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खेल प्रदर्शन में सुधार की पूरी गुंजाइश

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भारत ने पिछले ओलिंपिक के मुकाबले कमजोर प्रदर्शन ही नहीं किया है, बल्कि इस बार पदक तालिका में पाकिस्तान के 62वें स्थान से पीछे है. पाकिस्तान के जेवेलिन थ्रोअर नदीम अशरफ ने नीरज चोपड़ा को पछाड़कर स्वर्ण पदक जीतकर अपने देश को भारत से आगे निकाला है.

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Performance in Sports: भारत का पेरिस ओलिंपिक का अभियान कुछ खुशियों और तमाम सुधार की गुंजाइशों के साथ खत्म हो गया. भारत ने टोक्यो ओलिंपिक के मुकाबले कमजोर प्रदर्शन कर एक रजत सहित छह पदक जीते. इस प्रदर्शन से वह पदक तालिका में 71वें स्थान पर रहा. इसमें महिला पहलवान विनेश फोगाट का एक रजत पदक और शामिल हो सकता है. विनेश को यदि खेल पंचाट न्यायालय पदक दिला देता है, तो भारत 71वें स्थान से खिसककर 68वें स्थान तक आ सकता है.

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भारत ने पिछले ओलिंपिक के मुकाबले कमजोर प्रदर्शन ही नहीं किया है, बल्कि इस बार पदक तालिका में पाकिस्तान के 62वें स्थान से पीछे है. पाकिस्तान के जेवेलिन थ्रोअर नदीम अशरफ ने नीरज चोपड़ा को पछाड़कर स्वर्ण पदक जीतकर अपने देश को भारत से आगे निकाला है. हालांकि पाकिस्तान ने सिर्फ एक ही पदक जीता है, पर पदक तालिका में स्थानों का निर्धारण स्वर्ण पदकों के हिसाब से होता है. भारत जैसे सबसे बड़ी आबादी वाले देश के लिए बिना स्वर्ण के छह पदक जीतना बहुत खुशियां नहीं देता है. हमें और कुछ नहीं, तो टॉप 20 देशों में तो शामिल रहना चाहिए. इसके लिए कोई बहुत पहाड़ उठाने की जरूरत नहीं है. सिर्फ हमारे खिलाड़ियों को चार स्वर्ण पदक जीतना होगा. तब हम इसे सम्मानजनक प्रदर्शन कह सकते हैं.


भारत के लिए दो कांस्य पदक जीतने वाली मनु भाकर, रजत पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा, स्वप्निल कुसाले, पहलवान अमन सेहरावत, सरबजोत सिंह और भारतीय पुरुष हॉकी टीम के प्रदर्शन की जितनी भी प्रशंसा की जाए, वह कम है. पर हम शायद खिलाड़ियों की मानसिक शक्ति पर ज्यादा काम नहीं करने की वजह से इस स्थिति में पहुंचे हैं. छह खिलाड़ी ऐसे थे, जो पदक के करीब पहुंचकर भी नहीं जीत सके. ये खिलाड़ी थे- निशानेबाज अर्जुन बबुता, तीरंदाज बोम्मादेवरा धीरज और अंकिता भकत की जोड़ी, महेश्वरी चौहान और अनंतजीत की जोड़ी, शटलर लक्ष्य सेन और मनु की तीसरी स्पर्धा. ये पदक आ जाते, तो भारत के पदकों की संख्या दहाई अंक में पहुंच जाती.

भारत के लिए छह खिलाड़ियों और टीमों के पदक जीतने, आधा दर्जन पदक हाथ से खिसकने के अलावा 15 स्पर्धाओं में भारत ने क्वार्टर फाइनल तक चुनौती पेश की. इससे यह तो साफ है कि भारत बढ़ तो सही दिशा में रहा है, जरूरत सिर्फ इन प्रयासों को थोड़ी और गति देने की है ताकि भारत दिग्गजों के साथ खड़ा नजर आने लगे. अब हमारे खिलाड़ी सुविधाओं का रोना नहीं रो सकते हैं. उन्हें हर वह सुविधा उपलब्ध करायी गयी, जिसकी जरूरत थी. भारत सरकार ने खिलाड़ियों की तैयारियों पर 470 करोड़ रुपये खर्च किये. अमेरिका जैसे कुछ देशों में हुए खर्च के मुकाबले यह कम हो, पर इतना जरूर है कि इतने पदक लाये जा सकें, जिससे देश खुशी से झूम उठे. हम एथलेटिक्स, तीरंदाजी, बैडमिंटन, मुक्केबाजी और वेटलिफ्टिंग में आशा के अनुरूप प्रदर्शन करने में असफल रहे.


हॉकी में भारत ने भले ही कांस्य पदक जीता है, पर यह भारतवासियों के लिए सोने के तमगे से कम कतई नहीं है. हम सभी जानते हैं कि ओलिंपिक हॉकी में भारत का सालों तक दबदबा रहा है. पर 1980 के मास्को ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद हॉकी के स्तर में निरंतर गिरावट आने से 2008 के बीजिंग ओलिंपिक तक यह रसातल में पहुंच गयी थी. उस ओलिंपिक के लिए तो टीम क्वालीफाई भी नहीं कर सकी थी. पर टोक्यो ओलिंपिक में भारतीय टीम ने 41 साल बाद कांस्य पदक जीता. अब भारत ने लगातार दूसरे ओलिंपिक में पदक जीतकर यह तो जता दिया है कि वह अब बड़ी टीमों में शुमार हो गयी है. सच तो यह है कि भारतीय टीम ने यदि सेमीफाइनल में जर्मनी के खिलाफ गलती नहीं की होती, तो इस बार पदक का रंग जरूर बदल जाता. भारत को अब जो थोड़ी बहुत सफलता मिली है, उस पर इतराने के बजाय, 2028 के लॉस एंजिल्स ओलिंपिक के लिए अभी से योजना बनाने की शुरुआत कर देनी चाहिए.


भारत के महान शटलर प्रकाश पादुकोण ने कहा था कि अब खिलाड़ियों को भी अपने प्रदर्शन की जिम्मेदारी उठानी चाहिए. इस बात पर अब अमल करने का मौका आ गया है. हमें सबसे पहले ऐसे खिलाड़ियों की किनारे करने की जरूरत है, जो दो-तीन ओलिंपिक में भाग लेकर भी पोडियम पर चढ़ने में असफल रहे हैं. अब मौका है कि युवाओं पर फोकस किया जाए. इन युवाओं के कौशल को मांजने के साथ मानसिक तौर पर मजबूत करने का प्रयास किया जाए. हम भारतीय खिलाड़ियों को मानसिक तौर पर मजबूत बनाने का काम जरूर करें. ऐसा इस बार अगर किया जाता तो लक्ष्य सेन सेमीफाइनल में पहला गेम जीतने के बाद दूसरे में बढ़त बना लेने के बाद हारते नहीं, बल्कि पदक के साथ लौटते. सही मायनों में भारतीय खिलाड़ियों में महत्वपूर्ण मौकों पर दबाव बनने पर उससे निपटने की क्षमता नजर नहीं आयी. हॉकी टीम में पैडी अपटन के रूप में कंडीशनिंग कोच रखा गया, जिसका परिणाम सामने है. भारत ने इस अंदाज में तैयारी की, तो अगले ओलिंपिक में हम पदकों की संख्या दहाई में पहुंचाकर टॉप 20 में जरूर रह सकेंगे.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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