27.1 C
Ranchi
Friday, February 7, 2025 | 02:13 pm
27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

केजरीवाल की जमानत और चुनाव

Advertisement

केजरीवाल का प्रभाव दिल्ली और पंजाब में है. उन्हें अंतरिम जमानत ऐसे समय में मिली है, जब दोनों राज्यों में चुनाव प्रचार चरम पर है. केजरीवाल के बाहर आने के बाद इस प्रचार में और गरमी आयेगी.

Audio Book

ऑडियो सुनें

कानून और राजनीतिक विज्ञान में पढ़ाया जाता है कि कानून और संविधान के उपबंधों आदि की व्याख्या का अधिकार सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय को है. यह भी स्थापित अवधारणा है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले कानून के समान ही प्रभावी होते हैं. शराब नीति मामले में एक अप्रैल से जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उक्त न्यायालय से जमानत मिलने के दूरगामी असर होंगे. यह आने वाले दिनों में ऐसे मामलों में एक कारक बनेगा. दूसरा असर राजनीतिक होगा. 
अब केजरीवाल और उनकी पार्टी आक्रामक हो रहे हैं. वे यह नैरेटिव स्थापित करने की कोशिश करेंगे कि भाजपा और मोदी सरकार चूंकि राजनीतिक रूप से कमजोर पड़ रही है, इसलिए वह अपने विरोधियों को जेल में डाल रही है. केजरीवाल की जमानत का कानूनी प्रभाव दो तरह की वैचारिकी को स्थापित करेगा. कानून और संवैधानिक व्यवस्था यह जताने का कोई मौका नहीं छोड़ती कि कानून के सामने सभी बराबर हैं, पर महज चुनाव प्रचार के लिए जमानत का आधार मोटे तौर पर यही स्थापित करता है कि कानून के सामने बराबरी का दावा कमजोर है. अगर सामान्य आरोपी या व्यक्ति महज चुनाव प्रचार के लिए जमानत पा सकेगा, तो बराबरी की अवधारणा सही साबित होगी.

आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग राजनीतिक हैसियत हासिल कर अपने ऊपर लगी कालिख को मिटाने की कोशिश करते रहे हैं. हर चुनाव में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग अपनी सियासी किस्मत आजमाते रहते हैं. आने वाले दिनों में ऐसे अपराधी भी केजरीवाल को मिली अंतरिम जमानत के आधार पर जमानत मांगेंगे. सवाल यह है कि क्या अदालतें उनके साथ भी केजरीवाल जैसा ही व्यवहार करेंगी या उनकी मांग को खारिज करेंगी.

- Advertisement -

अगर उन्हें जमानत मिलेगी, तो वे निश्चित तौर पर चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करेंगे और नहीं मिली, तो इस नैरेटिव को बल मिलेगा कि कानून के सामने विशिष्ट और सामान्य के बराबर होने का दावा खोखला है. केजरीवाल की जमानत वाली सुनवाई के दौरान अलगाववादी अमृतपाल सिंह का मामला भी उठा. अमृतपाल पंजाब में बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी में है. अगर वह चुनाव लड़ता है, तो वह भी इस आधार पर जमानत मांग सकेगा कि चुनाव पांच साल में होते हैं. तब देखना होगा कि अदालतों का क्या रूख रहता है.

बहरहाल, इतना तय है कि ऐसे मामले से निपटना अदालतों के लिए आसान नहीं रहेगा. वैसे प्रवर्तन निदेशालय ने केजरीवाल की जमानत का विरोध करते हुए अमृतपाल का भी मामला उठाया. यह बात और है कि सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की. वैसे शराब नीति मामले में केजरीवाल के सबसे निकट सहयोगी मनीष सिसोदिया जेल में हैं. हो सकता है कि आम आदमी पार्टी मनीष के लिए भी चुनाव प्रचार के लिए जमानत की मांग करे. चूंकि मनीष भी केजरीवाल जैसे ही आम आदमी पार्टी के महत्वपूर्ण नेता हैं, इसलिए वे भी जमानत की मांग कर सकते हैं. सवाल यह हो सकता है कि जब पांच साल में एक बार आने वाले चुनाव के प्रचार के लिए केजरीवाल को जमानत मिल सकती है, तो मनीष को क्यों नहीं.
इस आधार पर झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन के लिए भी जमानत की मांग की जा सकती है. वैसे केजरीवाल भले ही ज्यादा चर्चित हों, लेकिन वे एक केंद्र शासित प्रदेश के मुखिया हैं, जबकि हेमंत सोरेन आम आदमी पार्टी से कहीं ज्यादा पुरानी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता हैं और झारखंड जैसे पूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं. इस लिहाज से वे भी चुनाव प्रचार को आधार बनाकर जमानत मांग सकते हैं. अगर ऐसा होता है, तो अदालत का रुख क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी. ध्यान देने की एक बात यह है कि चारा घोटाले में सजा काट रहे राजद के नेता लालू प्रसाद यादव को सुप्रीम कोर्ट पहले से ही जमानत दे चुका है.

