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‘बेल नियम है और जेल अपवाद’, प्रेम प्रकाश को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की यह टिप्पणी

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Supreme Court ने झारखंड के चर्चित जमीन घोटाला मामले में आरोपी प्रेम प्रकाश को जमानत देते हुए टिप्पणी की-बेल नियम है और जेल अपवाद. सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के मायने क्या है यह जानने के लिए पढ़ें यह विशेष आलेख.

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Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त बुधवार को झारखंड के बहुचर्चित जमीन घोटाला मामले में आरोपी प्रेम प्रकाश को जमानत देते हुए कहा-बेल नियम है और जेल अपवाद’ चाहे मामला मनी लांड्रिंग का ही क्यों ना हो. सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने न्याय व्यवस्था में बेल के महत्व को एक बार फिर से स्थापित किया है. सुप्रीम कोर्ट ने आज जो टिप्पणी की है उसका जिक्र सबसे पहले 1977 में जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर ने किया था. आज कोर्ट ने उस टिप्पणी को दोहराया है, अब आम आदमी यह जानने के लिए उत्सुक है सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का अर्थ क्या है. प्रभात खबर ने तीन अधिवक्ताओं अधिवक्ता अवनीश रंजन मिश्रा, अधिवक्ता आलोक आनंद और अधिवक्ता शाम्भवी मुखर्जी से बातचीत की और उसके आधार पर भारतीय न्याय व्यवस्था में बेल के महत्व पर यह आलेख तैयार किया है.

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क्या है बेल

बेल या जमानत भारतीय न्याय व्यवस्था का आवश्यक अंग है. विश्व की किसी भी न्याय व्यवस्था में बेल का प्रावधान है और इसकी जरूरत भी महसूस की जाती है. बेल का सामान्य भाषा में अर्थ होता है किसी आरोपी या अभियुक्त की जेल से रिहाई. किसी आरोपी या अभियुक्त को कोर्ट सशर्त रिहा करता है, जिसमें यह व्यवस्था की जाती है कि रिहा होने वाला व्यक्ति जब जरूरत होगी कोर्ट के सामने उपस्थित होगा. वह देश छोड़कर नहीं जाएगा और संबंधित मामले की जांच में सहयोग करेगा. कोर्ट बेल देते वक्त कुछ बांड भी भरवाती है, जिसमें कुछ निर्धारित रकम आरोपी को कोर्ट के पास जमा करानी होती है.


Criminal Procedure Code1973 में बेल को डिफाइन नहीं किया गया है, लेकिन सेक्शन 2 (ए) CrPC में यह बताया गया है कि कौन सा अपराध जमानत योग्य है और कौन सा नहीं . हालांकि जो अपराध गैर जमानती होता है, उसमें भी जमानत देने का प्रावधान है, लेकिन यह कोर्ट के विवेक पर निर्भर है कि वह उस मामले में किसी अपराधी को जमानत देगा या नहीं. भारतीय न्याय संहिता 2023 में भी बेल के बारे में पूरी जानकारी दी गई है.


कितने प्रकार का होता है बेल

बेल मुख्यत: दो प्रकार का होता है-

रेगुलर बेल : रेगुलर बेल उन हालात में दिया जाता है जब कोई व्यक्ति जेल जाता है और उसपर किसी आपराधिक मामले में कोर्ट में सुनवाई चल रही होती है. रेगुलर बेल का जिक्र CrPC की धारा 439 में किया गया था, जबकि भारतीय न्याय संहिता में इसका जिक्र 482 में किया गया है.

एंटीसिपेटरी बेल: एंटीसिपेटरी बेल तब दिया जाता है जब किसी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज होती है और उसे इस बात की शंका होती है कि उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो वह बेल के लिए आवेदन देता है और कोर्ट को अगर यह लगता है कि उस व्यक्ति को बेल दे देना चाहिए तो कोर्ट उसे बेल देता है. CrPC की धारा 438 में एंटीसिपेटरी बेल का जिक्र था, जबकि भारतीय न्याय संहिता की धारा 481 में इसका उल्लेख है.

एक और बेल होता है जिसे तीसरे प्रकार का बेल कहा जा सकता है- वह है डिफाॅल्ट बेल. डिफाॅल्ट बेल तब दिया जाता है जब किसी अपराध में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तार करने के बाद निर्धारित अवधि के दौरान चार्जशीट दाखिल ना किया जाए तो उसे जमानत मिल सकती है. मसलन महिलाओं के खिलाफ अगर अपराध हो तो पुलिस को 60 दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल करना होता है, लेकिन पुलिस अगर 60 दिन तक चार्जशीट दाखिल नहीं करती है, तो आरोपी को डिफाॅल्ट बेल मिल सकता है. भारतीय न्याय संहिता की धारा 187 में इसका जिक्र है.


किस तरह के होते हैं अपराध


बेल के नजरिए से देखें तो अपराध दो प्रकार के होते हैं-1. जमानती 2. गैर जमानती.
जमानती अपराध में व्यक्ति बेल की मांग कर सकता है, क्योंकि इसे उसका अधिकार बताया गया है, जबकि गैर जमानती अपराध में बेल किसी व्यक्ति का अधिकार नहीं होता है, यह कोर्ट के स्वविवेक पर निर्भर है कि वह किसी को बेल देगा या नहीं.


संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध


अपराध की प्रवृत्ति के हिसाब से उसे संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है. संज्ञेय अपराध उस तरह के अपराध को कहते हैं, जिसमें गिरफ्तारी के लिए वारंट की जरूरत नहीं होती है. वहीं असंज्ञेय अपराध में बिना वारंट के गिरफ्तारी नहीं हो सकती है. मसलन महिलाओं के खिलाफ किया गया कोई भी अपराध संज्ञेय है, जबकि मानहानि, भावना भड़काना और धोखाधड़ी असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है.

विचाराधीन बंदी को अकारण जेल में ना रखा जाए


सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी पर अधिवक्ता अवनीश रंजन मिश्रा कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने आज जो टिप्पणी बेल को लेकर की है वह- विधिक सामंड की थ्योरी से ली गई है. यह टिप्पणी विचाराधीन कैदियों के लिए है और इसका उद्देश्य यह है कि किसी भी विचाराधीन बंदी को अकारण जेल में ना रखा जाए. यह संभव है कि किसी केस का ट्राॅयल वर्षों चले और उसके बाद आरोपी को कोर्ट बरी कर दे. उस हालात में बंदी के साथ अन्याय होगा क्योंकि संभव है कि उसे एक या दो साल की सजा होती और वह ट्राॅयल के दौरान ही उससे ज्यादा समय जेल में बिता चुका है. इसलिए किसी के भी साथ अन्याय ना हो, इसे देखते हुए बेल के प्रावधान को एक तरह से कैदियों का हक माना गया है.


अधिवक्ता आलोक आनंद का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने बेल पर टिप्पणी करके पर्सनल लिबर्टी के सिद्धांत को एक बार फिर से स्थापित किया है. संविधान का अनुच्छेद 21 यह कहता है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं. किसी मामले में अगर कोई व्यक्ति आरोपी घोषित होता है, तो उसके खिलाफ अगर जांच की प्रक्रिया पूरी हो जाती है और उस मामले में अन्य जांच जारी रहती है, तब भी उसे बेल देने का प्रावधान है. बशर्ते कोर्ट को यह लगना चाहिए कि जेल से रिहा होने के बाद वह कोई गलत हरकत नहीं करेगा, जैसे कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा.

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FAQ : बेल कितने प्रकार का होता है?

बेल मुख्यत: दो प्रकार का होता है नियमित जमानत और अग्रिम जमानत.

अग्रिम जमानत कब दी जाती है?

अग्रिम जमानत तब दी जाती है, जब व्यक्ति विशेष की गिरफ्तारी ना हुई हो. उसके खिलाफ एफआईआर हुआ हो और उसे यह शंका हो कि उसकी गिरफ्तारी हो सकती है.

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