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रैगिंग रोकने के लिए शिक्षण संस्थान आगे आएं

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कुछ वर्ष पूर्व हिमाचल प्रदेश के एक मेडिकल कॉलेज में रैगिंग के दौरान उन्नीस वर्षीय छात्र अमन काचरू की मौत हो गयी थी.

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रोहित कौशिक (टिप्पणीकार)

हाल में रैगिंग के एक मामले में मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एन वेंकटेश ने दोषी छात्रों को फटकार लगाते हुए कहा कि यदि आप रैगिंग जैसे घृणित कृत्य में लिप्त होंगे, तो आपके कॉलेज आने का क्या लाभ है. बेहतर होगा कि आप अनपढ़ और अशिक्षित ही बने रहें. यदि कोई व्यक्ति किसी को पीड़ा पहुंचा कर आनंद पा रहा है, तो इसका अर्थ है कि वह मनोरोगी है. नवंबर 2023 में पीएसजी कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी, कोयंबटूर में हुई रैगिंग के मामले में गत 22 फरवरी को उच्च न्यायालय ने अनेक निर्देश दिये. कुछ समय पहले रैगिंग के एक मामले में भोपाल की जिला अदालत ने चार छात्राओं को पांच-पांच साल कैद की सजा सुनाई थी. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे ज्यादातर मामले अदालत तक जा नहीं पाते हैं. भोपाल की घटना में पीड़िता ने वरिष्ठ छात्राओं की प्रताड़ना से तंग आकर फांसी लगा ली थी. पीड़ित छात्रा की शिकायत को कॉलेज प्रबंधन ने अनसुना कर दिया था. उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की घटनाएं अक्सर प्रकाश में आती रहती हैं, परंतु यदि सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों के बावजूद ऐसी घटनाएं घट रही हैं, तो अभिभावकों, शिक्षकों और समाज को सोचने की आवश्यकता है. संस्थानों के प्रबंधन पर सवाल उठाने के साथ ही यह भी सोचना होगा कि क्या हम अपने बच्चों में अच्छे संस्कार डालने की ईमानदार कोशिश कर रहे हैं.


रैगिंग झेल रहे छात्र दोहरे- शारीरिक एवं मानसिक- शोषण के शिकार होते हैं. रैगिंग एक मनोवैज्ञानिक समस्या है. रैगिंग लेने वाले सीनियर छात्र अपने साथ हुआ बुरा व्यवहार जूनियर छात्रों पर दोहराना चाहते हैं. साथ ही, सीनियर छात्रों में अपने को बड़ा सिद्ध करने एवं रौब झाड़ने की प्रवृति काम करती है. रैगिंग के पीड़ित जूनियर छात्रों पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है और वे स्वयं को अपमानित महसूस करते हैं. ऐसे अनेक छात्र आत्महत्या भी कर लेते हैं. इस मनोवैज्ञानिक समस्या को मनोवैज्ञानिक रूप से हल करने की आवश्यकता है. इसका अर्थ यह नहीं है कि रैगिंग रोकने लिए नियम-कानूनों का पालन ही न किया जाए. दोषी छात्रों के साथ सख्ती से निपटना चाहिए. रैगिंग के खिलाफ कड़ी कार्रवाई से जहां सीनियर छात्रों को नया सबक मिलेगा, वहीं जूनियर छात्रों का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि ऐसे मामलों में बहुत कड़ी सजा नहीं देनी चाहिए. कड़ी सजा से आरोपी छात्रों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग सकता है. युवा होने के नाते उनकी आगे की जिंदगी को कठिनाई में डालना तर्कसंगत नहीं है. दूसरा पक्ष यह है कि रैगिंग के माध्यम से जूनियर छात्रों का शारीरिक और मानसिक शोषण कर उन्हें आत्महत्या के लिए प्रेरित किया जा रहा है. क्या यह एक गंभीर अपराध नहीं है?


गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को यह निर्देश है कि रैगिंग की घटना के लिए संस्थान को जिम्मेदार माना जायेगा. यूजीसी भी प्रति वर्ष विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को पत्र भेजकर रैगिंग रोकने के निर्देश देता रहता है. हर शिक्षण संस्थान दाखिला देने से पहले छात्रों से हलफनामा भी लेता है कि रैगिंग जैसी घटना में शामिल पाये जाने पर उसका दाखिला रद्द कर दिया जायेगा. रैगिंग रोकने हेतु विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में समितियां भी बनायी जाती हैं. ऐसी घटनाएं होने पर संस्थान की मान्यता रद्द करने का प्रावधान भी है. लेकिन इनके बावजूद रैगिंग की घटनाएं रुक नहीं रही हैं. अब तो यह प्रवृत्ति पब्लिक स्कूलों में भी बढ़ रही है. पिछले दिनों कुछ पब्लिक स्कूलों में भी ऐसी घटनाएं प्रकाश में आयी थीं. हालांकि उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग रोकने के प्रयास होते दिखाई देते हैं, लेकिन पब्लिक स्कूलों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है. कई बार संस्थान ऐसी घटनाओं को छिपाने का प्रयास भी करते हैं. रैगिंग की घटनाओं का छिपाने का प्रयास ठीक वैसा ही है, जैसे बीमार व्यक्ति द्वारा रोग को छिपाने की कोशिश करना. रोग को जितना छिपाया जायेगा, वह उतना ही अधिक बढ़ता जायेगा.


रैगिंग रूपी रोग को रोकने के लिए शिक्षण संस्थानों को अपने परिसर में बेहतर माहौल बनाना होगा. उन्हें छात्रों में व्यावहारिक रूप से नैतिक मूल्य विकसित करने की कोशिश करनी होगी. शिक्षण संस्थान भाषणों में तो नैतिक मूल्यों की बात बहुत करते हैं, लेकिन धरातल पर ऐसा कोई प्रयास होता नहीं दिखता. हमें समझना होगा कि रैगिंग की घटनाएं कानून के बल पर रुकने वाली नहीं हैं. इसके लिए सामूहिक रूप से प्रयास करना होगा. जो बच्चे रैगिंग की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं, उनके अभिभावकों को यह जानने की चेष्टा करनी होगी कि उनके बच्चों में श्रेष्ठता और रौब गालिब करने की भावना क्यों पनप रही है. यदि ऐसे मामलों में अभिभावक हाथ पर हाथ रखकर बैठ गये, तो समस्या और बढ़ेगी. कुछ वर्ष पूर्व हिमाचल प्रदेश के एक मेडिकल कॉलेज में रैगिंग के दौरान उन्नीस वर्षीय छात्र अमन काचरू की मौत हो गयी थी. तब अमन के पिता राजेंद्र काचरू ने रैगिंग रोकने और रैगिंग पर कानून बनाने के लिए एक अभियान चलाया था. रैगिंग रूपी सामाजिक अभिशाप को रोकने लिए एक बार फिर ऐेसे ही अभियान की जरूरत है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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