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Monday, April 21, 2025 | 01:03 am

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डॉ अनिल प्रकाश जोशी

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हमारे त्योहारों में प्रकृति से जुड़ने के संदेश

निश्चित रूप से पश्चिमी देशों की पहल विकास को लेकर रही है, लेकिन अगर प्रकृति के संरक्षण से जुड़े सवालों के उत्तर इसी देश में हैं, जहां हम विभिन्न तरह के पूजा-पर्वों में प्रकृति को जोड़ लेते हैं. ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम अपने पर्वों, खास तौर से बसंत पंचमी, में प्रकृति को प्रणाम भी करें.

लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते हैं जलवायु सम्मेलन

कॉप जैसी बैठकें अंतरराष्ट्रीय हैं, पर देखा गया है कि यह मात्र 10 से 20 प्रतिशत से ज्यादा अपने संकल्प पर खरी नहीं उतरतीं. इसलिए अब दुनियाभर में कॉप जैसी बैठकों पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं कि ये अपने लक्ष्य तक क्यों नहीं पहुंच पाती हैं.

उत्तराखंड सुरंग हादसा से सबक सीखने की जरूरत

यह संयोग ही था कि त्योहार का समय होने के कारण वहां मात्र 41 लोग ही मौजूद थे, वरना अगर कोई अन्य समय होता तो यह संख्या 300 से 400 हो जाती. इतने ढेर सारे जीवन के फंसने का पूरे तंत्र पर अत्यधिक असर पड़ता.

चिंताजनक हैं लगातार आते भूकंप

वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में आठ की तीव्रता का भूकंप हिमालय को हिला सकता है. ऐसे में जिस ओर हमारी समझ बननी चाहिए कि पृथ्वी के पर्यावरण सतह पर हम जो भी गतिविधि करें, वह कम से कम ऐसी हो कि जिससे प्रकृति को ज्यादा नुकसान न उठाना पड़े.

हिमाचल की त्रासदी से सीखने की जरूरत

वह हिमालय जो आसमान को छूता था, आज टूट-टूटकर मैदानों में बिखर रहा है. यह बड़ा प्रश्न है कि हम कैसे तय करें कि हमारा मॉडल क्या हो. एक मॉडल जो आर्थिकी के साथ पारिस्थितिकी और हिमालय को भी बचा पाये, वही यहां के लिए सटीक साबित होगा.

डिजिटल दुनिया भी कर रही कार्बन उत्सर्जन

आप डिजिटल दुनिया में जाकर जो कुछ भी करें, किसी भी रूप में कनेक्ट हों, पर यह सत्य है कि हम लगातार प्रकृति से डिस्कनेक्ट होते जा रहे हैं.

प्लास्टिक से बर्बाद होती दुनिया

प्लास्टिक पर तमाम तरह के अंकुश लगाये जा चुके हैं, पर प्लास्टिक में कमी नहीं आयी. इसके लिए सरकारें जितनी दोषी हैं, आम लोग उससे कम दोषी नहीं हैं.

विभिन्न त्रासदियों से जूझती पृथ्वी

हमें यह समझना चाहिए कि हम पृथ्वी की ऊपरी सतह को अब हम जितना कमजोर बना देंगे या उसके ऊपर होने वाले विकास को समुचित विज्ञानी समझ व साधनों के साथ खड़ा नहीं करेंगे, तो आपदाएं, जो आनी ही आनी हैं, उनके कहर से नहीं बच सकेंगे. कहने का मतलब है कि पृथ्वी के आवरण की ही बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है.

जीवनशैली से ही संकट में जीवन

सभी लोग अगर प्रकृति के प्रति समान दृष्टि रखेंगे और उसको संजोने का काम करेंगे, तभी हम प्रकृति को बचा पायेंगे. उसमें भी सबसे महत्वपूर्ण पहलू होगा कि हम फिर सरल जीवनशैली का आह्वान करें.
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