22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

Birth Anniversary : चीन से शिकस्त ने नेहरू को तोड़ डाला था

Advertisement

Birth Anniversary : बीबीसी संवाददाता रेहान फजल ने दो साल पहले उनकी पुण्यतिथि पर प्रकाशित अपने एक लेख में लिखा था कि ‘1962 में चीन से हुई लड़ाई ने उनको तोड़कर रख दिया था और उसके सदमे से वे कभी उबर नहीं पाये.' परिणाम यह हुआ कि ‘उनकी पुरानी शारीरिक ताकत, बौद्धिक कौशल और नैतिक चमक बीते दिनों की बात हो गयी और वे निराश व थके हुए से दिखने लगे.

Audio Book

ऑडियो सुनें

Birth Anniversary : पं जवाहरलाल नेहरू के बारे में यह जरूर कहा जाता है कि स्वतंत्रता के बाद वे 16 साल प्रधानमंत्री रहे और ‘आधुनिक भारत के निर्माता’ कहलाये. लेकिन उनके सदमे से भरे अंतिम (खासकर 1962 के चीनी हमले में अपमानजनक पराजय के बाद के) दिन कैसे बीते और 27 मई, 1964 को अपने निधन से पहले उन्होंने कितनी तकलीफें झेलीं, इस बाबत कम ही बात होती है.

- Advertisement -

चीन से हुई लड़ाई ने पं नेहरू को तोड़ दिया

अलबत्ता, बीबीसी संवाददाता रेहान फजल ने दो साल पहले उनकी पुण्यतिथि पर प्रकाशित अपने एक लेख में लिखा था कि ‘1962 में चीन से हुई लड़ाई ने उनको तोड़कर रख दिया था और उसके सदमे से वे कभी उबर नहीं पाये.’ परिणाम यह हुआ कि ‘उनकी पुरानी शारीरिक ताकत, बौद्धिक कौशल और नैतिक चमक बीते दिनों की बात हो गयी और वे निराश व थके हुए से दिखने लगे. उनके कंधे झुक गये और उनकी आंखें भी सोयी-सोयी-सी दिखने लगीं. उनकी चाल में जो तेजी हुआ करती थी, वह भी लुप्त हो गयी.’


वर्ष 1964 आते-आते उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और गंभीर हो गयीं. इसके बावजूद वे भुवनेश्वर में हो रहे कांग्रेस के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने गये. कार्यक्रम में आठ जनवरी, 1964 को उन्हें बोलना था. लेकिन इसके लिए पुकारे जाने पर वे उठे, तो डगमगाकर सामने की तरफ इस तरह गिर पड़े कि उठ नहीं पाये. तब वहां उपस्थित उनकी पुत्री इंदिरा गांधी ने स्वयंसेवकों व नेताओं के सहयोग से उन्हें उठाया और संभाला. थोड़ी ही देर बाद डॉक्टरों ने जांच की, तो पाया कि उनके शरीर का बायां हिस्सा पक्षाघात का शिकार हो गया है.

रोजाना 17 घंटे काम करते थे पंडित नेहरू

फिर तो गहरी चिंता के बीच सम्यक चिकित्सा के लिए उन्हें भुवनेश्वर स्थित राजभवन ले जाया गया. लेकिन डॉक्टरों की भरसक कोशिशों के बावजूद उन्हें इतना स्वास्थ्य लाभ नहीं हो सका कि वे अपना स्थगित भाषण देने दोबारा सम्मेलन में जा सकें. बारह जनवरी को वे लस्त-पस्त से नयी दिल्ली लौट आये, तो डॉक्टरों ने उनसे कहा कि बेहतर होगा कि वे दोपहर में भी थोड़ी देर सोने की आदत डाल लें. आम तौर पर वे रोजाना 17 घंटे काम करते थे. दोपहर में सोने के लिए उन्हें इनमें पांच घंटों की कटौती करनी पड़ी. उन्हें उसका लाभ भी मिला. छब्बीस जनवरी तक उनका स्वास्थ्य इतना सुधर गया कि वे गणतंत्र दिवस समारोह में सुभीते से भाग ले पाये.

लेकिन जल्दी ही उनकी शक्ति फिर क्षीण होने लगी, जिसके चलते फरवरी में आयोजित संसद के उस साल के पहले सत्र में वे बैठे-बैठे ही भाषण देने को विवश हुए. फिर भी उन्होंने आत्मविश्वास नहीं खोया और गर्मियों तक इतनी शक्ति संचित कर ली कि किसी का सहारा लिए बिना सामान्य दिनचर्या निपटा सकें. यह उनका आत्मविश्वास ही था कि अपने निधन से महज पांच दिन पहले 22 मई को एक संवाददाता सम्मेलन में (जो उनके जीवन का अंतिम संवाददाता सम्मेलन सिद्ध हुआ) पत्रकारों के बार-बार ‘नेहरू के बाद कौन?’ पूछने पर उन्होंने उन्हें झिड़कते हुए से कह दिया कि ‘मैं इतनी जल्दी मरने वाला नहीं हूं.’ लेकिन दबे पांव आयी मौत ने उनके इस दावे को गलत सिद्ध कर दिया.

मौत से पहले फट गई थी बड़ी धमनी

उस संवाददाता सम्मेलन के अगले दिन वे बेटी इंदिरा के साथ छुट्टी मनाने देहरादून चले गये और 26 मई को लौटे, तो जरूरी कामकाज निपटाकर नींद की गोली खायी और सो गये. लेकिन सुबह आंखें खुलीं, तो पाया कि उनकी पीठ में बहुत दर्द है. डॉक्टर उनके पास पहुंचे, तो उनकी हालत गंभीर हो गयी थी. जब तक डॉक्टर कोई उपचार करते, वे बेहोश हो गये. बाद में पता चला कि उनकी बड़ी धमनी फट गयी है और प्राणरक्षा के लिए उन्हें फौरन खून चढ़ाना पड़ेगा. लेकिन जब तक खून चढ़ाया जाता, वे कोमा में चले गये. कुछ रिपोर्टों के अनुसार उसी बीच उन्हें एक और पक्षाघात हुआ, जिसके बाद हृदयाघात से भी गुजरना पड़ा.


कोमा में ही दोपहर पौने दो बजे उन्होंने अंतिम सांस ले ली. आकाशवाणी ने उनके निधन की खबर दी, तो पूरे देश में शोक की लहर छा गयी. चूंकि उस दिन गौतम बुद्ध की जयंती थी, इसलिए इसे इस रूप में भी देखा गया कि जिस दिन बुद्ध ने इस संसार में अपने आने के लिए चुना था, उसे ही नेहरू ने अपने महाप्रयाण के लिए चुना. फिर तो एक कवि के अनुसार, ‘हिला हिमालय, पिघला पत्थर, मचिगै हाहाकार’ जैसी स्थिति पैदा हो गई और ‘भीर भई दिल्ली मां भारी खबर पाइ ओंकार.’ उन्होंने वसीयत कर रखी थी कि उनकी अंत्येष्टि में किसी भी धार्मिक रीति रिवाज का पालन न किया जाये, लेकिन 29 मई को हिंदू रीति से ही उनका अंतिम संस्कार संपन्न हुआ. बाद में वसीयत के अनुसार उनकी अस्थियों को वायुसेना के विमानों से देश के सभी राज्यों में गिराया गया, खासकर उन खेतों में, जहां किसान काम करते थे. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें