिका पहुंचते हैं. वे वाटिका में नये पत्तों, फलों व फूलों से लदे सुंदर वृक्षों की अलौकिक शोभा एवं पक्षियों के कलरव देख मुग्ध हो जाते हैं. इसी बीच वाटिका की रखवाली कर रहे मालियों से श्रीराम व लक्ष्मण की मुलाकात होती है. मालियों से प्रभु श्रीराम पुष्प के लिए वाटिका में प्रवेश की इजाजत मांगते हैं. माली उन्हें अंदर जाने से रोक देते हैं. माली गण दोनों भाइयों के साथ हास-परिहास के बीच उन्हें वहां उलझाए रखते हैं. वे उनसे पदगायन के माध्यम से सवाल करते हैं कि आप तो पुष्प से भी कोमल हैं, सो आपसे फूल तोड़ना संभव नहीं है. काफी जवाब-सवाल के बाद मालियों द्वारा उन्हें प्रवेश हेतु मां जानकी की जयघोष करने की शर्त रखी जाती है. इसपर वे रघुकुल की मर्यादा का हवाला देकर जयघोष से इंकार कर देते हैं. मालियों द्वारा प्रेम का हवाला देकर उन्हें जयकारा लगाने का दोबारा मौका दिया जाता है. फिर मालियों की प्रेम भरी जिद के आगे विवश होकर प्रभु श्रीराम मां सीता की जयकारा लगाते हैं. इसके बाद मालीगण ठिठोली के बीच उन्हें प्रवेश की अनुमति देते हैं. प्रधान माली की भूमिका में आश्रम के महंत श्री राजाराम शरण जी महाराज ने प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण जी को खूब रिझाया और हास-परिहास किया.

सखियों संग गौरी पूजन को वाटिका में पहुंची जनक दुलारी :

इधर वाटिका में जाकर प्रसन्न मन से दोनों भाई पुष्प तोड़ने लगते हैं, उधर गौरी पूजन के लिए सहेलियों संग मां जानकी का आगमन होता है. इसी क्रम में एक सहेली वाटिका भ्रमण करने निकल जाती है. वे पुष्प तोड़ रहे प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण को देख अपनी सुध-बुध खो बैठती है और दौड़कर सीता जी के पास जाती है. वह सखियों संग सीता जी से दोनों भाइयों के सौंदर्य की बखान करती है. वे कहती है कि किशोर वय के दो अति सुंदर राजकुमार बाग में आए हैं. एक सांवले तो दूसरा गोरे वर्ण का है. उनकी सूरत को बखान करने में मेरी वाणी असमर्थ है. क्योंकि वाणी बिना नेत्र की है और आखें बोलने में सक्षम नहीं है. बावरी सखी की बात सुन एक सयानी सखी कहती है कि विश्वामित्र मुनी के साथ आए ये वहीं राजकुमार हैं. जिन्होंने अपने रूप-मोह से जनकपुर के पुरुष व महिलाओं को अपना दीवाना बना लिया है ओर सभी उनके रूप की बखान करते नहीं थक रहे हैं. यह सुनते ही राजकुमारों को देखने के लिए जानकी के नेत्र अकुला उठते है और बावरी सखी को आगे कर सीता जी चल पड़ती हैं. इस बीच सीता जी के हृदय में पवित्र प्रेम उमड़ता है. वे सहमे हुए नजरों से चारों तरफ देखने लगती है. इधर कंगन, करधनी व पायजेब की आवाज सुन प्रभु श्रीराम अनुज लक्ष्मण से सीता जी के आगमन से अवगत कराते हैं और मुड़कर ध्वनि की ओर देखते हैं सीता जी के मुख रूपी चन्द्रमा को चकोर की तरह एकटक निहारने लगते हैं. सकुचाते हुए सीता जी भी उन्हें नीचे से ऊपर तक निहारती हैं और पिता के प्रण को याद कर मन ही मन क्षुब्ध होती हैं.

गौरी पूजन कर सीता जी ने मांगा आशीर्वाद :

सीता जी की यह स्थिति देख सखियां भयभीत हो जाती और देर होने की बात कह सीता जी को साथ लेकर दोबारा मंदिर में पहुंचती हैं. जहां जनक दुलारी जानकी जी मां गौरी की पूजन-वंदन करते हुए हाथ जोड़कर कहती है कि सभी के हृदय में सदैव निवास करने वाली हे माता गौरी आप मेरे मनोरथ को भलीभांति जानती हैं और मन की बात प्रकट न करते हुए वह मां गौरी के चरण को पकड़ लेती हैं.

मनोकामना पूर्ण होने को मिला आशीर्वाद :

मां गौरी सीता जी के प्रेव भरी विनती को सुन उनके वश में हो जती है. उनके गले की माला खिसक पड़ती है और प्रतीमा मुस्करा देती है. सीता जी उस माला को प्रसाद रूप में ग्रहण कर धारण करती हैं. माता गौरी, जानकी जी के मनोकामना पूर्ण होने का आशीष देती हैं.

नवाह्न परायण से शुरू हुए कार्यक्रम :

महोत्सव के छठवें दिन भी नित्य की भांति प्रातः काल से ही आश्रम में विभिन्न धार्मिक आयोजन प्रारंभ हो गये. आश्रम के परिकरों द्वारा श्री रामचरितमानस के नवाह्न पारायण के साथ कार्यक्रमों की दिनचार्या शुरू हुई. दमोह की संकीर्तन मण्डली द्वारा नौ दिवसीय अखण्ड अष्टयाम हरि नाम संकीर्तन जारी रहा. इसी क्रम में पूज्य खाकी बाबा सरकार की पुण्यतिथि पर महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय परिसर स्थित समाधि मंदिर में स्थापित उनके विग्रह का पूजन-अर्चन किया गया और संत वृंदों द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया.

धनुष यज्ञ लीला में श्रीराम ने चढ़ाया प्रत्यांचा :

रात को आश्रम के परिकरों द्वारा धनुष यज्ञ लीला का मंचन किया गया. जिसमें प्रभु श्रीराम द्वारा धनुष को खंडित कर महाराज दशरथ के वचन को पूरा किया जाता है. धनुष खंडित होते ही जोर की आवाज होती है और दर्शक जय सियाराम का जयकारा लगाने लगते हैं. इसके बाद भगवान परशुराम पहुंचते हैं. इसके बाद भगवान परशुराम जी व लक्ष्मण जी के बीच कड़क संवाद होता है.

समष्टि भंडारे में वितरण हुआ प्रसाद :

साकेतवासी संत खाकी बाबा सरकार की पुण्यतिथि पर पूजन-अर्चन के बाद आश्रम परिसर में समष्टि भंडारे का आयोजन किया गया. जिसमें बड़ी संख्या में संतों एवं भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया. इस महोत्सव का साक्षी बनने के लिए देश के कोने-कोने से पूज्य संत श्रीनारायण दास जी भक्तमाली उपाख्य मामाजी के शिष्य एवं धर्माचार्य पहुंचे हुए हैं.

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