15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

भारत-चीन संबंधों में सुधार की कोशिश

India-China Relations : भारत और चीन के बीच रिश्तों में जो खटास है, उसे देखते हुए पूर्वी लद्दाख का घटनाक्रम एक छोटा-सा कदम है. इस कदम के आधार पर दोनों देशों के संबंधों के बारे में कोई राय नहीं बनायी जा सकती, न ही इससे कोई ठोस निष्कर्ष निकाला जा सकता है. हां, यह जरूर है कि पूर्वी लद्दाख में कुछ कदम उठाकर दोतरफा संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश हो रही है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

India-China Relations : विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के साथ संबंधों के बारे में संसद में जो कुछ कहा है, उसके हर शब्द को तौलकर पढ़ा जाना चाहिए. उन्होंने यह नहीं कहा है कि चीन के साथ हमारे रिश्ते सुधर रहे हैं. उन्होंने भारत-चीन रिश्तों के बारे में कोई उम्मीद भी नहीं जतायी है. उन्होंने सिर्फ यह कहा है कि कुछ पहलू ऐसे हैं, जहां आपसी संबंधों में कुछ सुधार दिखायी पड़ा है. उनका यह कहना था कि पूर्वी लद्दाख के देपसांग और डेमचोक से चीनी सैनिक पीछे हटे हैं और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अब शांति है. इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि विदेश मंत्री ने पूर्वी लद्दाख में सुधर रही स्थिति के बारे में बोलते हुए अतीत के अनुभवों के आधार पर चौकस रहने तथा सरहद पर दोनों देशों के सैनिकों से तीन शर्तों का पालन करने की आवश्यकता बतायी है.

पहली शर्त यह है कि दोनों पक्ष को वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करना पड़ेगा. दूसरी शर्त यह है कि दोनों में से कोई पक्ष एकतरफा ढंग से वास्तविक नियंत्रण रेखा में यथास्थिति को नहीं उलटेगा. और तीसरी शर्त यह है कि अतीत में जो भी द्विपक्षीय समझौते किये गये हैं, और जो आपसी सहमतियां बनी हैं, उनका पूरी तरह से पालन करना पड़ेगा. तभी आगे शांति की उम्मीद बनेगी.


अलबत्ता भारत और चीन के बीच रिश्तों में जो खटास है, उसे देखते हुए पूर्वी लद्दाख का घटनाक्रम एक छोटा-सा कदम है. इस कदम के आधार पर दोनों देशों के संबंधों के बारे में कोई राय नहीं बनायी जा सकती, न ही इससे कोई ठोस निष्कर्ष निकाला जा सकता है. हां, यह जरूर है कि पूर्वी लद्दाख में कुछ कदम उठाकर दोतरफा संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश हो रही है.


दोतरफा संबंधों को सुधारने के मामले में दोनों देशों के रवैये को भी समझने की आवश्यकता है. सच्चाई यह है कि भारत अब चीन की तरफ से रिश्तों के बेहतर होने के दावे पर भरोसा नहीं करता, बल्कि वह इस संबंध में ठोस प्रमाण चाहता है. चीन से संबंधों के मामले में हमारी दिक्कत यह रही है कि हम आसानी से उसके दावों पर भरोसा करते रहे हैं. इसका अतीत में हमें खामियाजा भुगतना पड़ा है. लेकिन अब वह पहले वाली स्थिति नहीं है. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ही देखें, तो चीन द्वारा सैनिकों की तैनाती के जवाब में हमारी ओर से भी सैन्य तैनाती की गयी थी. यानी चीन को मालूम है कि धौंस देकर अब भारत को डराया या डिगाया नहीं जा सकता. इसलिए हाल के दौर में चीन की तरफ से रिश्तों को बेहतर करने की कई कोशिशें हुईं.


हालांकि मानना चाहिए कि भारत-चीन रिश्तों के बीच कई जटिलतायें हैं. एक बड़ी जटिलता तो आर्थिक मोर्चे पर ही है. एक वास्तविकता यह है कि भारत और चीन के व्यापार में संतुलन हमेशा चीन की ओर झुका रहता है, क्योंकि निर्यात को लगातार मजबूत करके ही उसने खुद को वैश्विक आर्थिक शक्ति बनाया है. दूसरी बात यह कि कच्चे माल और औद्यगिक वस्तुओं के मामले में हम चीन पर निर्भर हैं. आर्थिक मोर्चे पर चीन पर निर्भरता बनाये रहकर हम उससे किस सीमा तक दुश्मनी मोल ले सकते हैं, हमेशा यह सवाल हमारे सामने बना रहता है. हमारी अपनी स्थिति अभी ऐसी नहीं कि आर्थिक मोर्चे पर हम चीन पर अपनी निर्भरता खत्म कर सकें.

