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रक्षा क्षेत्र में तकनीकी विकास जारी रखना चाहिए

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वास्तविक नियंत्रण रेखा और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की गतिविधियां भारत के लिए गंभीर रक्षा चुनौती हैं. नियंत्रण रेखा की चुनौतियां हैं ही.

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रक्षा बजट में सरकार का मुख्य फोकस घरेलू मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने पर है ताकि आयात पर निर्भरता कम हो. वित्त वर्ष 2023-24 में रक्षा उत्पादन लगभग 1.27 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. उल्लेखनीय है कि भारत सबसे बड़े रक्षा आयातक देशों में है, पर मोदी सरकार के आने के बाद से घरेलू उत्पादन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. तीन साल में घरेलू बाजार से खरीदी जाने वाली चीजों की सूची में 12.3 हजार से अधिक चीजें शामिल हो चुकी हैं. हाल में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की है कि सैन्य वस्तुओं के निर्यात को मौजूदा 21,083 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2028-29 तक 50 हजार रुपये करने का लक्ष्य निर्धारित किया है.

अगले पांच-छह वर्षों में भारतीय सशस्त्र सेनाएं खरीद पर 130 अरब डॉलर का खर्च कर सकती हैं. इस वित्त वर्ष के लिए बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए 6.21 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. उल्लेखनीय है कि कई वर्षों से बजट में सर्वाधिक आवंटन इसी क्षेत्र को होता आया है. यह बजटीय खर्च का लगभग 13 प्रतिशत है, पर जीडीपी के दो प्रतिशत हिस्से से भी कम है. यह आवंटन बीते वित्त वर्ष से 4.72 प्रतिशत अधिक है. इसमें से 27.67 प्रतिशत खरीद, 14.82 प्रतिशत रखरखाव एवं तैयारियों, 30.68 प्रतिशत वेतन-भत्ते, 22.72 प्रतिशत पेंशन तथा 4.11 प्रतिशत रक्षा मंत्रालय के अधीन सिविल संस्थानों के लिए आवंटित किये गये हैं.

वैश्विक भू-राजनीतिक तनावों एवं संघर्षों को देखते हुए भारत को भी समुचित तैयारी की आवश्यकता है. वास्तविक नियंत्रण रेखा और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की गतिविधियां भारत के लिए गंभीर रक्षा चुनौती हैं. नियंत्रण रेखा की चुनौतियां हैं ही. ऐसा दिखता है कि रक्षा बजट में इन चुनौतियों का संज्ञान लिया गया है, पर अधिक आवंटन की आवश्यकता बनी हुई है. अर्थव्यवस्था की गति में कमी आने के बावजूद चीन ने 2015 से अपने रक्षा खर्च को दुगुना कर दिया है.

चीन ने 2024-25 में रक्षा क्षेत्र के लिए 231.36 अरब डॉलर आवंटित किया है. मोदी सरकार ने अपने बजट में लगभग 75 अरब डॉलर का आवंटन किया है, जो चीन की चुनौतियों को देखते हुए पर्याप्त नहीं है. पहले कार्यकाल में मोदी सरकार ने रक्षा क्षेत्र में 18-19 तथा दूसरे कार्यकाल में 13-14 प्रतिशत खर्च किया था. रक्षा क्षेत्र की अपेक्षा है कि केंद्र सरकार के कुल खर्च का कम-से-कम 25 प्रतिशत रक्षा के मद में, विशेषकर आधुनिकीकरण एवं रखरखाव में, खर्च होना चाहिए. आम तौर पर रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा (50 प्रतिशत से अधिक) वेतन, भत्ते और पेंशन में खर्च हो जाता है.

यह गलत समझ है कि अग्निवीर योजना लागू करने का बड़ा कारण पेंशन का बोझ कम करना है. रक्षा अर्थशास्त्रियों ने रेखांकित किया है कि इस योजना से पेंशन के मद में लगभग 1,054 करोड़ रुपये की ही बचत होगी. यदि सरकार वेतन, भत्ते एवं पेंशन को ठोस रक्षा बजट से अलग कर देती है तो इस क्षेत्र का बहुत विकास होगा. इस मद को केंद्र सरकार के अन्य कर्मियों के वेतन, भत्ते एवं पेंशन के साथ जोड़ देना चाहिए.

अग्निवीर योजना की भारी आलोचना के कारण सरकार सेना के प्रस्तावों को मानते हुए इस नीति में बदलाव कर सकती है. चुनावी विश्लेषकों का आकलन है कि इस योजना से नाराजगी का असर परिणामों पर पड़ा है. इसलिए, इसकी बड़ी संभावना है कि सरकार समीक्षा समिति की सिफारिशों को मानकर योजना में बदलाव करेगी. कुछ भाजपा शासित राज्यों में अग्निवीरों के लिए कुछ श्रेणियों में 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है.

सरकार को रक्षा क्षेत्र से जुड़े अपने दो उद्देश्यों- आत्मनिर्भरता और निर्यात- को आगे बढ़ाने पर काम करते रहना चाहिए क्योंकि भारत ने आयातक की जगह निर्यातक के रूप में अपनी छवि स्थापित कर ली है. बीते वित्त वर्ष में भारत का रक्षा निर्यात 21,083 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. यह वित्त वर्ष 2022-23 की तुलना में 32.5 प्रतिशत अधिक है.

आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2013-14 की तुलना में बीते दस वर्षों में रक्षा निर्यात में 31 गुना बढ़ोतरी हुई है. रक्षा उद्योग, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा कंपनियां भी हैं और निजी क्षेत्र की भी, ने रक्षा निर्यात के अब तक के उच्चतम स्तर को हासिल करने के लिए बहुत काम किया है. इसमें निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 60 और सरकारी क्षेत्र की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत रही है.

भारत को स्वदेशी उत्पादन बढ़ाने एवं तकनीकी विकास की नीति को जारी रखना चाहिए ताकि आयात पर हमारी निर्भरता कम हो सके तथा अर्थव्यवस्था को गति मिल सके. वर्ष 2027 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने में रक्षा निर्यात बड़ी भूमिका निभा सकता है. बहरहाल, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को पाने में कुछ समय लग सकता है.

चीन, पाकिस्तान, जम्मू क्षेत्र में बढ़ते आतंकी हमलों के खतरों को देखते हुए भारत को आयात और घरेलू उत्पादन से रक्षा आधुनिकीकरण तथा स्वदेशी उत्पादन बढ़ाने के दोनों मोर्चों पर काम करते रहना होगा. इन उद्देश्यों तथा राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत बनाये रखने के लिए मोदी सरकार को हर साल रक्षा के मद में केंद्र सरकार के कुल खर्च का कम-से-कम 25 प्रतिशत खर्च करना चाहिए. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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