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कतरनी के उत्पादन में उतार-चढ़ाव से किसान परेशान, एमएसपी हो सकता है उत्पादकों के लिए मरहम

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भागलपुर की पहचान कतरनी चावल की खुशबू है. दो साल बाद एक बार फिर सुखाड़ के चपेट में कतरनी आ गयी. पहले बारिश शून्य और फिर आखिरी समय में बारिश नहीं होने से उत्पादन 20 फीसदी तक घट गया.

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-दो साल बाद फिर देर से हुई बारिश के कारण सुखाड़ कतरनी किसानों पर हुआ साइड इफैक्ट, रकबा के साथ घट गया 20 फीसदी तक उत्पादन

भागलपुर की पहचान कतरनी चावल की खुशबू है. दो साल बाद एक बार फिर सुखाड़ के चपेट में कतरनी आ गयी. पहले बारिश शून्य और फिर आखिरी समय में बारिश नहीं होने से उत्पादन 20 फीसदी तक घट गया. ऐसे में कतरनी उत्पादक किसान सामान्य धान की तरह एमएसपी की मांग उठाने लगे हैं.

बिना समर्थन मूल्य मिले किसानों व उपभोक्ताओं के बीच हो रहा है संदेह पैदा

कतरनी उत्पादक किसानों की मानें तो दो साल पहले कतरनी का उत्पादन कम हुआ और 6000 रुपये प्रति क्विंटल तक धान की कीमत पहुंच गयी थी. पिछले साल कतरनी धान की कीमत 3500 तक ही पहुंची. ऐसे में कतरनी उत्पादक किसान को कीमत में उतार-चढ़ाव का खामियाजा भुगतना पड़ा. बारिश की स्थिति ठीक नहीं होने पर कतरनी का रकबा भी इस बार घट गया. किसान कतरनी लगाने से फिर मुंह फेरने लगे. उनका यह करना इसलिए भी जरूरी था कि कतरनी धान बगैर भरपूर सिंचाई के उपज नहीं है. .

एक ओर जहां बिहार कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से भागलपुरी कतरनी उत्पादक संघ भागलपुर प्रक्षेत्र अंतर्गत भागलपुर, बांका और मुंगेर जिले में कतरनी की खेती दोगुनेे करने का सपना सपना ही रह गया. अचानक असमय बारिश से जिले में किसानों को सुखाड़ का दंश झेलने को विवश कर दिया. इसका असर कतरनी की खेती पड़ा और 30 फीसदी तक रकबा घट गयी.

किसानों ने एक स्वर में उठायी मांग

लगातार किसानों को जागरूक करने के बाद अपनी खेती का रकबा बढ़ाना शुरू कर दिया और जिले में जगदीशपुर से निकलकर सुलतानगंज, सनहौला, शाहकुंड आदि क्षेत्र में भी कतरनी की खेती शुरू हो गयी थी. अचानक कतरनी की खेती पर खराब मौसम का डाका लग गया और कतरनी की खुशबू घट गयी.

इस बार जगदीशपुर क्षेत्र में 70 फीसदी खेती हुई है. जबकि पिछले साल शत-प्रतिशत खेती हुई थी. उत्पादन भी घट गया. एक हेक्टेयर में 28 विवंटल कतरनी धान की उपज बढ़कर 30 से 32 क्विंटल हो गयी थी, जो इस बार घट कर 25 क्विंटल तक पहुंचने का अनुमान है. मूल्य नहीं मिलने से किसानों का उत्साह ठंडा पड़ गया है. सरकार को एमएसपी देने की जरूरत है.

राजशेखर, कतरनी उत्पादक किसान, जगदीशपुर

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कृषि विभाग, बिहार कृषि विश्वविद्यालय और भागलपुर कतरनी उत्पादक संघ की देखरेख में जिले के जगदीशपुर, सन्हौला, शाहकुंड व सुलतानगंज प्रखंड में केवल 1400 से 15 एकड़ भूमि में कतरनी की खेती होने लगी थी. पिछले साल दो क्विंटल अधिक उपज हुई थी. एमएसपी मिलने के बाद किसान कतरनी उत्पादन के लिए प्रोत्साहित होंगे.

सुबोध नारायण चौधरी, अध्यक्ष, भागलपुर कतरनी उत्पादक संघ

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जैविक तरीके से कतरनी की खेती शुरू हो गयी है. अचानक कतरनी की खेती पर खराब मौसम का डाका लग गया और कतरनी की खुशबू घट गयी. सिंचाई के साथ-साथ कतरनी उत्पादक किसानों के लिए कई सुविधाएं सरकार को देनी होगी. सामान्य धान की तरह कतरनी का एमएसपी तय हो.

कृष्णानंद सिंह, कतरनी उत्पादक किसान, कहलगांव

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बहुत प्रयास के बाद कतरनी को जीआइ टैग मिला, लेकिन अब तक एमएसपी नहीं मिला है. कतरनी के मूल्य में इतना उतार-चढ़ाव होने से उपभोक्ताओं के बीच संदेह पैदा होता है कि एक साल में इतनी कीमत चढ़ गयी और एक साल में इतनी गिर गयी. उत्पादन व मांग के अनुसार कीमत बढ़-घट रही है. न्यूनतम समर्थन मूल्य जरूरी है.

राजकुमार पंजियारा, सचिव, कतरनी उत्पादक संघ

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कतरनी चूड़ा और चावल की मांग बढ़ने के साथ कीमत भी मुंहमांगी मिल रही थी, इससे किसानों का उत्साह देखते ही बन रहा था. अचानक मानसून ने धोखा दे दिया और कतरनी की खेती का रकबा बढ़ने की बजाय घट गयी. रकबा बढ़ाया गया था. यह कोई सरकारी लक्ष्य नहीं था. अब सुखाड़ ने पहले वाली स्थिति पर ला दिया.

भवना चौधरी, कतरनी उत्पादक किसान

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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