दरअसल चीन के मामले में भारत के सामने दोतरफा चुनौती हमेशा बनी रही है. एक चुनौती सीमा पर चीन की आक्रामकता को उसकी भाषा में जवाब देने की है. दूसरी चुनौती चीन के साथ संबंधों को सामान्य रखने की दिशा में कोशिश चलाये जाने की है. कहना चाहिए कि दोनों मोर्चे पर हम अभी तक कमोबेश सफल रहे हैं. वर्ष 2020 में चीन के साथ संबंध खराब होने के बाद से सैन्य मोर्चे पर कई चरणों की बात हुई. यहां तक कि वार्ता के शुरुआती चरणों में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद भी यह बातचीत जारी रही.


सैन्य वार्ता से इतर कूटनीतिक मोर्चे पर भी संबंध सामान्य बनाये रखने की कोशिश की गयी. लेकिन इस ओर भी ध्यान देना चाहिए कि इधर चीन की तरफ से रिश्ते सामान्य करने की कोशिशों के बाद भारत ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है, लेकिन यह भी पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि भारत रिश्तों की बेहतरी के मामले में प्रमाणों पर भरोसा करता है, दावों पर नहीं. भारत से संबंध सामान्य बनाने की कोशिश चीन की तरफ से क्यों है? ऐसा इसलिए है कि अमेरिका से चीन के संबंध अच्छे नहीं हैं. ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अमेरिका-चीन संबंध और खराब होने के ही आसार हैं. दूसरी तरफ चीन को मालूम है कि भारत के अमेरिका से बहुत अच्छे संबंध हैं.

अमेरिका और पश्चिमी देश आर्थिक मोर्चे पर चीन से दूरी बनाने की कोशिशों में लगे हैं. अब अगर भारत से भी चीन के रिश्ते पूरी तरह खराब हो गये, तो भारत जैसा बड़ा बाजार भी उसके हाथ से निकल जायेगा, जो चीन नहीं चाहता. वह बस इतनी गारंटी चाहता है कि अमेरिका से गर्मजोशी भरे रिश्ते के बावजूद भारत चीन को नुकसान न पहुंचाये. इसी के तहत उसने भारत से रिश्ते सामान्य करने की दिशा में कदम उठाये हैं. और यह भी समझना चाहिए कि चीन की तरफ से रिश्ते सामान्य बनाने की संजीदगी को देखते हुए ही भारत ने अपनी ओर से भी पहल की. पिछले महीने रूस के कजान में हुए ब्रिक्स के सम्मेलन में जिनपिंग के साथ नरेंद्र मोदी की मुलाकात और हमारे रक्षा मंत्री की चीन के रक्षा मंक्षी के साथ हुई वार्ता को इसी संदर्भ में देखना चाहिए.


सैनिकों के पीछे हटने की बातें कही तो जा रही हैं, लेकिन लगता नहीं है कि फौज पीछे हटेगी. इस मामले में भारत की तुलना में चीन बेहतर स्थिति में है. उसकी तरफ भौगोलिक स्थिति समतल है, इसके अलावा उसने सरहद पर सड़कों के अलावा दूसरे ढांचागत निर्माण इस तरह कर लिया है कि वह कम समय में अपनी फौज को सीमा पर तैनात कर सकता है. हमारी स्थिति ऐसी नहीं है. एक तो सरहद के पास तक पहुंचने के लिए हमारे सैनिकों को दुर्गम पहाड़ी रास्तों से गुजरना पड़ता है. इसके अलावा हमने वहां बुनियादी ढांचे को विकसित नहीं किया है कि कम समय में फौज की तैनाती कर सकें. यहीं पर अपनी सरकार से मेरा यह सवाल है कि इस समय अगर सेना को पूरी तरह पीछे ले जायें, तो फिर अचानक जरूरत पड़ने पर सैन्य साज-ओ-सामान को तेजी से सरहद पर कैसे ले जायेंगे. दोबारा सैन्य साज-ओ-सामान को सरहद पर ले जाना बहुत कठिन और खर्चीला काम है. मेरा यह मानना है कि भारत और चीन के बीच के रिश्ते धीरे-धीरे ही सुधरेंगे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें