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नेपाल को लेकर चीन की बौखलाहट

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अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी की हाल में हुई ताइवान यात्रा का चीन की आंतरिक शांति और उसकी वैश्विक छवि पर बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है.

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ऋषि गुप्ता

रिसर्च फेलो, एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टिट्यूट, नयी दिल्ली

Rgupta@asiasociety.org

अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी की हाल में हुई ताइवान यात्रा का चीन की आंतरिक शांति और उसकी वैश्विक छवि पर बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है. ताइवान के मुद्दे को लेकर चीन के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अमेरिकी विरोध और राष्ट्रवादी भावनाओं से भरे हुए हैं. इस स्थिति में चीन ने कई देशों से ‘एक चीन नीति’ (वन चाइना पॉलिसी) का समर्थन करने का आग्रह किया है. इस नीति के अंतर्गत चीन ताइवान का एक अभिन्न अंग माना जाता है.

चीन के विदेश मंत्रालय ने लगातार यह कहा है कि ताइवान जलडमरूमध्य चीन का क्षेत्र है और ताइवान की अखंडता का मुद्दा चीन की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. उल्लेखनीय है कि चीन अन्य देशों की तुलना में अपने निकटतम पड़ोसियों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है. इस बात का उदाहरण पड़ोसी देश नेपाल में चीनी राजदूत के बयान से दिखाई देता है. चूंकि तिब्बत चीन का हिस्सा है और नेपाल के साथ उसकी सीमा जुड़ी हुई है, तो स्वाभाविक रूप से चीन के लिए नेपाल सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है.

हाउस स्पीकर पेलोसी की ताइवान यात्रा के तुरंत बाद नेपाल में चीन की राजदूत हो यांकी ने एक वक्तव्य में कहा कि चीन नेपाल की ‘वन चाइना नीति’ के प्रति प्रतिबद्धता का आदर करता है और यह चीन-नेपाल संबंधों की नींव है. बात यहीं खत्म नहीं हुई. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने आनन-फानन में नेपाल के विदेश मंत्री नारायण प्रसाद खडका का एक ग्यारह सदस्यीय प्रतिनधि मंडल के साथ नौ अगस्त को उनकी तीन दिवसीय चीन यात्रा पर स्वागत किया. खडका ने चीन यात्रा के दौरान ‘वन चाइना नीति’ के प्रति नेपाल की प्रतिबद्धता को दोहराया.

इस दौरे में चीन ने नेपाल को 800 मिलियन युआन के अनुदान की घोषणा भी की. खडका की यात्रा चीन के लिए तिब्बत में शांति बनाये रखने हेतु महत्वपूर्ण है. उल्लेखनीय है कि नेपाल में लगभग 30 हजार तिब्बती शरणार्थी रहते हैं, जो कई अवसरों पर तिब्बत की आजादी को लेकर आंदोलन करते रहे हैं. वर्ष 2008 में बीजिंग में आयोजित ओलिंपिक खेलों के दौरान तिब्बत में हुए आंदोलन का प्रभाव नेपाल में भी देखा गया था. नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री पुष्प कमल प्रचंड ने चीन के दबाव में आंदोलनकारियों के खिलाफ कड़े कदम उठाये थे, जिसकी वजह से अमेरिका, यूरोपीय देश एवं विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं ने नेपाल की आलोचना की थी. इन संस्थाओं में एमनेस्टी इंटरनेशनल एवं ह्यूमन राइट्स वॉच भी शामिल थे.

नेपाल को लेकर चीन पहले से ही परेशान नजर आता रहा है. इसी वर्ष फरवरी में नेपाली संसद द्वारा मिलेनियम चैलेंज काॅरपोरेशन (एमसीसी) से संबंधित प्रस्ताव के पारित होने के बाद चीन सरकार की सक्रियता बढ़ गयी है. मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन अमेरिका की एक अनुदान शाखा है, जो जरूरतमंद देशों को विकास कार्यों के लिए बड़ी धनराशि मुहैया कराती है. वर्ष 2017 में अमेरिका ने एमसीसी के तहत नेपाल को पांच सौ मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की थी, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी ओली ने चीन से नजदीकियों के चलते अमेरिकी अनुदान में खास दिलचस्पी नहीं दिखायी थी.

चूंकि अमेरिकी अनुदान को चीन के बेल्ट-रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) के विरोध में देखा जा रहा था, सो नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार एमसीसी के मसले पर शांत रही. इतना ही नहीं, एमसीसी को अमेरिका की हिंद-प्रशांत नीति का भी हिस्सा बताया गया, जिसके कारण नेपाल में उग्र आंदोलन भी हुए. लेकिन जुलाई, 2021 में कम्युनिस्ट सरकार के गिरते ही नेपाली कांग्रेस सरकार ने एमसीसी के प्रस्ताव को संसद में पारित करा लिया. पिछले आठ महीनों में अमेरिका के कई उच्च अधिकारियों एवं प्रतिनिधि मंडलों ने नेपाल का दौरा किया है. इससे चीन की घबराहट स्पष्ट दिख रही है. नेपाल की ऐतिहासिकता 1959 में तिब्बत में हुए खाम्पा विद्रोह के संदर्भ में भी देखी जाती है, जिसमें अमेरिका ने नेपाल के रास्ते तिब्बती विद्रोहियों को मदद पहुंचाया था.

दूसरी ओर, भारत और नेपाल के संबंधों में बढ़ती प्रगाढ़ता भी चीन के लिए चुनौती का सबब बनी हुई है. भारत ने ‘नेबरहुड फर्स्ट’ (पड़ोसी पहले) नीति के तहत नेपाल के साथ संबंध सुधारने की दिशा में हरसंभव प्रयास किया है. इन प्रयासों का नेपाल में भी स्वागत हुआ है. पिछले सात दशकों में भारत ने साफ किया है कि भारत की नेपाल नीति आपसी सहयोग एवं परस्पर विकास की नीति पर आधारित है, जिसका एक बड़ा हिस्सा जनसंपर्क पर स्थिर है. लेकिन भारत-नेपाल संबंधों में आकस्मिक मन-मुटाव से उपजे खालीपन को चीन ने अपने फायदे हेतु उपयोग करना चाहा है.

इस परिप्रेक्ष्य में चीन के लिए नेपाल हमेशा से एक मुश्किल कड़ी रहा है. मौजूदा स्थिति में चीन यह जरूर चाहेगा कि नेपाल ‘वन चीन नीति’ की प्रतिबद्धता को मजबूत रखे. चीन यह भी जानता है कि व्यापार, निवेश एवं सुरक्षा के लिए नेपाल में एक मैत्रीपूर्ण कम्युनिस्ट सरकार की जरूरत है. ऐसे में चीन 20 नवंबर को नेपाल में होने वाले संसदीय चुनावों में कम्युनिस्ट पार्टियों के सहयोग या नेतृत्व वाली सरकार की उम्मीद कर रहा है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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