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Azadi ka Amrit Mahotsavबिहार के इस जिला को गांधी,भगत,चंद्रशेखर और अगस्त क्रांति के लिए जाना जाता है,पढ़ें

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चंपारण का यह क्षेत्र भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी अपना अतुलनीय योगदान रखता है. ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ चम्पारण सत्याग्रह के माध्यम से आगे के स्वाधीनता संग्राम की मजबूत आधारशीला रखी. भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारी को भी चंपारण की मिट्टी ने मजबूत बनाया.

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बेतिया. चंपारण का नाम सुनते ही हमसब के ज़ेहन में चंपारण सत्याग्रह सबसे पहले आता है. लेकिन देश की आजादी में चंपारण और यहां की लोगों की भूमिका अतुलनीय रहा है. इस जगह से ही गांधी जी की पहली सत्याग्रह शुरू हुआ. ये तो सभी को पता है. लेकिन भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद की आने की बात कम ही लोग जानते हैं. इसके अलावा शहीद आठ क्रांतिकारियों के बारे में भी लोग नहीं जानते होंगे. आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर आज इन महापुरुषों के योगदान को याद करना भी एक सच्ची श्रद्धांजलि है.

गांधी जी ने यहां से की थी सत्याग्रह की शुरुआत

1907 में किसान निलहों के अत्याचार समय -समय पर संघर्ष करते आ रहे थे. जिसका नेतृत्व जिला स्तर के नेताओं सहित राज कुमार शुक्ल, शेख गुलाब, शीतल राय आदि द्वारा किया जा रहा था. पंडित राजकुमार शुक्ल द्वारा 1916 में कांग्रेस के 31 वें सम्मेलन में संपूर्ण जिले के दु:ख दर्द से महात्मा गांधी को अवगत कराया गया. जिससे प्रभावित होकर गांधी जी ने चम्पारण के रैयतों के बारे में एक सहानुभूति प्रस्ताव पारित करवाया. पंडित राज कुमार शुक्ल के प्रयास से 15 अप्रैल 1917 को चम्पारण की धरती पर महात्मा गांधी का आगमन हुआ तथा उनके नेतृत्व में निल आन्दोलन से आजादी तक का सफर तय हुआ.

काकोरी कांड के बाद चद्रशेखर आजाद भी यहां पहुंचे थे

पश्चिम चंपारण के क्रांतिकारी कमलनाथ तिवारी, केदार मणि शुक्ल जैसे दर्जनों क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत का जीना दुश्वार कर रखा था. काकोरी लूटकांड के बाद देश में जगह-जगह छापे पड़ रहे थे. अंग्रेजी हुकूमत से बचते-बचाते 1925 में चंद्रशेखर आजाद बेतिया पहुंचे थे. क्रांतिकारी पीर मोहम्मद मुनीस राज हाईस्कूल के शिक्षक हरिवंश सहाय के मित्र थे. बाद में उन्हें क्रांतिकारियों को मदद करने के आरोप में हटा दिया गया था. इन सबों के सहयोग से आंदोलन की लौ जलाने की कोशिश हुई थी.

भगत सिंह 2 सप्ताह यहां रहे थे

स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में हथियार खरीदने के लिए पैसा एकत्रित करने के लिए भगत सिंह वर्ष 1929 में चंपारण में आए थे. भगत सिंह उदयपुर जंगल में भेष बदलकर करीब 2 सप्ताह तक ठहरे थे. केदार मणि शुक्ल के घर से उनके लिए खाना बन कर जाता था. वे एक रात बेतिया के जोड़ा इनार मोहल्ले में शिक्षक हरिवेश सहाय के घर भी ठहरे थे. पहचान छुपाने के लिए भगत सिंह को बबुआजी कह कर पुकारा जाता था. इसी दौरान महाराजा पुस्तकालय के मैदान में क्रांतिकारी एकत्रित हुए थे. जहां असेंबली में बम फेंकने पर चर्चा हुई थी. लेकिन यहां अंतिम फैसला नहीं हो सका था.

अगस्त क्रांति की हुई थी शुरुआत

24 अगस्त, 1942 को बेतिया के छोटा रमना के मैदान में क्रांतिकारियों की एक बड़ी रैली हुई. करीब 10 हज़ार क्रांतिकारीगण इस सभा में उपस्थित थे. ब्रिटिश हुकूमत ने भी आंदोलनकारियों से निबटने की तैयारी कर रखी थी. बताया जाता है उस वक्त चम्पारण का जिलाधिकारी एक निरकुंश अंग्रेज सर वाट लो था और अनुमंडलाधिकारी श्री कृपाशंकर सिंह थे. भारत माता की जय और वन्दे मातरम की गगनभेदी नारे के साथ आंदोलनकारी रमना मैदान में आ रहे थे. प्रशासन ने इन आंदोलकारियों को सबक सिखाने के नियत से एक भी भारतीय जवानों को वहां नहीं लगाया था.

8 वीरों ने गोली खाकर बताई आजाद का मतलब

आंदोलकारियों की बैठक शुरू होते जिले का कमिश्नर टॉमियो के साथ मौके पर पहुंचते गोली चलाने का हुक्म दे दिया. नतीजा मौके पर 8 जवान उनके गोलियों का शिकार हुए और अपनी मातृभूमि के आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. इनमें 1.शाहिद गणेश राय, 2.भिखारी कुशवाहा, 3.जगन्नाथपुरी, 4.भगवत उपाध्याय, 5.गणेश राव, 6.राजेश्वर मिश्र, 7.तुलसी राउत, 8.फ़ौजदार यादव क्रांतिकारी शामिल थे.

चंपारण के संघर्ष एवं बलिदान को हम नहीं भुला सकते हैं

चंपारण का यह क्षेत्र भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी अपना अतुलनीय योगदान रखता है. इसके हर आन्दोलन में इस जिले का योगदान रहा है. ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ चम्पारण सत्याग्रह के माध्यम से आगे के स्वाधीनता संग्राम की मजबूत आधारशीला रखी. भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारी को भी चंपारण की मिट्टी ने मजबूत बनाया. भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में चम्पारण के संघर्ष एवं बलिदान को हम नहीं भुला सकते हैं. अगस्त क्रांति के दौरान 24 अगस्त 1942 को वह दिन चम्पारण हीं नहीं भारत वर्ष के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है. इस दिन चम्पारण के आठ सपूत ने भारत माता की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहूति दी. चम्पारण के इन क्रांतिकारी शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया.उनकी शहादत स्वतंत्रता के दीप के रूप में 15 अगस्त 1947 को सामने आया.

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