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वोट के बदले रिश्वत

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पार्टियों और उम्मीदवारों में रिश्वत देकर वोट लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है.

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लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव के दौरान पार्टियां और उम्मीदवार अपने दावों एवं वादों को मतदाताओं के समक्ष रखते हैं. उसके आधार पर मतदाता अपने विवेक से पसंदीदा उम्मीदवार को वोट देता है. लेकिन व्यावहारिक धरातल पर यह भी सच है कि उम्मीदवार और पार्टियां वोटरों को लालच देकर अपने पाले में लाने की कोशिश करती हैं. लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद के दो महीने के भीतर लगभग नौ हजार करोड़ रुपये के मूल्य की नगदी और अन्य चीजों को बरामद किया गया है, जिनमें शराब, नशीले पदार्थ, महंगे धातु आदि शामिल हैं.

यह बरामदगी 2019 के आम चुनाव की पूरी अवधि में पकड़ी गयी चीजों के मूल्य से ढाई गुने से भी अधिक है. सभी चरणों के मतदान के बाद इसमें और बढ़ोतरी की संभावना है. उल्लेखनीय है कि इस बार लोकसभा के चुनाव में पहला मतदान होने से एक सप्ताह पहले जो बरामदगी हुई थी, वह 2019 के पूरे चुनाव के दौरान पकड़ी गयी राशि और चीजों के दाम (3,475 करोड़ रुपये) से लगभग 34 प्रतिशत अधिक थी. बीते शनिवार को चुनाव आयोग ने जानकारी दी कि 8,889 करोड़ रुपये के मूल्य के बराबर की बरामदगी में 45 प्रतिशत नशीले पदार्थ, 23 प्रतिशत मुफ्त बांटने के सामान और 14 प्रतिशत महंगे धातु शामिल हैं. एजेंसियों ने 849 करोड़ रुपये नगदी तथा 815 करोड़ रुपये मूल्य की 5.4 करोड़ लीटर शराब भी पकड़ी है.

बड़ी मात्रा में अवैध नगदी और विभिन्न चीजों को पकड़ने का श्रेय चुनाव आयोग और प्रशासनिक अधिकारियों की सक्रियता को जाता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हमारा लोकतंत्र निरंतर मजबूत हुआ है तथा चुनावी प्रक्रिया भी बेहतर होती गयी है. तमाम सुधारों और नियमन के कारण धन-बल का हस्तक्षेप घटा है तथा मतदाताओं की भागीदारी बढ़ी है. यह उल्लेखनीय उपलब्धि है, लेकिन इतने भर से संतोष नहीं किया जा सकता है. बरामदगी के आंकड़े स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि पार्टियों और उम्मीदवारों में रिश्वत देकर वोट लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है.

यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि चुनाव आयोग भी मानता है और पर्यवेक्षक भी रेखांकित करते हैं कि चुनाव के दौरान जो बरामदगी होती है, वह बांटी गयी नगदी, शराब, नशीली चीजें, गहने, कपड़े आदि की वास्तविक मात्रा का बहुत छोटा हिस्सा होती है. यह भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि मतदाताओं में भी वोट के बदले घूस लेने की बीमारी तेजी से पैठ बना रही है. कानूनी रूप से रिश्वत देना और लेना दोनों अपराध हैं, पर वोटरों को रिझाने के लिए ऐसी हरकतें अनैतिक भी हैं. शराब और नशीले पदार्थों की बड़ी मात्रा में बरामदगी एक बड़े सामाजिक संकट की ओर भी संकेत करती हैं. यदि चुनावी रिश्वत को रोका नहीं गया, तो लोकतंत्र की साख पर बट्टा लग जायेगा.

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