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Sunday, April 20, 2025 | 02:07 pm

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किसानों को सशक्त कर सकती है सहकारिता

सहकारी समितियों में कृषि परिदृश्य को बदलने की अपार क्षमता है. इन संस्थाओं को पुनर्जीवित कर, सदस्य-केंद्रित दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर सहकारी समितियां ऋण अंतर को पाट सकती हैं

दिनकर के लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि था

भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित इस रचना में काम जैसे मनोभाव को स्वीकार करने और उसे आध्यात्मिक गरिमा तक पहुंचाने के लिए जिस साहस की जरूरत थी, वह दिनकर में मौजूद था.

जरूरी है छोटे और सीमांत किसानों को सशक्त बनाना

सीमांत किसानों को सशक्त बनाने और भारत की अनाज भंडारण योजना में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अधिक सूक्ष्म तथा विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है.

आगामी बजट और भारतीय कृषि

भारतीय किसानों का औसत घरेलू ऋण सात लाख रुपये अधिक है. कर्ज और आर्थिक संकट के बोझ तले दबा किसान आत्महत्या करने को मजबूर है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2022 में 6,083 कृषि मजदूरों और 5,207 किसानों ने आत्महत्या की थी.

अदृश्य जातियों की पहचान जरूरी

शायद ही कोई ऐसा गांव होगा, जहां अति पिछड़ी जातियां निवास न करती हों, लेकिन ये सभी जातियां इतनी कम और बिखरी हुई हैं कि कोई भी दल इनकी समस्याओं को सुनना नहीं चाहता है.

जातिविहीन समाज के स्वप्नदर्शी थे डॉ राम मनोहर लोहिया, पढ़ें यह खास लेख

डॉ लोहिया ने जाति आधारित विषमता को गंभीर सामाजिक अन्याय के रूप में देखा और माना कि यह भारत के एक आधुनिक, न्यायसंगत राष्ट्र बनने की दिशा में बाधा है.

महात्मा गांधी : शांतिपूर्ण संघर्ष के शक्तिशाली प्रतीक

गांधीजी के अहिंसक प्रतिरोध के तरीकों, जैसे कि सत्याग्रह (सत्य बल) ने दिखाया कि रक्तपात का सहारा लिये बिना भी सबसे शक्तिशाली उत्पीड़कों का सामना करना संभव था. गांधी के जीवन के सबसे प्रतिष्ठित क्षणों में से एक 1930 का नमक मार्च (अवज्ञा का प्रतीक) था.

जी-20 बैठक में कृषि पर करें चर्चा

आर्थिक चिंतक जी-20 के भीतर चर्चाएं व्यापार नीतियों को प्रभावित करने वाली होती हैं. भारत को जी-20 मंच का उपयोग इन व्यापार बाधाओं को कम करने और अपनी बाजार पहुंच का विस्तार करने में करना चाहिए, जिसका भारत के किसानों को दीर्घकालिक लाभ हो सकता है.

विदेशी आर्थिक व्यापार में सतर्कता जरूरी

आर्थिक चिंतक सरकार को किसी समझौते में शामिल होने से पहले विभिन्न श्रमिक संगठनों, किसान संगठनों, व्यापारिक प्रतिनिधियों व नागरिक संगठनों की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए एक कमेटी का गठन करना चाहिए.
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