27.1 C
Ranchi
Tuesday, February 11, 2025 | 01:19 pm
27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

HomeOpinionकुदरत से जीवन और जीविका

कुदरत से जीवन और जीविका

पद्मश्री अशोक भगत

सचिव, विकास भारती झारखंड

कोरोना जीवन के साथ ही जीविका को भी ग्रस रहा है. देश के नीति-निर्माताओं के सामने कोरोना को जिंदगी लीलने से रोकने के साथ ही निवाला छीनने से रोकने की चुनौती भी है. दूसरी वाली चुनौती शायद ज्यादा बड़ी हो गयी है. देश के बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों को भी इसका समाधान खोजने में सांप सूंघ रहा है.

दशकों से ढर्रे पर चलती अर्थव्यवस्था और ट्रायल एंड एरर की प्रक्रिया से निकले निदान के सारे उपाय भी अब चूकने लगे हैं. श्रम, उत्पादन और बाजार के आधार नगरों को महामार्गों से जोड़ती अर्थव्यवस्था की कड़ियां अब टूट रही हैं. इसलिए अब इनसे नीचे उतरकर उपयोगिता आधारित अर्थव्यवस्था के विकास से रोजगार, विकास और समृद्धि के नये सपनों को पूरा करने की जरूरत है. झारखंड के जंगलों की पगडंडियां विकास के इस नये मॉडल के साथ इंतजार कर रही हैं.

विकास भारती की स्थापना के साथ ही धरती रक्षा वाहिनी के प्रयोगों के माध्यम से मैंने महसूस किया कि झारखंड का हर गांव अर्थव्यवस्था की वैकल्पिक धुरी बनने की क्षमता रखता है. इसके लिए न तो निवेश की जरूरत है और न ही बाजार खोजना है. जंगलों के फल, फूल, पंखुड़ियों, पत्तों, जड़ों और छालों के राज जानकर प्रकृति को बिना नुकसान पहुंचाये मांगने की जरूरत है.

यह भारी खर्च पर आनेवाले बाहरी उत्पादों की जरूरत कम कर बचत करने के साथ स्थानीय खपत का बाजार भी विकसित करेगा. यह कुदरती जीवन पद्धति की ओर अग्रसर हो रही दुनिया के लिए संसाधन का बड़ा स्रोत भी विकसित करेगा. औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती के जरिये उत्तम सौंदर्य प्रसाधन तैयार हो सकते हैं. नींबू घास, पामारोजाके पौधे, खस की जड़ एवं जड़ के तेल, सिट्रोनेला की पत्तियां, जापानी पुदीना (मेंथा) आदि से कई तरह के उपयोगी उत्पाद बनाये जा सकते हैं.

कोरोना संक्रमण के इस संकट काल में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की भी खूब चर्चा हो रही है. इसके लिए तो हमारे जंगलों और गांव से बड़ा संसाधन केंद्र अन्यत्र नहीं हो सकता है. आयुर्वेद के विकास के जरिये भी इस मौके को भुनाने की जरूरत है. इससे एक ओर जहां रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास कर स्वास्थ्य पर होने वाले भारी-भरकम खर्च को कम किया जा सकता है, वहीं गांवों में कमाई के अवसर भी बढ़ाये जा सकते हैं. गांवों और जंगलों में औषधि उत्पादन के बड़े केंद्र बनने की पूरी क्षमता है. काली तुलसी सर्दी, बुखार, चर्मरोग और मूत्ररोग में रामबाण की तरह काम करता है.

मौलसिरी के छाल, फल और बीज का उपयोग मसूड़े एवं दांतों के रोग, पेचिस, सिररोग आदि में खूब होता है. मधुर तुलसी यानी स्टीविया के पत्ते का उपयोग इन दिनों बड़े पैमाने पर चीनी के विकल्प के रूप में हो रहा है. इसके उपयोग से मधुमेह के रोगियों को बहुत लाभ पहुंचता है. ब्राह्मी से स्मरण शक्ति बढ़ाने तथा स्वप्नदोष एवं मानसिक बीमारी के निदान की औषधि तैयार की जाती है. इसी तरह ऐसे सैकड़ों पौधे हैं, जो गांवों को औषधि और स्वादिष्ट भोजन तैयार करने में मदद करते हैं.

इसके लिए जड़ी-बूटी वाले इलाकों में औषधि उत्पादन के क्लस्टर स्थापित करने की जरूरत है. इससे जनजातीय समुदाय और स्थानीय ग्रामीणों की आर्थिक हालत भी सुधारी जा सकती है. साथ ही, बंजर जमीन को भी उपजाऊ बनाकर लहलहाया जा सकता है. झारखंड लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने इसके सफल प्रयोग किये हैं. आयुष विभाग को स्वास्थ्य विभाग से अलग कर वन विभाग के समन्वय से ऐसे अभियान को और फलदायी बनाया जा सकता है.

प्राकृतिक संपदा के धनी हमारे गांवों को औषधि और सौंदर्य प्रसाधन के उत्पादन केंद्र बनने से कौन रोक सकता है! विकेंद्रित अर्थव्यवस्था की राह यहीं से तैयार होगी. जो फिर कोरोना वायरस जैसी किसी आपदा के आने से माइग्रेशन और रिवर्स माइग्रेशन जैसा संकट पैदा नहीं करेगा. दुनियाभर में भोजन, वस्त्र और औषधि के लिए जैविक उत्पादों की बढ़ रही मांगों को पूरा करने में भी हमारे गांव सक्षम हैं.

यहां तक कि देश की निर्यात क्षमता बढ़ाने में भी ये मील के पत्थर की भूमिका निभा सकते हैं. जरूरत इस बात कि है कि जंगल और गांव की ताकत को सरकार पहचान कर इसके मुताबिक आर्थिक ढांचा तैयार करने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाये. सबसे बड़ी बात यह है कि ये तमाम उपक्रम जंगलों के साये में हो सकते हैं. इनसे वनों को कोई नुकसान भी नहीं है क्योंकि इनमें से बहुत सारे पौधे ऐसे हैं, जिनका उत्पादन बड़े वृक्षों के छाया तले होता है.

हमारी आनेवाली पीढ़ी इनके जरिये सेहत और संपदा दोनों प्राप्त कर सकती है. कम लागत में तैयार होनेवाले उत्पाद हमारे बाजार को भी मजबूती देंगे. अर्थव्यवस्था के पिरामिड के आधार में स्थित लोगों के पास पैसा इस प्रकार पहुंचने से बाजार में डिमांड भी बनी रहेगी. आत्मनिर्भर भारत का रास्ता भी यहीं से गुजरता है. वक्त की नजाकत है कि हम गांवों तक अर्थव्यवस्था की कथित मुख्य धारावाली परिधि का विस्तार कर लें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल को वोकल करने के नारे की यही सार्थकता है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

Also Read:

You May Like

Prabhat Khabar App :

देश, दुनिया, बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस अपडेट, टेक & ऑटो, क्रिकेट राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां.

अन्य खबरें

ऐप पर पढें