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रंगकर्म और जन सरोकार के बीच एक गहरा संबंध

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रंगकर्म और जन सरोकार के बीच गहरा संबंध है. जनसरोकार के बिना रंगकर्म बकवास है. रंगकर्म का जन्म ही समाज की कोख से हुआ है, इसलिए एक बेहतर इंसान और बेहतर समाज का सपना शुरू से ही रंगकर्म के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती रही है.

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रंगकर्म और जन सरोकार के बीच गहरा संबंध है. जनसरोकार के बिना रंगकर्म बकवास है. रंगकर्म का जन्म ही समाज की कोख से हुआ है, इसलिए एक बेहतर इंसान और बेहतर समाज का सपना शुरू से ही रंगकर्म के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती रही है. उक्त बातें प्रो चंद्रेश ने कही. मौका था रविवार को जयप्रकाश उद्यान में दिशा जन सांस्कृतिक मंच की ओर से रंग चौपाल अंतर्गत रंगकर्म और सामाजिक सरोकार विषयक परिचर्चा का.

उन्होंने कहा कि भागलपुर में रंगकर्म की शानदार परंपरा रही है. इसके विभिन्न पहलुओं पर गंभीर चर्चा होती रही है, लेकिन, पिछले काफी समय से इस क्षेत्र में सन्नाटे की स्थिति रही है. रंग चौपाल इसी सन्नाटे को तोड़ने की एक छोटी सी पहल है. युवा निर्देशक और रंगकर्मी डॉ चैतन्य प्रकाश ने कहा कि भागलपुर का रंगकर्म शुरू से ही जन सरोकार का पक्षधर रहा है. सिर्फ ऊपरी तामझाम वाला रंगकर्म बेजान और अंततः समाज विरोधी हो जाता है. भारत और पश्चिमी देशों में भी वही रंगकर्म टिकाऊ और प्रासंगिक रहा है, जो सामाजिक सरोकार से जुड़ा रहा है. आने वाले समय में रंग चौपाल में और भी सार्थक विमर्श की उम्मीद है.

वरिष्ठ रंगकर्मी विनय कुमार ने कहा कि भागलपुर का रंगकर्म जन सरोकार का एक बेहतर उदाहरण है. जरूरत इस बात की है कि मौजूदा परिस्थिति में रंगकर्म के सामने जो चुनौतियां है, आगे बढ़कर उन्हें स्वीकार करना होगा. ‘इप्टा’ से जुड़े वरीय रंगकर्मी संजीव कुमार ‘दीपू’ ने अपने अनुभवों को साझा किया. संबंध’ से जुड़े चर्चित निर्देशक और रंगकर्मी रितेश रंजन ने कहा कि हमलोगों ने रंगकर्म की शुरुआत ही जन सरोकार से जुड़े नाटकों से की और इससे हमें एक नई दृष्टि मिली है.

समवेत के निदेशक विक्रम ने कहा कि हमारी पीढ़ी का रंग संस्कार जन सरोकार से जुड़े रंगकर्म से हुआ है. जेएनयू की छात्रा प्रज्ञा ने भी इस विषय पर अपने सारगर्भित विचार रखे. इसके अलावा वरीय रंगकर्मी राजेश झा, रघुनंदन जी, संतोष झा, सत्यम कुमार, भानु प्रताप समेत कई वक्ताओं ने भी अपने विचार साझा किए.

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