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Petrol Diesel Price Today : रूस और अमेरिका की राजनीतिक घमासान में पानी के भाव आया तेल की कीमत

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Petrol Diesel Price Today अमेरिका और रूस के बीच जारी द्वंद के कारण पेट्रोल डीजल की कीमत ने धरती पकड़ ली है. सोमवार को अमेरिकी बाजार में तेल की कीमत -40 डॉलर/बैरल से भी नीचे चली गयी, जिसके कारण तेल कंपनियों में हाहाकार मच गया. कोरोनावायरस के कारण आर्थिक मंदी की आहट पहले से ही है, ऐसे में तेल कंपनियों का यह नुकसान इस मंदी को और मजबूत करेगा.

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नयी दिल्ली : अमेरिका और रूस के बीच जारी द्वंद के कारण पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel Price) की कीमत ने धरती पकड़ ली है. सोमवार को अमेरिकी बाजार में तेल की कीमत -40 डॉलर/बैरल से भी नीचे चली गयी, जिसके कारण तेल कंपनियों में हाहाकार मच गया. कोरोनावायरस के कारण आर्थिक मंदी की आहट पहले से ही है, ऐसे में तेल कंपनियों का यह नुकसान इस मंदी को और मजबूत करेगा.

तेल की कीमत में यह स्थिति एक दिन में नहीं हुई है. तेल की कीमत में गिरावट की कहानी पिछले दो महीने से लिखी जा रही थी. दुनिया के दो शक्तिशाली देश रूस और अमेरिका के आपसी राजनीतिक द्वंद का खामियाजा तेल कंपनियों को उठाना पड़ा है. आइये जानते हैं अमेरिका रूस के उस द्वंद को जिसके कारण तेल पानी के भाव आगया है.

Also Read: Petrol Diesel Price Today: क्या भारत में सस्ता होगा पेट्रोल डीजल ?, कीमतों में इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट

वेनेजुएला सबसे बड़ा कारण- तेल की कीमत में गिरावट का सबसे बड़ा वेनेजुएला है. अमेरिका और रूस के बीच जारी गतिरोध का सबसे बड़ कारण दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप पर स्थित देश वेनेजुएला है, जिसपर वर्तमान में अमेरिका का हस्तक्षेप है.

रूस चाहता है कि अमेरिका वेनेजुएला के ऊपर राजनीतिक हस्तक्षेप बंद करे और उसके ऊपर लगाये गये तमाम प्रतिबंध हटाये, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इससे एक कदम भी पीछे हटने को तैयार नहीं है, जिसके कारण माना जा रहा है कि दोनों देशों का तकरार लंबा चल सकता है और इसका खामियाजा तेल कंपनियों को उठाना पड़ सकता है.

ओपेक की बैठक से पहले रूस की पैंतरे बाजी– एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार तेल की कीमत में गिरावट की पहली भूमिका मार्च से पहले ओपेक-अमेरिका-रूस की बैठक से पहले ही हो गयी थी. मार्च के शुरूआत में रूस और ओपेक देशों के बीच तेल करार को लेकर समझौता होना था, जिसमें सभी देशों को अपनी उत्पादन घटाकर कीमत में बढ़ोतरी करनी थी.

मगर रूस ने कोरोना को कारण बताकर बैठक में भाग नहीं लिया. रूस की इस चालाकी के कारण अमेरिका के शेल कंपनियों का भारी नुकसान हुआ, जिसके बाद अमेरिका भी तेल कंपनियों के कई बैठकों का बहिष्कार कर दिया.

सऊदी अरब ने आग में घी का काम किया– दोनों मुल्कों के बीच तेल कीमत को लेकर रस्साकसी का दौर जारी था, लेकिन सऊदी अरब के फैसले ने आग में घी का काम किया. सऊदी अरब ने यूरोप के छोटे-छोटे तेल कंपनियों को खरीदना शुरु कर दिया. फोर्ब्स की रिपोर्ट के अनुसार सऊदी अरब ने यूरोप के तेल कंपनियों में एक बिलियन डॉलर का निवेश किया है.

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