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भारत-पाकिस्तान संबंधों में सुधार की आहट

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संभवत: क्रिकेट मैचों और व्यापार संबंधी कुछ मुद्दों पर बातचीत से इस प्रक्रिया को प्रारंभ करने के संकेत हैं. इससे उम्मीद बंधी है. पाकिस्तान में नयी सरकार और राजनीतिक स्थिति है. उसकी अर्थव्यवस्था के समक्ष अनेक मुश्किलें हैं. पाकिस्तान में ऐसी बातें पहले से कही जा रही हैं कि भारत से व्यापार से देश को फायदा ही होगा. लेकिन कोई बड़ी उम्मीद करने से अभी बचना भी चाहिए क्योंकि 2019 के बाद से जो हालात रहे हैं, उसमें सुधार के लिए लगातार कोशिश की जरूरत होगी.

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पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की दो दिवसीय बैठक अनेक अर्थों में महत्वपूर्ण रही है. इसमें रूस, ईरान आदि जैसे समूह के कुछ सदस्यों पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की आलोचना की गयी है. बैठक में संगठन के देशों के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ाने पर भी सहमति बनी. यह भी कहा गया कि वैश्विक व्यापार के लिए जो अंतरराष्ट्रीय नियम हैं, उनका पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए. चीन की अगुवाई में चल रही बेल्ट-रोड परियोजना पर भी चर्चा हुई, जिसकी घोषणा पर भारत ने हस्ताक्षर नहीं किया.

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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि भारत ने सम्मेलन में हुई वार्ताओं में सकारात्मक योगदान दिया है. उन्होंने भारतीय दृष्टि से आठ मुख्य बातों को रेखांकित किया है, जिनमें पूरी धरती के साझा भविष्य तथा मानवता को एक परिवार के रूप में देखने के विचार के आधार पर संवाद बढ़ाना शामिल है. एससीओ स्टार्टअप फोरम, पारंपरिक दवाओं को बढ़ावा देने जैसे भारतीय प्रयासों के परिणामों का सदस्यों ने स्वागत किया है. संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए समूह भारत के मिशन लाइफ से प्रेरणा ले रहा है. भारत ने डिजिटल समावेशीकरण, पारदर्शी बहुपक्षीय व्यापार, खाद्य एवं पोषण सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय कानूनों को मजबूती आदि अहम पहलुओं पर भी जोर दिया है.

बदलते और अनिश्चित भू-राजनीतिक परिदृश्य में चीन, भारत, रूस, ईरान और मध्य एशियाई गणराज्यों की यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण रही क्योंकि इसमें कुछ प्रमुख गैर-पश्चिमी शक्तियों ने भागीदारी की तथा वैश्विक महत्व के मुद्दों पर चर्चा हुई. चूंकि यह आयोजन इस्लामाबाद में हुआ और लगभग एक दशक के बाद भारत की ओर से किसी वरिष्ठ नेता का दौरा हुआ, तो स्वाभाविक रूप से दोनों देशों के आपसी संबंधों के लिहाज से भी यह अहम अवसर बन गया. हालांकि एससीओ की ही एक बैठक के सिलसिले में कुछ साल पहले पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री भारत आये थे, पर उस समय आपसी तनाव को दूर करने की कोशिश नहीं हो पायी थी.

इसी तनाव के कारण सार्क का शिखर सम्मेलन भी नहीं हो पा रहा है. जयशंकर की यात्रा से पहले यह आशा जतायी जा रही थी कि भले ही यह एससीओ बैठक है, पर भारत-पाकिस्तान संबंधों के मामले में भी कुछ सकारात्मक हो सकता है. भारतीय विदेश मंत्री की वहां अच्छी मेहमाननवाजी हुई और जयशंकर ने भी इसे रेखांकित करते हुए धन्यवाद दिया है. गोवा में हुई बैठक के विपरीत इस्लामाबाद में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने हाथ भी मिलाया और अनौपचारिक बातचीत भी की. डॉ जयशंकर और पाकिस्तान के विदेश मंत्री एवं उप-प्रधानमंत्री इशाक डार के बीच हुई बातचीत के बारे में जो रिपोर्टों से पता चलता है, उसमें संबंध सुधारने के दिशा में छोटे-छोटे कदम उठाने पर चर्चा हुई है.

