25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

देशज भाव के आंदोलनकारी पत्रकार

Advertisement

अंग्रेजी के वर्चस्व के खिलाफ भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा स्थापन की बात हो या फिर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को गति देने का अवसर, वेद प्रताप वैदिक ने न सिर्फ कलम को हथियार बनाया बल्कि मंचों पर चढ़ अपनी वाणी से भी अपनी सक्रियता का परिचय दिया

Audio Book

ऑडियो सुनें

आज कोई यह पूछे कि एक्टिविस्ट पत्रकारिता का बेहतर नमूना क्या हो सकता है, तो स्वर्गीय वेद प्रताप वैदिक की पत्रकारिता इसका बेहतर उदाहरण हो सकती है. अंग्रेजी के वर्चस्व के खिलाफ भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा स्थापन की बात हो या फिर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को गति देने का अवसर, वेद प्रताप वैदिक ने ना सिर्फ कलम को हथियार बनाया, बल्कि मंचों पर चढ़ अपनी वाणी से भी अपनी सक्रियता का परिचय दिया.

- Advertisement -

हमारे समाज की स्मृति बहुत छोटी है. पहले जरूरी स्मृतियों को जगाने और बचाने की भूमिका पत्रकारिता करती थी, लेकिन अब परिदृश्य बदल चुका है. पिछले दशक के आखिरी दिनों और मौजूदा दशक के शुरूआती दिनों में भारत में बदलाव की जो बयार बहनी शुरू हुई, उसकी जो पूर्व पीठिका रची गयी, उसके एक महत्वपूर्ण पात्र वेद प्रताप वैदिक भी रहे.

याद कीजिए, फरवरी 2010 में रामलीला मैदान में हुआ भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन. उस मंच पर संघ प्रमुख मोहन भागवत, विचारक गोविंदाचार्य, बाबा रामदेव और अजीत डोभाल के साथ वेद प्रताप वैदिक भी थे. उसी सम्मेलन में पहली बार अन्ना हजारे भी शामिल हुए थे. इसके बाद ही भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन देशव्यापी बना. कह सकते हैं कि बदलाव की उस नींव में धोतीधारी वेद प्रताप वैदिक का भी योगदान रहा.

हिंदी को चेरी से रानी बनाने के आंदोलन में वैदिक जी की भूमिका को लेकर मौजूदा पीढ़ी कम ही जानती होगी. उन्होंने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में अपनी थिसिस हिंदी में लिखी, तो उन्हें दंडित किया गया. उनकी छात्रवृत्ति रोक दी गयी. इसे लेकर संसद में जबरदस्त हंगामा हुआ था. इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन को झुकना पड़ा और उनका शोध प्रबंध हिंदी में ही स्वीकार करना पड़ा. महज तेरह साल की आयु में ही उन्होंने हिंदी सत्याग्रह में हिस्सा लिया था और जेल गये थे.

हिंदी विरोधियों का तर्क रहा है कि अंग्रेजी पूरी दुनिया में स्वीकार्य और पढ़ाई का माध्यम है. इस धारणा को वैदिक जी ने अपनी पुस्तक ‘हिंदी पत्रकारिता : विविध आयाम’ में तोड़ा है. हिंदी के प्रति अपने प्रेम का एक किस्सा वे सुनाते थे. हिंदी विरोधी आंदोलन के दौरान बनारस में महारानी विक्टोरिया की मूर्ति तोड़ने का निश्चय हुआ. उस आंदोलन में नेताजी के नाम से मशहूर समाजवादी नेता राजनारायण भी थे. प्रतिमा तक पहुंचने के लिए आंदोलनकारियों को एक दीवार फांदनी थी. तब वैदिक जी ही घुटनों के बल झुक घोड़ा बन गये और नेताजी उनकी पीठ पर चढ़ कर दीवार फांद गये. इसके बाद मूर्ति तोड़ दी गयी थी.

चिर विद्रोही राममनोहर लोहिया और मुलायम सिंह यादव से उनका गहरा रिश्ता रहा. शायद यही वजह है कि उनकी एक्टिविस्ट पत्रकारिता पर समाजवादी वैचारिकी का असर कहीं ज्यादा गहरा रहा है. पहले नवभारत टाइम्स और बाद में प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की हिंदी सर्विस भाषा के संस्थापक संपादक रहे वेद प्रताप वैदिक लिख कर और बोल कर अपने आखिरी वक्त तक खुद को अभिव्यक्त करते रहे. भारतीय कूटनीति पर पत्रकारिता के असर का जब भी सवाल उठेगा, हिंदुस्तान समाचार के संस्थापक बालेश्वर अग्रवाल और वेद प्रताप वैदिक का ही नाम प्रमुखता से सामने आयेगा.

अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई समेत कई नेताओं ने वैदिक जी का अपनापा रहा. तुर्की, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मॉरीशस आदि देशों के राजनय से भी उनका रिश्ता था. वैदिक जी अब हमारे बीच नहीं हैं. सवाल यह है कि उन्हें किस रूप में याद किया जाए, एक्टिविस्ट पत्रकार के रूप में या फिर राजनय के जानकार के रूप में, भाषा आंदोलनकारी के रूप में या ऐसे समाजवादी के रूप में, जिसे वक्त जरूरत पर किसी भी धारा के व्यक्तित्व से संवाद और सहयोग से कभी हिचक नहीं रही.

वे आतंकी हाफिज सईद से भी मिल सकते थे और इसके लिए सोशल मीडिया के मौजूदा दौर में आलोचनाओं का सामना भी कर सकते थे, मौजूदा प्रधानमंत्री की आलोचना के चलते भी पिछले कुछ साल से एक वर्ग के निशाने पर रहे. राजनीति से वे मुद्दा आधारित विरोध और समर्थन कर सकते थे, लेकिन एक विषय ऐसा है, जिसे लेकर उस राजनीति पर भी सवाल उठाने से नहीं हिचकते थे, जिससे उनकी नजदीकी हो.

हाल में उन्होंने राहुल गांधी पर उनके अंग्रेजी प्रेम को लेकर तल्ख टिप्पणियां तक की थीं. वेद प्रताप वैदिक भारतीय पत्रकारिता की उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते रहे, जो धोती पहन कर भी आधुनिक और समकालीन सवालों से मुठभेड़ ही नहीं करती, बल्कि जरूरत पड़ने पर उसका समर्थन भी करती है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें