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हरिशयनी एकादशी के साथ ही बाजार हो गया मंदा

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आषाढ़ शुक्ल एकादशी अर्थात हरिशयनी एकादशी पर बुधवार को सिल्क सिटी की महिला श्रद्धालुओं ने उपवास कर पूजा-अर्चना की.

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आषाढ़ शुक्ल एकादशी अर्थात हरिशयनी एकादशी पर बुधवार को सिल्क सिटी की महिला श्रद्धालुओं ने उपवास कर पूजा-अर्चना की. इसके साथ चतुर्मास शुरू हो गया और हिंदू धर्मावलंबियों के धर्म-कर्म में गति आ गयी. इसके विपरीत देवशयनी एकादशी के बाद चार माह तक मांगलिक कार्य प्रतिबंधित हो गया. वहीं दुर्गा पूजा से पहले तक बाजार भी मंदा रहेगा. हालांकि सावन में पूजन सामग्री की बिक्री होगी.

गुरु व शुक्र अस्त होने के कारण शादी-विवाह का योग नहीं बनेगा. आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि तक शादियां होती है. इसे भदड़िया नवमी कहते हैं. इस बार भदड़िया नवमी 15 जुलाई को था.

सावन का बाजार करेगा भरपाई

अब सावन के आगमन पर स्थानीय बाजार के कारोबारियों की उम्मीद रहेगी. इसमें सावन से संबंधित कपड़े, पूजन सामग्री एवं भागलपुर के थोक बाजार से क्षेत्रीय बाजार में सावन संबंधित सामान की खरीदारी होगी. इसमें फल, कपड़े व पूजन सामग्री शामिल है.

चतुर्मास शुरू, धर्म-कर्म का बढ़ गया कार्य

चतुर्मास में हरिशयनी एकादशी से कार्तिक महीने के देवोत्थान तक भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर योग निंद्रा में चले जाते हैं. बुधवार को हरिशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु योग निंद्रा में चले गये और देवाधिदेव भगवान शंकर समाधि से जग गये. चार महीने चातुर्मास के व्रत होते हैं, जिसमें आषाढ, श्रावण, भाद्रपद और कार्तिक शामिल हैं. चार महीनों में देवशयन में चले गये, इसलिए सभी शुभ मांगलिक कार्यक्रम जैसे विवाह, यज्ञोपवीत मुंडन नवीन गृह प्रवेश वर्जित होते हैं. चातुर्मास के दौरान धार्मिक अनुष्ठान जैसे रामायण, नामकरण नक्षत्र शान्ति आदि कर्म करने की शास्त्र में मनाही नहीं है. पंडित अंजनी शर्मा ने बताया कि मिथिला पंचांग व काशी के चौखंभा प्रकाशन की प्रमाणित धार्मिक पुस्तक व्रत-त्योहार के मुताबिक यह विष्णु की सामान्य निंद्रा नहीं होती, बल्कि योगनिद्रा के अंत:स्थल में जाकर नवीन जागरण की प्रक्रिया होती है.

हरि शयनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु करते हैं शयन

ज्योतिषाचार्य पंडित आरके चौधरी ने बताया कि शुभ लग्न की तिथि में ही वैवाहिक व अन्य शुभ कार्य कर सकते हैं. ज्योतिषियों की मानें तो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 11 नवंबर को संध्याकाल 06 बजकर 46 मिनट पर शुरू होगी और 12 नवंबर को संध्याकाल 04 बजकर 04 मिनट पर समाप्त होगी. 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी है. इसके अगले दिन तुलसी विवाह है.

चार माह तक सृष्टि का संचालन भगवान महादेव के हाथों

पंडित सौरभ मिश्रा ने बताय कि हिंदू धर्म में चतुर्मास का विशेष महत्व का बताते हुए कहा कि इस चार माह में सृष्टि का संचालन महादेव स्वयं करते हैं. वर्षा काल होने से यह महीना अन्नदाता किसानों को भी प्रिय होता है. भगवान विष्णु के चतुर्मास का शयन एवं जागरण सृष्टि के नव सृजन का संकेत लेकर आता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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