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प्रकृति ही सबसे बड़ा धर्म

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अपने देश में भी हिंदुओं पर हनुमान जी की कृपा नहीं बनी और इसी तरहइस्लाम में भी अल्लाह के बंदे को इसकी नेमत हासिल नहीं हुई.

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डाॅ अनिल प्रकाश जोशी, पर्यावरणविद

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dranilpjoshi@gmail.com

कोरोना महामारी ने एक बात तो साफ कर दी है कि इसने किसी भी धर्म कोअनदेखा नहीं किया और सब पर बराबर की मार की है. चाहे वह कोई भी धर्म औरउससे जुड़े समाज रहा हो, धर्म के नाम पर अपने आप को कोरोना से सुरक्षितनहीं रख सका है. दुनिया के सबसे बड़े ईसाई धर्म में चाहे स्पेन हो, इटलीहो या फिर अमेरिका, ईश्वर इसकी मार से लोगों को नहीं बचा सका है. चीन मेंबौद्ध धर्म के अनुयायियों को ही सबसे पहले कोरोना का कहर झेलना पड़ा है.अपने देश में भी हिंदुओं पर हनुमान जी की कृपा नहीं बनी और इसी तरहइस्लाम में भी अल्लाह के बंदे को इसकी नेमत हासिल नहीं हुई. कितनी अजीबबात है कि आज कोरोना ने मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे व चर्चों में ताले जड़दिये, मतलब अब प्रभु को प्रार्थना भी स्वीकार नहीं. जब से पृथ्वी बनी औरजीवन व मनुष्य को पनपाया, तब से हम खेमों में नहीं बंटे थे.

प्रकृति नेहमें बेहतर जीवन जीने के गुण दिये. हमने अपने तरीकों से जीने के रास्तेधर्मों में बांटकर तय कर दिये. इन सभी धर्मों में एक बात तो सामान्यअवश्य है कि हम सब मनुष्य हैं, सबका जन्म इस पृथ्वी पर ही हुआ है और हरजन्म के पीछे प्रकृति के ही वरदान हैं. पृथ्वी व प्रकृति के अनुसार हमसमान रूप से पैदा होने के बाद अलग-अलग कैसे हो सकते हैं? कोरोना केप्रकोप से दुनिया में कोई भी धर्म अपने बंदों को नहीं बचा सका, तो बातसाफ सी है कि जिन मान्यताओं के पीछे हम दौड़ते-भागते रहे हैं, उससे ऊपरभी एक अलौकिकता हैं, जो हमें पानी देती है, प्राण वायु देती है, पेट केलिए भोजन देती है, और वह है प्रकृति, जिसका हमने हमेशा निरादर भी कियाहै.हर मनुष्य में संरचनाओं का आधार ही प्रकृति है. यह एक ऐसा शास्त्रपूर्णतर्क है, जो न मानते हुए भी सर्वमान्य है.

अब यह तो तय है कि जब आपकोमंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारे व चर्च नहीं बचा सके, तो स्वीकार करें किप्रकृति ईश्वरवाद से ऊपर है. इसके साथ सीमा से अधिक छेड़छाड़ किसी भी रूपमें या कभी भी हम पर एक बड़ी मार दे सकती है. पिछले पांच दशकों को ही देखलें, दुनियाभर में बिगड़ते पर्यावरण पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो-हल्लामचा, पर वायु प्रदूषण हो, मरती नदियां हों या मिट्टी की बिगड़ती गुणवत्ताहो और प्राकृतिक वनों के मुद्दे हों, इन पर हमने ठीक से तवज्जो नहींदिया. वैसे अंतरराष्ट्रीय शोर-गुल के बीच समाधान निकालने की कोशिशें भीहुईं, पर वे आधी-अधूरी रहीं. जितनी भी पर्यावरण बैठकें 1990 के दशक सेलेकर आज तक दुनियाभर में हुईं, उन सबसे कुछ भी पल्ले नहीं पड़ा. येबैठकें कोरोना की आगे आज ढेर हो गयीं. हमें नहीं भूलना चाहिए कि जिसप्रकृति ने हमें पैदा किया, कोरोना भी उसी से पैदा हुआ है. यह विडंबना हैकि न दिखनेवाले वायरस ने सारी दुनिया को घर पर बैठने के लिए हताश व मजबूरकर दिया.

कोरोना प्रकृति का दंड है.कोरोना को प्रकृति के कालदूत के रूप मे देखने की कोशिश कुछ सिखायेगी भी.शास्त्रों की आपसी विभिन्नता हो सकती है, लेकिन प्रकृति में नहीं. उसनेएक ही चोट से यह बताने की कोशिश की है कि प्रकृति को अवहेलना अब बर्दाश्तनहीं. आज कोरोना है, कल कुछ और होगा. इस महामारी से हमें यह भी समझ लेनाचाहिए कि दुनिया में जाति, वर्ग या किसी दर्शन से ऊपर उठकर पृथ्वी मेंजीवन पनपा, तो वह प्रकृति की ही कृपा थी. इसलिए समय आ गया है कि अब हमशांत चित्त से प्रकृति के विज्ञान व व्यवहार को नये सिरे से समझें. वैसेभी सभी धार्मिक मान्यताओं के मूल सिद्धांतों में प्रकृति की वंदना काउल्लेख रहा है, लेकिन उसको व्यवहार में लाने में और उसके महत्व को समझनेमें हम गच्चा खा गये.

असल में हमारी संकीर्ण धार्मिक प्रकृति ने अन्यपहलुओं को फैलने-फैलाने में ज्यादा जोर लगाया, बजाय उन बिंदुओं के, जोसमाज के बेहतर सृजन जीवन प्रक्रियाओं पर काम करते हैं. यही समय है कि हमसभी गफलत भरी मान्यताओं को दरकिनार करते हुए प्रकृति के सिद्धांतों औरनियमों को समझकर अपना आनेवाला समय तय करें. अपनी सीमाओं को जान लें औरउल्लंघनों के दंडों को समझ लें. शायद तब ही हम बच पायें. कोरोना भीप्रकृति का ही उत्पाद है और इसने इशारा कर दिया है कि अब ज्यादा उद्दंडतास्वीकार नहीं है. हमारा पहला दायित्व इनके संरक्षण की चिंता से जुड़ाहोना चाहिए. विकास की अंधी दौड़ में विनाश ने आंखें खोल दी, पर अभी हमलड़खड़ायें ही हैं, पूरी तरह गिरे नहीं. आज प्रकृति के बचने-बचाने कीचिंता पर ज्यादा बात होनी चाहिए.

आज जैसी महामारी दुनिया में सभी धर्मोंको झेलनी पड़ रही है, उसका संकेत स्पष्ट है कि प्रकृति ही सब कुछ है औरबेहतर जीवन इसी से संभव है. अच्छा होगा, हम इसको जितनी जल्दी समझें औरअपनी जीवनशैली सुधारें, हम अपना आनेवाला समय श्रेष्ठ कर सकेंगे. अगर समझमें आ जाये कि प्रकृति ही हमें बचा सकती है, तो हम मिलकर इसका नमन करेंऔर माफी मांगते हुए उसकी अलौकिक क्षमताओं पर कार्य करें. प्रार्थना करेंकि अब कोरोना न रहे, बल्कि करो ना पर उतर आयें. प्रकृति मंत्र से ही जीवनतंत्र जुड़ा है और तब ही इस मृत्युलोक से अच्छी तरह तर पायेंगे.

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