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भारत के विदेश सचिव का बांग्लादेश दौरा, पढ़ें आनंद कुमार का खास लेख

Bangladesh Violence: सच यह है कि बांग्लादेश में राजनीतिक संकट ने भारत के साथ उसके संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. शेख हसीना के इस्तीफे और भारत में उनके निर्वासन के बाद प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार स्थिरता बनाये रखने में लगातार संघर्ष कर रही है.

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Bangladesh Violence : भारत और बांग्लादेश के बीच तेजी से बिगड़ते संबंधों के बीच भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री की हाल की ढाका यात्रा द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने का एक महत्वपूर्ण प्रयास थी. दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत रिश्ते बांग्लादेश में बड़े राजनीतिक उथल-पुथल और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर बढ़ते तनाव के कारण हाल के दिनों में कमजोर हो गये हैं. विदेश सचिव की यह यात्रा, जो अगस्त में बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख हसीना के निष्कासन के बाद पहली उच्च-स्तरीय बातचीत थी, साझा चिंताओं को संबोधित करने और आपसी संवाद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गयी. विदेश सचिव का यह दौरा वहां अल्पसंख्यक हिंदुओं पर बढ़ते हमलों के मद्देनजर भी बताया गया.


सच यह है कि बांग्लादेश में राजनीतिक संकट ने भारत के साथ उसके संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. शेख हसीना के इस्तीफे और भारत में उनके निर्वासन के बाद प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार स्थिरता बनाये रखने में लगातार संघर्ष कर रही है. अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के आरोपों ने दोनों देशों के बीच के तनाव को और बढ़ा दिया है. हिंदू मंदिरों और सांस्कृतिक स्थलों पर, जिनमें ढाका स्थित भारतीय सरकार द्वारा संचालित इंदिरा गांधी सांस्कृतिक केंद्र भी शामिल है, हमलों की खबरों ने नयी दिल्ली में तीखी प्रतिक्रिया पैदा की. प्रमुख हिंदू साधु चिन्मय कृष्ण दास की देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी ने और अधिक अशांति फैलायी, जिससे बांग्लादेश की सीमा से लगे भारतीय राज्यों में विरोध प्रदर्शन हुए और ढाका में जवाबी प्रदर्शन हुए.

विदेश सचिव विक्रम मिस्री की नौ नवंबर की यात्रा का उद्देश्य इन बढ़ते मुद्दों को सुलझाना था. उन्होंने अपने बांग्लादेशी समकक्ष मोहम्मद जसीम उद्दीन, विदेशी मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन और अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस से मुलाकात में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण को लेकर भारत की चिंताओं से अवगत कराया. उन्होंने इस्कॉन से जुड़े चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और उन पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठाया. उन्होंने चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी मामले को निष्पक्षता से देखे जाने की अपील भी बांग्लादेश से की. विदेश मंत्रालय के अनुसार, इन बैठकों में विदेश सचिव ने एक स्थिर, शांतिपूर्ण, प्रगतिशील, लोकतांत्रिक और समावेशी बांग्लादेश के प्रति भारत के समर्थन को दोहराया.

बांग्लादेश ने अपने यहां अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुई हिंसा की घटनाओं को स्वीकार किया और यह बताया कि विगत अगस्त से अक्तूबर के बीच अल्पसंख्यकों पर 88 हमले दर्ज किये गये, जिनमें से अधिकांश में हिंदुओं को ही निशाना बनाया गया. बांग्लादेश ने इसकी भी पुष्टि की कि इन घटनाओं से जुड़े 88 मामले दर्ज किए गए हैं और कुल 70 लोगों को इस सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है. हालांकि, बांग्लादेशी अधिकारियों ने इस हिंसा को व्यक्तिगत विवादों या राजनीतिक संबद्धताओं से उपजा बताते हुए इसके धार्मिक उद्देश्यों को कमतर करके आंकने की कोशिश की है.


विदेश सचिव विक्रम मिस्री की चर्चा तत्काल चिंताओं से आगे बढ़कर सीमा प्रबंधन, व्यापार, संपर्क, जल और ऊर्जा क्षेत्रों में सहयोग जैसे मुद्दों पर केंद्रित रही. दोनों पक्षों ने विश्वास बहाली के लिए एक रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया. मोहम्मद यूनुस ने भारत-बांग्लादेश संबंधों को ‘बहुत मजबूत’ बताया और आपसी चिंताओं को दूर करने की प्रतिबद्धता दोहरायी, साथ ही भारत से ‘बादलों को साफ करने’ में मदद करने का आग्रह किया. विदेश सचिव मिस्री की यह यात्रा वस्तुत: वर्तमान भारत-बांग्लादेश संबंधों की जटिलताओं को रेखांकित करती है. यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत ने ऐतिहासिक रूप से शेख हसीना के नेतृत्व का समर्थन किया है और उनके शासन को एक स्थिर और विश्वसनीय साझेदार के रूप में देखा है. हालांकि, उनके निष्कासन ने नयी दिल्ली के दृष्टिकोण में पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता पैदा कर दी है.

अपनी यात्रा के दौरान विक्रम मिस्री की संतुलित टिप्पणियों ने भारत की चिंताओं और बांग्लादेश की चुनौतियों, दोनों को स्वीकार करते हुए भारत के दृष्टिकोण में एक बदलाव का संकेत दिया. उन्होंने यह स्पष्ट किया कि मौजूदा बांग्लादेश प्रशासन के साथ काम करने के लिए भारत उत्सुक है, जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके आपसी मतभेदों की वजह से वे संबंध न टूटें, जो सीमा के दोनों ओर के लाखों परिवारों को न सिर्फ सीधे-सीधे प्रभावित करते हैं, बल्कि नयी दिल्ली और ढाका के लिए भी जो संबंध रणनीतिक रूप से वाकई बहुत महत्वपूर्ण हैं.


अपने दौरे के अंत में विक्रम मिस्री ने पत्रकारों से कहा कि भारत ने बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के साथ काम करने की इच्छा जतायी, साथ ही, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और हाल ही में हुए हमलों को लेकर भारत की चिंता से अवगत कराया. दोनों पक्षों ने बिम्सटेक फ्रेमवर्क के तहत क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने की बात पर सहमति जतायी. बांग्लादेश में सत्ता का रिक्त स्थान सामुदायिक तनावों को बढ़ाने वाला वातावरण तैयार कर रहा है, जिसका क्षेत्रीय स्थिरता पर महत्वपूर्ण प्रभाव है. अमेरिका ने भी मतभेदों के शांतिपूर्ण समाधान की अपील करते हुए दक्षिण एशिया में स्थिरता बनाये रखने के महत्व पर जोर दिया है. विदेश सचिव मिस्री की यात्रा ने द्विपक्षीय मुद्दों को सुलझाने के लिए रचनात्मक जुड़ाव की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है.

इसका मतलब यह है कि नयी दिल्ली को अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा और बांग्लादेश में लोकतांत्रिक शासन की वापसी की वकालत जारी रखनी चाहिए, लेकिन साथ ही साथ ढाका की चिंताओं पर भी विचार करने के लिए तैयार रहना चाहिए. बांग्लादेश में सत्ता के हिंसक संक्रमण और भारत-विरोधी भावना के उदय से उत्पन्न चुनौतियों के लिए सूक्ष्म कूटनीति की आवश्यकता है. भारत की व्यापक क्षेत्रीय रणनीति में दक्षिण एशिया के बदलते राजनीतिक परिदृश्य को शामिल करना चाहिए, जहां नेपाल, श्रीलंका और मालदीव में हालिया सरकार परिवर्तन ने नयी चुनौतियां पेश की हैं. बांग्लादेश के साथ एक करीबी, परामर्शपूर्ण साझेदारी को बढ़ावा देकर, भारत इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता लाने और पारस्परिक रूप से लाभकारी परिणाम सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर सकता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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