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अर्थशास्त्री संजीव सान्याल की बात अनेक लोगों को नकारात्मक लग सकती है, पर इस पर गंभीरता से सोचना चाहिएउन्होंने यह नहीं कहा है कि छात्र प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी न करें. जो इन सेवाओं में जाना चाहते हैं, वे अवश्य प्रयास करें.

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डॉ श्वेता कुमारी, विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन

अर्थशास्त्री संजीव सान्याल ने कहा है कि लाखों छात्रों द्वारा 5-8 साल तक सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी करना ‘युवा ऊर्जा की बर्बादी’ है. उन्होंने यह भी कहा है कि जो छात्र वास्तव में प्रशासन में जाना चाहते हैं, उन्हें ही ऐसी तैयारी करनी चाहिए तथा एक या दो प्रयास करना चाहिए, पर इसमें कई साल लगाना सही नहीं है. सान्याल प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य हैं. सिविल सेवा की परीक्षा एक कठिन परीक्षा है और छात्र इसमें सफलता पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं. ऐसी अन्य प्रतियोगिता परीक्षाओं के साथ भी यह बात लागू होती है. ऐसे में सान्याल की बात अनेक लोगों को नकारात्मक लग सकती है, पर इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए. मुझे लगता है कि उन्होंने एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक बात कही है. उन्होंने यह नहीं कहा है कि छात्र प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी न करें. जो इन सेवाओं में जाना चाहते हैं, वे अवश्य प्रयास करें, लेकिन कई बार ऐसा होता है कि छात्रों के पास विकल्प नहीं होते या उन्हें विकल्पों की जानकारी नहीं होती है, वे सिविल सेवा, स्टाफ सेलेक्शन, बैंकिंग, रेलवे आदि की परीक्षाओं की तैयारी करते रहते हैं. इस तैयारी में उनके जीवन के सबसे अच्छे वर्ष लग जाते हैं.

हर छात्र की प्रतिभा और आकांक्षा अलग-अलग होती है. आवश्यकता इस बात की है कि छात्र विकल्पों के बारे में जानें और विभिन्न क्षेत्रों में अपनी संभावनाओं को साकार करें. आज के भारत के संदर्भ में संजीव सान्याल की टिप्पणी सटीक बैठती है. कुछ दशक पूर्व के भारत को देखें, तो हमारी अर्थव्यवस्था का स्वरूप वर्तमान समय की तरह नहीं था. अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की भागीदारी तुलनात्मक रूप से बहुत कम थी और अवसरों की बहुलता भी नहीं थी. वैसी स्थिति में युवा सरकारी रोजगार की चाहत रखते थे, ताकि उन्हें वित्तीय एवं अन्य सुरक्षा मिल सके. आज हमारी अर्थव्यवस्था बड़े बदलाव के दौर में है और कई सारे नये-नये अवसर हमारे सामने आ रहे हैं. उल्लेखनीय है कि विश्व में सबसे अधिक युवा आबादी भारत में है. शिक्षा का भी प्रसार होता जा रहा है. हमें इन युवाओं में कौशल विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. यह सोचा जाना चाहिए कि युवाओं को हम किस प्रकार देश के विकास में अग्रणी भूमिका प्रदान कर सकते हैं. वैश्विक स्तर पर आर्थिक विविधता की चर्चा हो रही है. कुछ समय पहले तक दुनिया के कई देशों की आर्थिक निर्भरता चीन पर थी. महामारी के बाद देशों की मंशा है कि मैनुफैक्चरिंग को अपने देशों और दूसरे देशों में भी ले जाया जाए ताकि वैश्विक आपूर्ति शृंखला के लिए खतरा पैदा न हो.

इस स्थिति में हमारी सरकार, उद्योग जगत, सिविल सोसायटी, शिक्षण संस्थाओं आदि की यह जिम्मेदारी है कि आर्थिक विविधता की इस प्रक्रिया में भारत को आगे रखा जाए और युवाओं को उस दिशा में प्रेरित किया जाए. प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी का मामला केवल समय से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि उसके आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और अन्य आयाम भी हैं. अगर वे तैयारी करना चाहते हैं, तो वे तैयारी करें, लेकिन साथ-साथ उनके कौशल विकास की व्यवस्था भी की जानी चाहिए. हमें शुरू से ही छात्रों को जागरूक करने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए. उन्हें स्कूल की ऊपरी कक्षाओं से ही जानकारी होनी चाहिए कि उनके पास अलग-अलग विकल्प हैं. तब अगर वे परीक्षा की तैयारी का मन बनाते हैं, तो जरूर करें, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि चूंकि कोई और अवसर नहीं है, तो तैयारी में ही अपने को खपा दें. इस संदर्भ में देश में असमान विकास की स्थिति, अनेक क्षेत्रों में खेल संस्कृति का अभाव, शिक्षण संस्थाओं में प्रयोगशालाओं एवं अन्य सुविधाओं के अभाव जैसे पहलुओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. ऐसी कमियों को दूर कर छात्रों की आकांक्षाओं को बढ़ावा दिया जा सकता है.

देश के अनेक राज्यों में विकास तुलनात्मक रूप से कम है. वहां छात्र प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी तो करते हैं, पर वे केवल यही करते हैं क्योंकि उन्हें विकल्पों का पता नहीं होता और समुचित विकास नहीं होने से विकल्प दिखते भी नहीं. हाल के समय में पेपर लीक होने और परीक्षाएं रद्द होने की खबरें लगातार आ रही हैं. बहुत से लोगों के लिए ये महज खबरें हो सकती हैं, लेकिन जो छात्र इन परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, ऐसी घटनाएं उनकी आशाओं पर बड़ा आघात होती हैं. एक तो यह है कि परीक्षा प्रणाली को किस प्रकार ठीक किया जाए. दूसरी बात है कि रोजगार के मौके बढ़ाये जाएं. अगर हम तमिलनाडु, कर्नाटक या गुजरात जैसे अपेक्षाकृत विकसित राज्यों को देखें, तो वहां बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने संयंत्र लगा रही हैं. ऐसी परियोजनाओं को कम विकसित राज्यों में भी लगाया जाए, इस पर सोचा जाना चाहिए. हमें युवाओं में भविष्योन्मुखी मानसिकता विकसित करने पर भी ध्यान देना चाहिए. उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने तथा धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा दिया जा रहा है. इस क्षेत्र में भारत की उपलब्धियां दुनिया के लिए आदर्श बन रही हैं. इस क्षेत्र में बड़ी संभावनाएं हैं. ऐसा ही तकनीक के क्षेत्र में है.

भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि एवं विस्तार में युवाओं को ही नेतृत्व करना है. इसके लिए आवश्यक है कि ऐसे प्रबंध हों, जिनसे उन्होंने रोजगार भी मिले और वे आर्थिक वृद्धि एवं समृद्धि में मुख्य योगदान भी कर सकें. इस संदर्भ में यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि हर राज्य और क्षेत्र की आवश्यकताएं और क्षमताएं अलग-अलग हैं. इसे देखते हुए दीर्घकालिक योजनाओं पर काम किया जाना चाहिए. अनेक क्षेत्रों में ऐसा हो भी रहा है. इससे स्थानीय स्तर पर विकास भी होगा और अनियंत्रित पलायन, परीक्षाओं की तैयारियों के लिए भी, रोकने में सहायता मिलेगी. देश में बीते वर्षों में स्टार्टअप के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ है. यह क्षेत्र मुख्य रूप से युवाओं द्वारा संचालित है, जो विभिन्न प्रकार की सेवाएं उपलब्ध कराने के साथ-साथ नवोन्मेष को भी गति दे रहे हैं. युवाओं को नये अवसर मुहैया कराने के प्रयासों के लिए स्टार्टअप क्षेत्र एक आदर्श उदाहरण हो सकता है. इसी प्रकार डिजिटल एवं ऑनलाइन सुविधा का भी सकारात्मक उपयोग हो सकता है. प्रतियोगिता परीक्षाओं के साथ विकल्प भी हों, तो युवाओं का बहुमूल्य समय बचाया जा सकता है और देश के विकास को भी गति दी जा सकती है.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

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