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अपराधों की बदलती प्रवृत्ति पर हो ठोस कार्रवाई

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हमें पुलिस व्यवस्था, न्यायिक व्यवस्था और मौजूदा कानूनों में बड़े बदलावों के लिए समन्वित प्रयास करने की जरूरत है. अपराध दर्ज होने के साथ जल्द न्याय मिलने का अधिकार देश में सभी को हासिल है, जिसे सुनिश्चित करने में केंद्र सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है.

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कुछ दिन पहले 2022 के अपराधों का अखिल भारतीय ब्योरा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने जारी किया. पिछले साल कुल 58.24 लाख मामले दर्ज हुए, जो 2021 की तुलना में 4.5 फीसदी कम थे. कई लोग इन आंकड़ों का आकलन राजनीतिक लिहाज से कर रहे हैं कि भाजपा या विपक्ष द्वारा शासित राज्यों में अपराधों की स्थिति क्या है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार जातियों का उल्लेख किया है- गरीब, महिला, युवा और किसान. इस वर्गीकरण के साथ दूसरे कई पैमानों पर भी अपराध के आंकड़ों के आकलन की आवश्यकता है. जब हम अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने की बात कर रहे हैं और हर राज्य विकास की दौड़ में होने का दावा कर रहा है, ऐसे में हमें देखना होगा कि किन कारणों से परंपरागत अपराधों में कमी आ रही है और दूसरे प्रकार के अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं? क्या आर्थिक विषमता बढ़ने से अन्य प्रकार के अपराधों में बढ़ोतरी हो रही है? परंपरागत अपराधों की संख्या 4.5 फीसदी कम हो गयी है, पर कई तरह के अन्य अपराध बढ़े हैं. परंपरागत अपराधों में प्रतिशोधात्मक हत्याओं के मामले ज्यादा हैं. इससे इंगित होता है कि हमारी पुलिस और न्याय व्यवस्था सही समय पर लोगों को न्याय देने में विफल रही है. आर्थिक अपराधों में 11.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. भ्रष्टाचार के मामलों में भी 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे अपराधों को परंपरागत अपराधों से अधिक जघन्य माना है, क्योंकि इससे समाज और अर्थव्यवस्था दोनों का बड़े पैमाने पर विनाश होता है. इन अपराधों के बारे में वर्तमान प्रक्रिया और दंड के प्रावधान का मूल्यांकन होना चाहिए.

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लगभग 11,290 किसानों और मजदूरों ने 2022 में आत्महत्या की थी यानी हर दिन औसतन 30 ऐसी मौतें. महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु जैसे राज्यों में ज्यादा संख्या है. इससे जाहिर होता है कि जिन दक्षिणी राज्यों को हम विकास के पैमाने पर आगे मान रहे हैं, उन राज्यों में हाशिये के लोगों की जिंदगी बदतर हुई है. युवाओं की आत्महत्या में 4.2 प्रतिशत की चिंताजनक वृद्धि हुई है. इसमें छात्रों का बड़ा हिस्सा है. इससे यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि क्या बेरोजगारी जैसी वजहों से युवाओं में हताशा बढ़ रही है. बुजुर्गों के खिलाफ अपराधों में 9.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. बच्चों की बात करें, तो उनके विरुद्ध हुए अपराधों में 39.7 फीसदी की बहुत बड़ी बढ़ोतरी हुई है. इनमें साइबर अपराधों की भी बड़ी संख्या है. साल 2022 में पॉक्सो कानून के दायरे में आने वाले अपराधों की संख्या 62,095 रही. इस कानून के तहत तुरंत सुनवाई का प्रावधान है, पर जिस तरह से इसमें आने वाले अपराध बढ़ते जा रहे हैं, उनके निपटारे में 20 साल का समय लग सकता है.

महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में चार फीसद की वृद्धि हुई है. ऐसे अपराध महानगरों में बढ़े हैं. इसे देखने के दो नजरिये हो सकते हैं. पहला यह कि महानगरों में अपराधों की सूचना देने के लिए एप और अन्य व्यवस्थाएं हैं. उसके बावजूद अपराधी दुस्साहस कर रहे हैं. दूसरा नजरिया यह हो सकता है कि जागरूक होते महानगरों में ऐसे अपराधों की रिपोर्टिंग अधिक हो रही है तथा दूर-दराज के इलाकों या ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा नहीं हो पा रहा है. दुष्कर्म के मामले सबसे अधिक राजस्थान में दर्ज हुए. क्या ऐसे अपराधों का शिक्षा और समानता से संबंध है तथा परंपरागत सामंती समाज की धारणाएं इनसे प्रतिध्वनित हो रही हैं? एससी-एसटी के विरुद्ध अपराधों में 14.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. मानवाधिकार के लिहाज से देखें, तो पुलिस हिरासत में सबसे अधिक मौतें गुजरात में हुई हैं. इस मसले का ठीक से आकलन करना जरूरी है. उल्लेखनीय है कि 2022 में जो पुलिसकर्मी मारे गये, उनमें अधिकतर हादसों का शिकार हुए. इसका मतलब यह है कि उनके पास दोषपूर्ण और कमतर साधन-संसाधन हैं.

देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास हो रहा है. केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर के अनुसार, 2014 में डिजिटल अर्थव्यवस्था का आकार 4.5 फीसदी था, जो बढ़ कर 11 फीसदी हो गया है और अगले दो साल में यह 20 फीसदी हो जायेगा. रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल 65,893 साइबर अपराध दर्ज हुए थे, जो 2021 की तुलना में 24.4 फीसदी अधिक थे, लेकिन हम साइबर अपराधों, जैसे फर्जीवाड़ा, वित्तीय अपराध, डीप फेक आदि को देखें, तो डिजिटल अर्थव्यवस्था के बरक्स जो साइबर अपराध बढ़ रहे हैं, उनकी सही तरह से रिपोर्टिंग नहीं हो रही है. इसका मतलब यह है कि या तो लोगों को पुलिस में भरोसा नहीं है या फिर राज्य और केंद्र सरकार ने साइबर अपराधों को रिपोर्ट करने और जांच करने के लिए पूरे देश में समुचित तंत्र नहीं बनाया है. अपराध के आंकड़ों के साथ करोड़ों की संख्या में लंबित अदालती मामलों की गंभीर समस्या का संज्ञान लिया जाना चाहिए. हमें पुलिस व्यवस्था, न्यायिक व्यवस्था और मौजूदा कानूनों में बड़े बदलावों के लिए समन्वित प्रयास करने की जरूरत है. अपराध दर्ज होने के साथ जल्द न्याय मिलने का अधिकार देश मे सभी को हासिल है, जिसे सुनिश्चित करने मे केंद्र सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है. पुलिस का विषय राज्यों के अधीन है, पर न्याय के मामले को पूरी तरह से राज्यों पर छोड़ने का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ सकता है. अपराध के आंकड़ों का राष्ट्रीय स्तर पर संकलन के साथ पूरे देश में समान और प्रभावी न्यायिक व्यवस्था सुलभ हो, यह हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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