संभवत: क्रिकेट मैचों और व्यापार संबंधी कुछ मुद्दों पर बातचीत से इस प्रक्रिया को प्रारंभ करने के संकेत हैं. इससे उम्मीद बंधी है. पाकिस्तान में नयी सरकार और राजनीतिक स्थिति है. उसकी अर्थव्यवस्था के समक्ष अनेक मुश्किलें हैं. पाकिस्तान में ऐसी बातें पहले से कही जा रही हैं कि भारत से व्यापार से देश को फायदा ही होगा. लेकिन कोई बड़ी उम्मीद करने से अभी बचना भी चाहिए क्योंकि 2019 के बाद से जो हालात रहे हैं, उसमें सुधार के लिए लगातार कोशिश की जरूरत होगी. पर यह अवश्य कहा जा सकता है कि दोनों विदेश मंत्रियों की बातचीत से एक आधार तो बना ही है, जिस पर आगे काम किया जा सकता है.

कुछ विश्लेषकों ने उचित ही रेखांकित किया है कि भारत और पाकिस्तान में ऐसे तत्व भी मौजूद हैं, जो किसी प्रयास को पटरी से उतार सकते हैं. आतंकी और अलगाववादी समूह द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करते रहे हैं. यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिए कि 2019 के बाद से दोनों देशों की ओर से कोई विशेष पहल नहीं हुई है. इससे द्विपक्षीय संबंध तो तनावपूर्ण हुए ही हैं, सार्क समेत अनेक क्षेत्रीय पहल भी ठंडी पड़ गयी हैं. अगर क्षेत्रीय स्तर पर प्रयासों को गति मिलती है, तब भी उसे इस यात्रा का सकारात्मक परिणाम माना जायेगा.

भारत और पाकिस्तान के संबंध के संदर्भ में एक बात हमेशा कही जाती है कि इस पर तीन कारकों का प्रभाव पड़ता है. एक तो सरकारों का समीकरण है और दूसरा आतंकी समूहों, राजनीतिक संगठनों जैसे नॉन-स्टेट एक्टर्स हैं. तीसरा कारक बाहरी असर का है, मसलन अमेरिका, चीन आदि. भारत और चीन के आर्थिक संबंध तो हैं, पर राजनीतिक रिश्ते खराब हैं. हम जब पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों का आकलन करते हैं, तो उसमें चीन के साथ उसके रणनीतिक संबंधों के आयाम का भी ध्यान रखते हैं.

यदि भविष्य में भारत-चीन संबंधों में बेहतरी आती है, तो उसका असर भारत और पाकिस्तान के आपसी रिश्तों पर भी जरूर पड़ेगा. विदेश मंत्री जयशंकर पहले भी कहते रहे हैं कि द्विपक्षीय संबंधों के बारे में जो पाकिस्तान का रवैया होगा, भारत की प्रतिक्रिया उसी के अनुरूप होगी. भारत में आतंक और अलगाववाद बढ़ाने में जो पाकिस्तान की भूमिका रही है, वह आपसी रिश्ते को सुधारने में बड़ी बाधा है. इस मसले पर पाकिस्तान को ऐसे कदम उठाने होंगे, जिससे भरोसा बढ़ाने में मदद मिले. इसके अलावा, दोनों देशों को छोटे-छोटे कदमों से शुरुआत करनी चाहिए.

भारत और पाकिस्तान में क्रिकेट बेहद लोकप्रिय खेल है और जब भी इनका आपस में मुकाबला होता है, उस पर सभी का ध्यान होता है. यदि दोनों देशों की टीमों की आवाजाही हो और नियमित टूर्नामेंट हों, तो लोगों में उत्साह बढ़ाने में मदद मिलेगी. इसी तरह व्यापारिक गतिविधियों को धीरे-धीरे बढ़ावा देना चाहिए. दोनों देशों के बीच कुछ अनौपचारिक कारोबार होता है, पर औपचारिक स्तर पर मामला बहुत खराब हो चुका है. पर्यटन बढ़ाने के लिए वीजा की संख्या में बढ़ोतरी की जा सकती है.

साल 2019 के बाद से दोनों देशों की जनता के मन में भी खटास बढ़ी है. इसे दूर करने में ये कोशिशें योगदान दे सकती हैं और उनके आधार पर भी आगे बेहतरी के अन्य उपाय किये जा सकते हैं. यह अच्छी बात है कि एससीओ बैठक के लिए बड़ी तादाद में भारतीय पत्रकारों को वीजा दिया गया. तो, ऐसे उपायों की दरकार है, जिनसे ठोस संपर्क भी स्थापित हो तथा लोगों में भी भरोसा बढ़े. जो तत्व रिश्तों के लिए खतरनाक हैं, पाकिस्तान को उन्हें नियंत्रित करने पर ध्यान देना चाहिए. इस उम्मीद को बेकार नहीं जाने दिया जाना चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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