उनकी जमानत का आधार चुनाव प्रचार की बजाय उनका स्वास्थ्य रहा है. लालू चूंकि कानूनन ऐसे सजायाफ्ता हैं, जो चुनाव नहीं लड़ सकता, लेकिन उनके चुनाव प्रचार पर रोक नहीं है. लिहाजा वे सीमित तरीके से राजनीतिक हस्तक्षेप कर ही रहे हैं. अपने बयानों के जरिये कम से कम बिहार की राजनीति के लिए लालू केंद्र बिंदु बने ही हुए हैं. लेकिन केजरीवाल का मामला अलग है. चूंकि उन्हें जमानत चुनाव प्रचार के ही आधार पर मिली है, तो यह तय है कि वे न सिर्फ चुनाव प्रचार करेंगे, बल्कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले एनडीए पर राजनीतिक सवालों की बौछार भी करेंगे. केजरीवाल का प्रभाव दिल्ली और पंजाब में है. उन्हें अंतरिम जमानत ऐसे समय में मिली है, जब दोनों राज्यों में चुनाव प्रचार चरम पर है. केजरीवाल के बाहर आने के बाद इस प्रचार में और गर्मी आयेगी.

केजरीवाल यह भी जताने की कोशिश करेंगे कि भाजपा और मोदी सरकार ने खुद को चुनावी हार से बचाने के लिए उन्हें जेल भेजा था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें बाहर कर दिया है. केजरीवाल का जैसा राजनीतिक चरित्र रहा है, उससे साफ है कि भाजपा के खिलाफ उनका रवैया आक्रामक होगा, लेकिन वे खुद के लिए हमदर्दी भी हासिल करने की कोशिश करेंगे. उन्होंने ऐसा करना शुरू भी कर दिया है. वे एक तरफ भाजपा पर हमलावर हो रहे हैं, तो दूसरी तरफ वे जनता के बीच खुद को दयनीय और कमजोर घोषित करने की कोशिश कर रहे हैं.
केजरीवाल को बेशक अंतरिम जमानत ही मिली है, लेकिन यह तय है कि चुनाव मैदान में उनकी उपस्थिति न सिर्फ उनकी पार्टी, बल्कि इंडिया गठबंधन के लिए भी मददगार होगी. लिहाजा अब समूचे इंडिया गठबंधन के आक्रामक होने के आसार बढ़ गये हैं. भाजपा के वरिष्ठ नेता और गृह मंत्री अमित शाह आक्रामक प्रचार और रणनीति बनाने के उस्ताद माने जाते हैं. ऐसे में देखना यह होगा कि केजरीवाल के जेल से बाहर आने के बाद बदले राजनीतिक अंदाज और समीकरण की चुनौती से किस तरह जूझते हैं.

यह भी देखना होगा कि मोदी और शाह की जोड़ी किस रणनीतिक अंदाज में नयी राजनीति का मुकाबला करती है. माना तो यह जा रहा है कि केजरीवाल की रिहाई के बाद भाजपा का रूख रक्षात्मक हो सकता है, हालांकि अमित शाह का अंदाज आक्रामक ही रहता है. ऐसे में चुनावी मैदान के नये दांव-पेच और उस पर जनता के रूख को देखना दिलचस्प होगा. अरविंद केजरीवाल की जमानत के बाद के हालात में दिल्ली और पंजाब में चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा, इसके लिए तो चार जून यानी चुनाव नतीजों के दिन तक इंतजार करना होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें